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हजारों साल पहले भारत ने कर लिए थे ये 10 अविष्‍कार

तकनीकि अविष्‍कारों की लिस्‍ट में भारत का नाम हमेशा से ही शामिल रहा है। यहां प्राचीन काल से ही अविष्‍कारों की भरमार रही हैं। सबसे खास बात तो यह है इसके प्राचीन काल के बहुत से अविष्‍कार आज मार्डन तकनीक में बदलकर काम आ रहे हैं। पूरी दुनिया में इनका इस्‍तेमाल हो रहा है। यकीन न आए तो खुद पढ़ कर जान लें इन 10 अविष्‍कारों के बारे में…

प्लास्टिक सर्जरी:
आजकल प्लास्टिक सर्जरी बहुत उपयोग की जाती है। प्लास्टिक सर्जरी भारत की देन हैं। ईसा से करीब 2 हजार साल पहले भारत में ही प्‍लास्‍टिक सर्जरी की गई थी। भारत में सर्जरी करने का श्रेय भारतीय चिकित्साशास्त्र के रचयिता सुश्रुत को जाता है।

कटारैक्‍ट सर्जरी:
कटारैक्‍ट सर्जरी यानी कि मोतियाबिन्द का ऑपरेशन,यह भी भारत के तकनीकि अविषकारों में से एक है। भारतीय चिकित्साशास्त्र के रचयिता सुश्रुत ने ईसा से 6 सौ साल पहले मोतियाबिन्द की शल्यचिकित्सा को अंजाम दिया था। जिस औजार से इसका ऑपरेशन किया था उसे जबामुखी कहते थे।

चरखा:
चरखा जिसे अंग्रेजी में स्‍िपनिंग व्‍हील के नाम से भी पुकारते हैं। इसका भी अविष्‍कार भारत में हुआ था। आज से करीब 5000 साल पहले महाभारत और रामायण के दौर में रथों के जो पहिए होते थे वह भी बिल्‍कल चरखे यानी कि चक्र की तरह गोल होत थे। इन्‍हीं रथों पर महाभारत सरीखे बड़े-बड़े युद्ध भी लड़े गए।

रॉकेट:
रॉकेट का आविष्कार भी भारत में हुआ है। टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में एक ऐसा प्रयोग किया। जो उन्हें इतिहास में मजबूत स्थान देता है। सन् 1792 में मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने अंग्रेज सेना के विरुद्ध लोहे के बने रॉकेटों का प्रयोग किया था।

एरोप्‍लेन:
एरोप्‍लेन यानी कि विमान का अविष्‍कार भारत ने हजारों साल पहले ही कर लिया था। महर्षि भरद्वाज द्वारा लिखे एक ग्रन्थ “विमान शास्त्र” जो कि संस्कृत में है। इसमें गोधा, परोक्ष, पुष्पक जैसे विमानो के साथ ही हवाई युद्ध के जरूरी नियम भी बताए गए है।

शैम्पू:
शैम्पू का इस्‍तेमाल आज पूरी दुनिया में बड़े स्‍तर पर हो रहा है। हालांकि शैम्‍पू चम्पू शब्द का अपभ्रन्श है। संस्‍कृतक के शब्‍द चम्‍पू का मतलब मसाज करना होता है। सिर में तेल लगाकर मालिश की परम्परा बंगाल में 17वीं सदी में शुरू हुई थी।

कार्बन पिगमेंट:
आज स्‍याही का इस्‍तेमाल सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में हैं। इसका अविष्‍कार भारत ने ही किया था। ईसा से करीब 4 सौ वर्ष पहले भारतीयों ने इसको खोज लिया था। यह हड्डियों, तार, पिच जैसे कई दूसरों पदार्थों को जलाने से बनती है।

आयरन एवं मरकरी कोरर:
1899 में बंगाली भौतिक विज्ञानी सर जगदीश चंद्र बोस ने रॉयल सोसाइटी, लंदन में “लोहे-पारा-लौह के तार वाला टेलीफोन डिटेक्टर” के विकास की घोषणा की। इसके पेपर भी पेश किए थे। जिससे साफ है कि भारतीय हजार साल पहले से इसका उपयोग करते आ रहे थे।

माइक्रोवेव संचार:
जगदीश चंद्र बोस ने माइक्रोवेव ट्रांसमिशन का पहला सार्वजनिक प्रदर्शन 1895 में कोलकाता में किया था। वह पहले वैज्ञानिक थे जिसने रेडियो तरंगे डिटेक्ट करने के लिए सेमीकंडक्टर जंक्शन का इस्तेमाल क्या था। इसके दो साल बाद मार्कोनी ने लंदन में इस खोज का प्रदर्शन किया था।

बटन:
बटन का इस्‍तेमाल भी लगभग पूरी दुनिया में हो रहा है। इसका पहला सबूत मोहनजोदड़ो की खुदाई के समय मिला था। खुदाई में बटन पाए गए थे सिन्धु नदी के पास आज से 2500 से 3000 साल पहले यह सभ्यता अपने अस्तित्व में थी।

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