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सुखी जीवन का मूल मंत्र : एक चुप सौ सुख

कहते हैं कि दुनिया में सबसे मुश्किल काम होता है चुप रहना। जी हां ,यह बात पढ़कर आपको हंसी तो जरूर आई होगी क्योंकि यह पंक्ति लिखते हुए मुझे भी हंसी आई थी ।परंतु यह बात सौ फ़ीसदी सत्य है यह आप भी जानते हैं और हम सभी जानते हैं, परंतु मौन रहना भी एक कला है और इस कला में जो इंसान महारत हासिल कर लेता है उसे दुनिया की कोई ताकत हरा नहीं सकती।
जी हां ,दोस्तों कहा भी गया है कि एक चुप सौ सुख अर्थात किसी एक परिस्थिति में यदि आवश्यकता पड़ने पर चुप रहना पड़े और उस चुप रहने से हमें आत्मिक सुख और मानसिक शांति प्राप्त होती हो तो चुप रहने में कोई बुराई नहीं है। बहस करने और समस्या को बढ़ाने से कहीं बेहतर है उस समय कुछ देर के लिए मौन धारण कर लिया जाए और कुछ समय पश्चात शांति बना और चित्त को स्थिर कर सामने वाले को अपनी बात स्पष्ट की जाए। कुछ देर के अंतराल के बाद आपकी और आपके सामने वाले की मानसिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर होता है। पल भर का क्रोध कभी-कभी जानलेवा भी साबित हो सकता है।
बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी सालों साल मौन व्रत धारण करते थे और तब जाकर कहीं महात्मा का पद हासिल करते थे। महात्मा गांधी जी भी कुछ-कुछ अंतराल के बाद मौन व्रत रखा करते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि मौन व्रत रखना अर्थात चुप रहना सबसे बड़ा कर्म होता है ,चुप रह कर हम बिना शस्त्र के भी कई युद्ध जीत सकते हैं। वैसे भी जरूरी नहीं है कि हर बात का जवाब दिया जाए क्योंकि हर बात का जवाब होता भी नहीं है कुछ बातें आप अपने हाव-भाव एवं संकेतों के माध्यम से भी दूसरों को समझा सकते हैं। जहां शब्दों के जगह भाव से काम चल जाए वहां शब्दों को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। एक एक शब्द के हज़ार हज़ार मायने होते हैं, इसलिए प्रत्येक शब्द बोलने से पहले हमें 10 बार सोचना चाहिए और उचित शब्दों का चयन कर ही अपनी बात दूसरों के सामने रखनी चाहिए।
बात बात पर शोर मचाने से एवं हर बात का बिना सोचे समझे जवाब देना कहां की समझदारी है। कहा भी गया है कि शांत चित्त और स्थिर मन रख कम बोलने वाला इंसान सदैव जीवन में आगे बढ़ता है ।अपनी उर्जा को सकारात्मक कार्यों में लगा वह दिन प्रतिदिन आगे ही आगे बढ़ता जाता है। परंतु वे लोग जिन्हें एक बात के अनेक जवाब देने का शौक होता है वे सदैव  मैं सही तू गलत की उलझनों में ही उलझे रहते हैं और अपने जीवन लक्ष्यों से दूर होते चले जाते हैं। इसलिए दोस्तों अपने जीवन लक्ष्य पर नजर रख हमें सदैव सकारात्मक रहकर एवं हर परिस्थिति में सामंजस्य बिठाकर जितना कम से कम हो सके उतना बोलकर ही अपनी भाषा शैली पर नियंत्रण रखना चाहिए।
हम सभी ने पढ़ा भी है कि जब रोम जल रहा था तो नीरो बांसुरी बजा रहा था। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस स्थिति और परिस्थिति पर मौन रहकर स्वयं को व्यक्त किया जा सके उस स्थिति में शब्दों का अनावश्यक प्रयोग नहीं करना चाहिए। परंतु साथ ही जहां आपका बोलना जरूरी हो वहां अगर आप चुप्पी साधे हैं तो वह भी अत्यंत खतरनाक साबित होता है ।बड़े बुजुर्ग भी कह कर गए हैं कि पहले सोचे समझें, फिर सोचें और उसके पश्चात ही कुछ बोलें। तो दोस्तों इसी मूल मंत्र को अपना जीवन मंत्र बनाकर हमें अपने शब्दों पर आवश्यक नियंत्रण रखना होगा। शांत एवं मौन रहने से हमारे अंदर के तनाव में भी आश्चर्यजनक कमी आती है एवं हमारी मानसिक शक्ति का भी विकास होता है जो कि आज की तनावग्रस्त जिंदगी में हमारे जीने का सहारा भी बनती है। बेहतर वक्ता होने से पहले हम सभी को पहले एक बेहतर श्रोता बनने का प्रयास करना चाहिए। हमें प्रतिदिन शांत रहने का, मौन रहने का, चुप रहने का अभ्यास भी करना चाहिए। मौन रहने से हमारा दिमाग शांत होता है और मानसिक तनाव कम होने से हम अनेक प्रकार की दिमागी दिक्कतों एवं बीमारियों से निजात पा सकते हैं।
दोस्तों एक बात सदैव याद रखिए कि कभी-कभी हमारी चुप्पी और खामोशी हमारे अनगिनत शब्दों से भी अधिक ताकतवर होती है। कहने का मतलब यह है कि कभी-कभी हमारी चुप्पी वह काम भी कर जाती है जो काम हमारे शब्द नहीं कर पाते। चुप रहने से हमारे अंदर जिस सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है उस ऊर्जा के माध्यम से हम अपने व्यक्तित्व का विकास कर स्वयं में अन्य अनेक मानवीय गुणों का विकास भी कर सकते हैं। इसलिए, दोस्तों एक चुप सौ सुख वाली कहावत को आज ही से  नहीं बल्कि अभी से ही अपने जीवन में अपना लीजिए एवं अपने जीवन को एक सुखमय जीवन बनाने की दिशा में कार्य करना प्रारंभ कीजिए। ज़ाहिर सी बात है ज़िंदगी आपकी है तो जिंदगी को खूबसूरत बनाने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है।
     पिंकी सिंघल

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