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भूले बिसरे सुपर स्टारों की पीड़ा बयां करती है पुस्तक ‘भुला न देना’

लखनऊ। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक श्रीधर अग्निहोत्री की पुस्तक ‘भुला न देना’ रुपहले पर्दे के उन अभिनेताओं की पीड़ा को बयां करती है जिनकी चमक दमक को वक्त की धूल ने फीका कर दिया।

भूले बिसरे सुपर स्टारों की पीड़ा बयां करती है पुस्तक ‘भुला न देना’

श्रीधर अग्निहोत्री ने बताया कि उनकी किताब में सिनेमा और टीवी के उन सुपर स्टार कलाकारों का जिक्र है, जिनकी वक्त के साथ चमक फीकी पड़ गई और वो भुला दिये गए

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दो दशकों से अधिक समय से पत्रकारिता और लेखन से जुड़े श्री अग्निहोत्री कानपुर स्थित घर के आसपास का क्षेत्र खेल फिल्म और राजनीति का केन्द्र रहा जिसके कारण इन विषयों पर उनकी दिलचस्पी बढ़ती गयी जिसकी झलक उनके लेखन में भी साफ झलकती है।

भूले बिसरे सुपर स्टारों की पीड़ा बयां करती है पुस्तक ‘भुला न देना’

लेखक श्रीधर अग्निहोत्री का मानना है कि खेल, फिल्म, राजनीति पत्रकारिता और अन्य ग्लैमर के ऐसे क्षेत्र हैं। इनमें जब तक आपका सिक्का चल रहा है, लोग आपके आगे पीछे घूमते रहेंगे। जैसे ही आपका सितारा डूबा, ये सारे, जो आपके प्रिय हैं, वो आपसे दूर हो जाएंगे।

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दिल की बात जब पत्रकारिता के लिए लखनऊ आया तो राजनीति और सत्ता का केन्द्र होने के कारण यहां राजनीति और शासन की गतिविधियों की रिपोर्टिग के अधिक से अधिक अवसर मिलते रहे। हर रोज होने वाली राजनीतिक उठापटक, शासन सत्ता के बदलावों और एक दूसरे के खिलाफ राजनीतिक हमले समाचारों और अपने लेखों में लिखता रहा। पर फिल्मों के प्रति आकर्षण होने के कारण जब भी राजधानी में किसी अभिनेता अभिनेत्री की प्रेस कांफेंस होती तो वहां जरूर पहुंचता । ऐसी प्रेस कांफेंस में जब अभिनेत्री अभिनेत्रियों से सवाल करता तो सांस्कृतिक रिपोर्टर हमको घूरकर देखते कि यह तो राजनीति और शासन सत्ता की रिपोर्टिग करता है पर यहां कैसे ? लेकिन कई बार ऐसा हुआ कि मेरे ही सवाल पर अगले दिन अखबारों में खबर बनी। पुकार फिल्म के प्रीमियर पर जब लखनऊ के एक फाइव स्टार होटल में प्रेस कांफेंस हुई तो उसमें हमारे कई सवाल हुए जिसका उत्तर माधुरी दीक्षित अनिल कपूर और डैनी ने दिया और वही उत्तर अगले दिन की हेडलाइन बनी। इसी तरह मीनक्षी शेषाद्री, श्रीदेवी, ऐश्वर्य राय,अनिल कपूर रवीना टंडन, मल्लिका शेरावत, इमरान हाशमी, मनीषा कोइराला, ऋतिक रोशन अमीषा पटेल और भी न जाने कितने अभिनेता अभिनेत्रियों की प्रेस कांफ्रेस को कवर करता रहा। हांलाकि मुख्य रूप से हमे राजनीतिक रिपोर्टिग ही करनी होती थी पर फिल्मी लेखन का शौक दिल में छिपा रहा।जहां तक याद है बचपन में जब भी कोई फिल्म रिलीज होती तो मेरा यही जानने का प्रयास रहता कि इसके निर्माता -निर्देशक, गीतकार, संगीतकार और गायक कौन है। तब न तो इंटरनेट था और न ही कोई अन्य माध्यम जिससे ऐसी जानकारियों को हासिल किया जा सके। बस फिल्मी पत्रिकाएं ही एक माध्यम होती थी। इसलिए जब भी लाइब्रेरी जाता तो फिल्मी पत्रिकाओं पर निगाह रहती थी । साथ ही इस बात पर भी चौकन्ना रहना पड़ता कि लाइब्रेरी में मौजूद पाठक के हाथ में जो पत्रिका है वह उसके बाद किसी अन्य के हाथ में न चली जाए। इसलिए टकटकी लगाकर उसके पन्ने पलटने पर हमारी पैनी निगाह रहती और जैसे ही उस पत्रिका का आखिरी पन्ना आता मन खुशी से उछल पड़ता। उन्ही सब यादों को लिए इंटरनेट सोशल मीडिया और मित्रों के सहयोग से जब साप्ताहिक कालम ‘आज शनिवार है’ शुरू किया तो पहले तो कोई खास रिस्पांस नहीं मिला पर धीरे धीरे जब यह लोकप्रिय होने लगा तो इसे लिखने में और आनन्द आने लगा। यहां तक कि मेरे पास इसे लेकर फोन भी आने लगे। हर एक को अपने छात्र जीवन के उन अभिनेता अभिनेत्रियों के बारे में मिलने वाली अनूठी जानकारियां रास आने लगी। कईयों ने कहा कि अरे…. इन्हे तो कई फिल्मों में हमने देखा…. अच्छा इनका ये नाम है ओह..हमको तो मालूम ही नहीं था। जब इस तरह के 100 एपीसोड से अधिक हो गए तो मित्रों ने सलाह दी कि इन सबको संकलित कर एक पुस्तक की शक्ल दी जाए। हांलाकि हिन्दी फिल्मों की दुनिया एक समुंदर की तरह है लेकिन इस पुस्तक में पिछले पचास सालों के कुछेक ऐसे कलाकारों को जिक्र है जिनमें प्रतिभा थी शक्ल सूरत भी बेहतर थी पर ऐसा क्या हुआ कि वह फिल्मी दुनिया में खुद को स्थापित नहीं कर सके और बाद में इस दुनिया से अपने आपको अलग कर लिया। बस, आपके सबके सहयोग यह मेरी पहली पुस्तक है जो आपके सामने प्रस्तुत है। यदि आपका सबका प्रेम और स्नेह मिला तो भविष्य में अन्य पुस्तकें भी पेश कर सकूंगा।

इसी बात को लेकर उन्होंने यह पुस्तक ‘भुला न देना’ लिखी है। चारबाग स्थित रवीन्द्रालय में चल रहे पुस्तक मेले में गुरुवार को विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने श्री अग्निहोत्री की रचना का विमोचन किया।

भूले बिसरे सुपर स्टारों की पीड़ा बयां करती है पुस्तक ‘भुला न देना’

इस अवसर पर उन्होने पुस्तकों के प्रति युवाओं घटते रुझान पर चिंता व्यक्त करते हुये कहा कि सूचना तकनीक के इस दौर में हम मोबाइल फोन के गुलाम हो चुके है जिससे बाहर निकलने की जरुरत है।

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कहीं इस एक हाथ के पकड़े डब्बे (मोबाइल फोन) के कारण हमारा दिमाग भी डब्बा न हो जाएं, क्योंकि जो हम सुनते हैं वहीं सोचते हें फिर वही करते हैं।

भूले बिसरे सुपर स्टारों की पीड़ा बयां करती है पुस्तक ‘भुला न देना’

पुस्तक मेला में आज श्रीधर अग्निहोत्री की किताब भुला न देना के अलावा डा मनीष शुक्ल के कथा संग्रह प्रोफेसर मां के लाल और रश्मि कौशल की पुस्तक महाशून्य का भी विमोचन श्री महाना ने किया। इस अवसर पर डा अमिता दुबे, सिद्धार्थ कलहंस, विनोद शुक्ल, राज कुमार सिंह, अनुपम चौहान, अलका प्रमोद, रेखा बोरा, डा शिल्पी शुक्ला आदि उपस्थित थे।

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