अयोध्या मुद्दे में 9 याचिकाएं पक्षकारों की तरफ से व बाक़ी 9 ग़ैर-पक्षकारों का तरफ से दाख़िल की गई थी। उच्चतम न्यायालय में दाखिल 18 में से 5 याचिकाओं की पैरोकारी ऑल इंडिया व्यक्तिगत लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) कर रहा था। इन याचिकाओं को वरिष्ठ एडवोकेट राजीव धवन व जफरयाब जिलानी के निरीक्षण में मुफ्ती हसबुल्ला, मौलाना महफूजुर रहमान, मिस्बाहुद्दीन, मोहम्मद उमर व हाजी महबूब की ओर से दायर किया गया था। हालांकि बाद में राजीव धवन को इस केस के हटा दिया गया था। इस पर बहुत ज्यादा टकराव भी हुआ था।
निर्मोही अखाड़े की याचिका भी ख़ारिज
निर्मोही अखाड़े ने भी पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का निर्णय किया। निर्मोही अखाड़े ने अपनी याचिका में बोला कि निर्णय के एक महीने बाद भी राम मंदिर ट्रस्ट में उनकी किरदार तय नहीं हुई है। याचिका के ज़रिए अखाड़े ने उच्चतम न्यायालय से इस मामले में सष्टीकरण चाहा था। साथ ही याचिका में विवादित अधिग्रहित 2.77 एकड़ ज़मीन के बाहर उसके स्वामित्व वाले कई मंदिरों को वापस करने की मांग की भी की थी। उच्चतम न्यायालय की पीठ ने मुस्लिम पक्षकारों के साथ ही अखाड़े की ले याचिका भी ख़ारिज कर दी।
दरअसल उच्चतम न्यायालय से अयोध्या मुद्दे पर दाख़िल की गईं पुन्रविचार याचिकाओं पर के ख़ारिज होने की ही आसार ज़्यादा थी। इस लिए इस फ़ैसले को उम्मीद के मुताबिक ही माना जाना चाहिए। नौ नवंबर को अयोध्या टकराव पर उच्चतम न्यायालय का निर्णय आने के बाद आम तौर पर मुस्लिम समाज की तरफ से फ़ैसले का स्वागत ही किया गया था। तमाम मुस्लिम संगठन निर्णय से पहले से ही कहते रहे थे कि अयोध्या पर उच्चतम न्यायालय का जो भी निर्णय आएगा उसका सम्मान किया जाएगा। उसे हर हाल में मना जाएगा। मुस्लिम समाज की तरफ से यह एक भरोसा दिया गया था।