आज प्रपंच चबूतरे पर नीम की घनी छांव के बीच गुनगुनी धूप झांक रही थी। अलाव और कुर्सियां नदारद थीं। चतुरी चाचा की टोपी और शाल भी गायब थी। चबूतरे के आसपास बसंत बहार छाई थी। आसपास का माहौल देखकर लग रहा था कि फाल्गुन आने वाला है। चतुरी चाचा पच्छे टोला की नदियारा भौजी से गांव के हालचाल ले रहे थे। मेरे पहुंचते ही चतुरी चाचा बोले- रिपोर्टर, तुम देश-विदेश केरी खबर राखत हौ। मुला, गांव केरी ख़बरन ते बेखबर रहत हौ। हमार बहुरिया (नदियारा) गांव भरेक खबर राखत हय। गांव मा परधानिक लयके हमार नाव चलि रहा हय। सब जने चाहत हयँ कि हम परधानी लड़ी अउ जीती।
तभी ककुवा व बड़के दद्दा की जोड़ी प्रपंच चबूतरे पर आ गयी। हमने बतकही को आगे बढ़ाते हुए कहा- चतुरी चाचा, आप प्रधानी लड़ जाओ। अगर आप जीत गए तो ग्राम पंचायत के सातों गांव चमक जाएंगे। चाचा बोले- परधानी क्यार चुनाव हमरे वश का नाइ हय। अब परधानी बड़ी महंगी होय गई। पब्लिक का मुर्गा, बकरा, दारू, कपड़ा, नकदी हम न बाँटि पाइब। हम अईसन जनता केरी सेवा करत रहब।
इसी दौरान कासिम चचा और मुंशीजी भी पधार गए। बड़ी देर से चबूतरे के पास खड़ी नदियारा भौजी बोली- चतुरी चाचा, हमरे टोला मा आपसे कोई कुछु न लेई। सब जने आपका प्रधान चुना चाहत हयँ। आप बस पर्चा भरिके घर बैठव। हम पंच चुनाव लड़ि ल्याब। इतना कहकर नदियारा भौजी अपने खेत टमाटर तोड़ने चली गईं। बड़के दद्दा ने कहा- चतुरी चाचा, आपको अपने गांव में ही नहीं, बल्कि अन्य सभी मजरों में भी लोग पसन्द करते हैं। आपका बेस बड़ा मजबूत है। आपको प्रधानी जीतने के लिए ज्यादा रकम नहीं खर्च करनी पड़ेगी।
ककुवा बोले- चतुरी भाई का सब जने झाड़ पय चढ़ा रहे हौ। अब ऊह जमाना नाय हय कि कोई ईमानदार मेहनती अउ जनता केरी सेवा करय वाला आदमी प्रधान चुना जाय। पहले तौ लोग निर्विरोध प्रधान चुन लीन जात रहे। मुला, अब तौ वाट खरीदय का परत हय। पिछले चुनावम देखे रहौ। कतना दारू मुर्गा महीनन बंटा रहय। मतदान केरे पहिले रातिमा का-का भा रहय। प्रताप सातों गांवन मा मेहरून का साड़ी बाँटिन रहय। भगोले रातिमा घर-घर पनसउवा दिहिन रहय। दुनव जने चुनाव हारिगे रहयँ। मौजूदा परधान मेहरून का पायल अउ अदमिन का दारू-मुर्गा, नकद-नारायन दैके चुनाव जितिन रहयँ।
चतुरी चाचा ने ककुवा की बात को सही बताते हुए कहा- अब परधानी क्यार मतलब पैसा लागव अउ कमाओ हय। इहिमा अब कौनव इज्जत-सम्मान वाली बाति नाय रही। बड़के दद्दा ने कहा- यह सब देख कर ही चतुरी चाचा का मन कभी प्रधानी लड़ने का नहीं हुआ। जबकि हर चुनाव में लोग चाचा से प्रधानी लड़ने को कहते हैं।
मुंशीजी ने कहा- अभी ग्राम पंचायत का आरक्षण नहीं घोषित हुआ है। इसके बाद भी लड़ने वाले सुबह-शाम गांव में टहलने लगे हैं। प्रधानी के संभावित उम्मीदवारों के अंदर जनता की सेवा और सम्मान की भावना जागृत हो गई है। प्रधान बनने की लालसा रखने वाले आजकल जरूरतमंद लोगों की पैसों से मदद कर रहे हैं। सम्भावित उम्मीदवारों ने अपनी मोटरसाइकिल, कार, ट्रैक्टर ट्रॉली और ट्यूबवेल सब जनता की सेवा में समर्पित कर दिया है।
इसी बीच चंदू बिटिया चाय-पानी लेकर आ गई।हम सबने घर के बने खुरमा (सकरपाला) खाकर पानी पीया। फिर सबने चाय का कुल्हड़ उठा लिया। ककुवा ने चंदू बिटिया से पूछा- का बिटिया स्कूल खुलि गए। तुम सब जनी स्कूल जाती हौ रोज। चंदू बिटिया हाँ बोलकर फुर्र हो गई।
कासिम चचा ने प्रपंच को आगे बढ़ाते हुए कहा- त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में भ्र्ष्टाचार की शुरुआत चुनाव से हो जाती है। जनता और जनता द्वारा चुने जिला पंचायत एवं क्षेत्र पंचायत के सदस्य वोट देने के पहले अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं। गांव के लोग प्रधानी लड़ने वाले का खून पी लेते हैं। क्षेत्र पंचायत के सदस्यगण ब्लॉक प्रमुख उम्मीदवारों से मोटी रकम लेते हैं। ऐसे ही जिला पंचायत सदस्यगण अध्यक्ष पद के प्रत्याशियों से भारी धनराशि लेते हैं। जो उम्मीदवार अधिक रकम बांटता है। वही ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष बनता है। पँचायत चुनाव में धनबल के अलावा बाहुबल और सत्ता का भी दखल होता है।
चतुरी चाचा ने कासिम मास्टर की बात पर मोहर लगाते हुए कहा- सच पूछिए, तो ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों के बजाय सीधे जनता से करवाना चाहिए। इससे इन चुनावों से धनबल, बाहुबल और सत्ता का दखल खत्म हो जाएगा। किसी हद तक भ्र्ष्टाचार पर भी रोक लगेगी।
इसी के साथ प्रपंच समाप्त हो गया। आज प्रधानी के चक्कर में देश-दुनिया की कोई चर्चा ही नहीं हो सकी। मैं अगले रविवार को चतुरी चाचा के प्रपंच चबूतरे पर होने वाली बेबाक बतकही लेकर फिर हाजिर रहूँगा। तब तक के लिए पँचव राम-राम!