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THE KASHMIR FILES : एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन ने देखी फ़िल्म, देशभक्ति के शंखनाद से गूंज उठा मल्टीप्लेक्स

इस फ़िल्म को देखने के बाद, सभी दर्शकों ने जय श्री राम, भारत माता की जय, वंदेमातरम के नारे लगाए और शंखनाद किया, जिससे वेब मल्टीप्लेक्स गूंज उठा।

लखनऊ। एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के सभी अधिवक्ता सदस्यों ने, बुधवार को, वेव सिनेमा, गोमती नगर में ‘द कश्मीर फाइल्स’ फ़िल्म देखी। अधिवक्ता सदस्यों के साथ, फ़िल्म देखने के लिए, पार्षद, और एसोसिएशन के महामंत्री दिलीप श्रीवास्तव भी मौजूद थे। इस फ़िल्म को देखने के बाद, सभी दर्शकों ने देशभक्ति के नारे लगाकर और शंखनाद कर वेव मल्टीप्लेक्स को गुंजा दिया।

समाज का आइना कही जाने वाली फिल्मों में यथार्थवादी मुद्दों का भी आना बहुत जरूरी – पार्षद  

“सच्चाई से सभी को रूबरू होना चाहिए”- दिलीप श्रीवास्तव

फ़िल्म देखने के बाद दिलीप श्रीवास्तव ने अपनी राय देते हुए कहा कि समाज का आइना कही जाने वाली फिल्मों में यथार्थवादी मुद्दों का भी आना बहुत जरूरी है। सच्चाई से सभी को रूबरू होना चाहिए।”

एसोसिएशन के अध्यक्ष ने की निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की तारीफ़

एसोसिएशन के अध्यक्ष विवेक सिंह ने फ़िल्म देखकर, निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की तारीफ़ की। उन्होने कहा किएक सच जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। कश्मीरी हिंदुओं का दर्द बयाँ करती फ़िल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ है।”

महामंत्री दिलीप श्रीवास्तव के साथ एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन के सदस्य

जब देशभक्ति के नारों और शंखनाद से गूंज उठा वेव मल्टीप्लेक्स 

इस फ़िल्म को देखने के बाद, सभी दर्शकों ने जय श्री राम, भारत माता की जय, वंदेमातरम के नारों और शंखनाद किया, जिससे वेब मल्टीप्लेक्स गूंज उठा। सभी अधिवक्ताओ ने आम जन से कश्मीरी पंडितों की सच्चाई से परिपूर्ण द कश्मीर फाइल्स फ़िल्म देखने की अपील की।

भारत में फ़िल्मों को देख कर ही उमड़ती है देशभक्ति

भाजपा के चुनाव जीतने की खबरों के अलावा, अगर कोई ऐसी ख़बर, जिसकी चर्चा पूरे देश में हो रही है तो वो है फिल्म ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ पर दर्शकों का प्रेम। निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने भाजपा के सत्ता में होने और चुनावों के तुरंत बाद के माहौल को बख़ूबी ध्यान में रखा है। साफ़ पता चल रहा है कि विवेक ने अपनी इस फ़िल्म को लोगों तक पहुँचाने के लिए ऐसे माहौल को ही क्यों चुना।

निर्देशक ने ‘मौक़ा देखकर चौका’ लगाया है तो ज़ाहिर है, लोगों के अंदर देशभक्ति रह-रह कर हिलोरें मारेगी ही और जिसका फ़ायदा फ़िल्म के निर्देशक उठाएंगे ही। ये कितनी हास्यास्पद बात है कि भारत में लोगों के अंदर देशभक्ति फ़िल्मों को देख कर ही उमड़ती है। वरना, देश के लिए मर-मिटने वाले क्रांतिकारियों को पूछता ही कौन है?

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