लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के हालात बिगड़ते ही जा रहे हैं। कोरोना का संक्रमण अब नए जिलों में होने की सूचनाएं हैं। विभिन्न प्रदेशों में फंसे राज्य के श्रमिकों को वापस घर पहुंचाने का कार्य शिथिल हो चला है। जगह-जगह हजारों की भीड़ में महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग सभी पैदल या साइकिल से निकल पड़े हैं। उनके खाने-पीने की व्यवस्था भी नहीं हो पा रही है। प्रदेश में बेरोजगारों को रोजगार देने और निवेश आकर्षित करने के नाम पर भाजपा सरकार जो कदम उठाने जा रही है उससे अशांति और अव्यवस्था को ही निमंत्रण मिलेगा। कानून व्यवस्था की बिगड़ी स्थिति में कौन निवेश करने आएगा? उत्तर प्रदेश सरकार ने अब जनता की आंखों में धूल झोंकने और अपनी नाकामयाबियों पर पर्दा डालने की तैयारी की है।
मजदूर विरोधी भाजपा सरकार श्रमिक कानूनों को तीन साल के लिए स्थगित करते समय तर्क दे रही है कि इससे निवेश आकर्षित होगा जबकि इससे श्रमिक शोषण बढ़ेगा तथा साथ में श्रमिक असंतोष औद्योगिक वातावरण को अशांति की ओर ले जाएगा। सच तो यह है कि ‘औद्योगिक शांति‘ निवेश की सबसे आकर्षक शर्त होती है।भाजपा सरकार की श्रमनीति से मालिकों को मनमानी करने और श्रमिकों का शोषण करने की खुली छूट मिलेगी। नई श्रम नीति के कानूनों का पालन कराने के लिए कोई भी श्रम अधिकारी उद्योगों के दरवाजे तीन साल तक नहीं जाएगा। मालिक के कारखाने में श्रमिक को अब 12 घंटे काम करना होगा जबकि उसके 8 घंटे के हिसाब से मजदूरी मिलेगी। मालिक के लिए श्रमिक को 4 घंटे बेगारी करनी होगी। यानी अब मालिक को कानून से हर छूट और श्रमिक के शोषण करने की भी गारन्टी रहेगी। दुनिया भर में श्रमिकों ने 8 घंटे काम की जो गारन्टी अपने आंदोलनों से प्राप्त की थी उस पर भाजपा काली स्याही पोत देगी। मई दिवस की उपलब्धियों पर इतना क्रूर और घातक प्रहार तो तानाशाहों के देश में भी नहीं हुआ।
नयी श्रम नीति बनाकर पूंजीपतियों को खुश करने के क्रम में राज्य में निवेश आने का सपना तो भाजपा सत्ता में आने के पहले दिन से ही दिखाने लगी थी। कई शीर्ष निवेशक सम्मेलन हो गए। खूब धूमधड़ाका हुआ लेकिन एक नए पैसे का निवेश नहीं आया। समाजवादी सरकार में जो उद्योग आए थे वही आज तक चल रहे हैं। जिन उद्योगपतियों से तब करार हुए थे वही जमीन पर लागू दिखाई दिए हैं। चाहे जितनी बयानबाजी कर ले भाजपा अंगूर उसके लिए खट्टे ही रहेंगे।
निवेश तब आएगा जब कानून व्यवस्था ठीक हो। लेकिन यहां तो प्रदेश में अपराधी बेखौफ हैं और पुलिस मुख्यमंत्री जी के निर्देशानुसार ठोको नीति के रास्ते पर चल रही है। वाराणसी में अस्सी चौकी में जमी पुलिसवालों की महफिल-ए-शराब में अपनी फरियाद से खलल डालना अधिवक्ता पंकज बाजपेयी को महंगा पड़ गया। पुलिसवालों ने हवालात में उनकी जमकर पिटाई कर दी। वे कहने गए थे कि कुछ मजदूर भूखे प्यासे आए हैं, उनकी व्यवस्था कर दें। संत कबीर नगर में बीमार पति को ऑटो से घर ले जा रही पत्नी से पुलिसवालों ने 500 रूपए की वसूली कर ली। ऐसे कितने ही काण्ड रोज हो रहे हैं।
समस्या यह है कि सरकार को अपने बारे में कुछ सुनना बर्दाश्त नहीं लोकतंत्र में सवाल उठाने वालों पर ही सवाल उठाने का मतलब होता है कि सरकार बचने के लिए पलटवार कर रही है। पर वह अपना दोहरा चेहरा कब तक छुपाएगी। बड़े घरानों के लिए भाजपा बहुत सहृदय है जबकि अपने राज्य कर्मचारियों के वेतन भत्ता में भी वह निर्ममता से कटौती कर रही है। श्रमिकों की तो कोई पुरसाहाल नहीं है। यह अनैतिक एवं संवेदनहीनता है।