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अयोध्या आंदोलन से बदल गई देश की राजनीति की दशा-दिशा

27 साल पहले आज ही के दिन यानी 6 दिसंबर को अयोध्या में वह सब हो गया, जिसकी सबको आशंका थी. लेकिन कोई ऐसा होते देखना नहीं चाहता था. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को लाखों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों ने गिरा दिया था, इस घटना के हुए आज 27 साल हो चुके हैं. 6 दिसंबर 1992 का दिन देश ही नहीं विश्व के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया. हजारों लोग आपस में लड़े-भिड़े, कत्लेआम हुए, उन घावों की टीस आज भी दिलों में उठती है.

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में चारों तरफ धूल ही धूल थी. यहां कोई आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन यह मंजर किसी आंधी से कम भी नहीं था. ‘जय श्रीराम’, ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’, ‘एक धक्का और दो… जैसे नारों से अयोध्या गूंज रही थी. मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित स्थल के अंदर घुस गई थी और विवादित गुंबद पर उनका कब्जा हो गया था. हाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे. जिस कारसेवक हाथ में जो था, उसी ढांचे को ध्वस्त करने में लगा था और देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया था.

केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार और राज्य की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार देखती रह गई थी. दिलचस्प बात यह थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि उसके आदेशों का पूरा पालन होगा, लेकिन मस्जिद के विध्वंस को रोक नहीं सके. इसके चलते कल्याण सिंह को एक दिन की सजा भी हुई थी.

फिलहाल 6 दिसंबर के दिन सुबह लालकृष्ण आडवाणी कुछ लोगों के साथ विनय कटियार के घर गए थे. इसके बाद वे विवादित स्थल की ओर रवाना हुए. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार के साथ उस जगह पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक कार सेवा होनी थी. वहां उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया था. इसके बाद आडवाणी और जोशी ‘राम कथा कुंज’ की ओर चल दिए. यह उस जगह से करीब दो सौ मीटर दूर था. यहां वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था. यह जगह विवादित ढांचे के सामने थी. उस समय बीजेपी की युवा नेता उमा भारती भी वहां थीं, वो सिर के बाल कटवाकर आई थीं, ताकि सुरक्षाबलों को चकमा दे सकें.

सुबह 11 बजकर 45 मिनट पर फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने ‘बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर’ का दौरा किया. इसके बाद भी वहां कारसेवकों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी. दोपहर को अचानक एक कार सेवक किसी तरह गुंबद पर पहुंचने में कामयाब हो गया. इसके बाद जब भीड़ बढ़ी तो बेकाबू हो चुकी थी. विवादित ढांचे को गिराने की बकायदा रिहर्सल भी की गई थी. इसके घटना के बाद देश के कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे में हुए, जिनके सैकड़ो लोगों की जानें गई. इसी आंदोलन से देश की राजनीतिक दशा और दिशा बदल गई.

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या मामले में रामलला विराजमान के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था. इस साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिमों को अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 1934, 1949 और 1992 में मुस्लिम समुदाय के साथ हुई ना-इंसाफी को गैरकानूनी करार दिया है.

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