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वेस्ट कपड़ो से इको फ्रेंडली थैला बना समूह की महिलाएं हो रही हैं आत्मनिर्भर

वाराणसी। सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध लगने से जनपद में कपड़े से बने बैग की मांग बढ़ गयी हैं। सिंगल यूज़ प्लास्टिक हमारे वातावरण के लिए खतरा हैं और इससे होने वाला प्रदुषण सदियों तक हमारे वातावरण को नुकसान पहुचाता हैं। प्लास्टिक से बने बैग पर्यावरण के लिए हानिकारक होते हैं और कई बार पॉलीथीन खाने से जानवरों की मौत भी हो जाती हैं।

बाज़ार में कपड़े के बैग की मांग को देखते हुए साईं इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल डेवलपमेंट बसनी संस्थान में स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को कबाड़ से जुगाड़ प्रोग्राम के अन्तर्गत बेकार कपड़ो से विभिन्न प्रकार की बैग बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही हैं। यह कार्यक्रम वैज्ञानिक एवं ओद्योगिक अनुसन्धान विभाग के महिलाओं के विकास के लिए प्रौद्योगिकी विकास एवं उपयोगिता कार्यक्रम (टी.डी.यू.पी.डब्लू.) के अन्तर्गत दिया जा रहा हैं।

इसमें महिलाये प्रतिदिन दो सौ से अधिक बैग बना रही हैं। स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अपना आय बढ़ाने व आत्मनिर्भर बनने के लिए बड़े पैमाने पर इस काम में जुट गयी हैं। साईं इंस्टिट्यूट ऑफ़ रूरल डेवलपमेंट के निदेशक अजय कुमार सिंह ने बताया कि “संस्थान में इन महिलाओं को ट्रेनिंग, डिजाइनिंग, मार्केटिंग और वेस्ट कपडा मुहैया करा, उनके द्वारा बने थैलों को अच्छें दामों में बेच कर उन्हें स्वावलंबी बनाया जा रहा है। और यह बैग 100 प्रतिशत तक बायोडिग्रेडेबल होती है। जो रिसायकल के साथ साथ सुरक्षित पर्यावरण संरक्षण के लिए हितकर है”।

पॉलीथीन पर लगे प्रतिबन्ध से कपड़ों के बैग की मांग बाज़ार में बढ़ गयी हैं। काफी मात्रा में आर्डर मिल रहें हैं। जिससे की इन कपड़ों की बैग बनाने वाली महिलाओं की चांदी कट रही हैं। जब से प्लास्टिक बंद हुआ हैं तब से बैग बनाने वाली महिलाओं का काम बढ़ गया हैं। कपड़ो से बने बैग काफी मजबूत होते हैं और इनमे काफी वजन उठाया जा सकता है।

रेपोरी-जमील अख्तर

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