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गुरुद्वारा हरिमंदर साहिब की पवित्रता की रक्षा के लिए बाबा दीप सिंह ने धड़ से शीश कटने के बावजूद पूरा किया प्रण

लखनऊ। सिक्ख परम्परा में अनोखे अमर शहीद बाबा दीप सिंह जी का शहीदी दिवस आज (15 नवम्बर) ऐतिहासिक गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी नाका हिण्डोला लखनऊमें बड़ी श्रद्धा एवं सत्कार के साथ मनाया गया। प्रातः का दीवान श्री सुखमनी साहिब जी के पाठ से आरम्भ हुआ। हजूरी रागी जत्था भाई राजिन्दर सिंह ने पवित्र अमृतमयी आसा की वार का शबद कीर्तन गायन किया उसके उपरान्त मुख्य ग्रन्थी ज्ञानी सुखदेव सिंह जी ने बाबा दीप सिंह जी के शहीदी दिवस पर प्रकाश डालते हुए बताया कि जब भी श्री हरिमंदर साहिब, अमृतसर की चर्चा चलती है तब हमेशा महान बलिदानी बाबा दीप सिंह जी के अद्वितीय बलिदान की याद आ जाती है। बाबा जी ने श्री हरिमंदर साहिब की पवित्रता की रक्षा के लिए बलिदान दिया। आध्यात्मिक शक्ति के पुंज बाबा दीप सिंह जी शीश कट जाने के बाद भी शीश हथेली पर रख कर लड़े और श्री हरिमंदर साहिब की परिक्रमा में पहुंच कर अपना वचन पूरा किया।

बाबा दीप सिंह जी का जन्म श्री अमृतसर के ‘पहुविंड’ नामक गांव में पिता भगता जी और माता जीऊणी जी के घर सन् 1682 ई. में हुआ था। बाबा जी बचपन में ही दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की सेवा में श्री आनंदपुर साहिब आ गए थे। #बाबा_जी ने दशमेश पिता के हाथों से अमृत पान किया और उन्हीं से शस्त्र संचालन एवं गुरबाणी-अध्ययन की शिक्षा प्राप्त की। बाबा जी सदैव नाम-सिमरन तथा गुरबाणी पढ़ने में रत रहते थे। वे अत्यंत सुडौल एवं दृढ़ शरीर वाले योद्धा भी थे। उन्होंने दशमेश पिता द्वारा लड़े गए सभी युद्धों में भाग लिया और खूब पराक्रम दिखाया।

बाबा जी की विद्वता: दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी इनकी विद्वता से भी बहुत प्रभावित थे। योद्धा के रूप में जब बाबा बंदा सिंह बहादुर पंजाब आए तब बाबा दीप सिंह जी उनके साथ अनेक युद्धों में शामिल होकर अपनी वीरता के जौहर दिखाए। सन् 1748 ई. में जब ‘मिसलों’ की स्थापना हुई तो बाबा दीप सिंह जी को ‘शहीदां दी मिसल’ का जत्थेदार नियुक्त किया गया।  सन् 1757 ई. में अहमद शाह अब्दाली ने नगर श्री अमृतसर पर कब्जा कर श्री हरिमंदर साहिब को ढहा दिया और अमृत सरोवर को मिट्टी से भर दिया। यह खबर मिलते ही बाबा जी का खून खौल उठा। 75 वर्ष की वृद्धावस्था होने के बावजूद उन्होंने खंडा उठा लिया। तलवंडी साबो से चलते समय बाबा जी के साथ सिर्फ आठ सिख थे, परंतु रास्ते में और सिखों के आकर मिलते रहने से श्री तरनतारन तक पहुंचते-पहुंचते सिखों की संख्या पांच हजार तक पहुंच गई श्री हरिमंदर साहिब की बेअदबी से क्रोधित सिखों ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए। अफगानों को गाजर-मूली की तरह काटते हुए बाबा दीप सिंह जी आगे बढ़ रहे थे कि तभी एक घातक वार बाबा जी की गर्दन पर पड़ा।

बाबा जी की गर्दन कट गई और वह युद्ध भूमि में गिर पड़े। यह देख कर एक सिख पुकार उठा, “प्रण तुम्हारा दीप सिंघ रहयो। गुरुपुर जाए सीस मै देहऊ। मे ते दोए कोस इस ठै हऊ” अर्थात बाबा दीप सिंह जी, आपका प्रण तो गुरु नगरी में जाकर शीश देने का था पर वह तो अभी दो कोस दूर है। यह सुनते ही बाबा दीप सिंह जी फिर उठ खड़े हुए। दाहिने हाथ में खंडा लिया, बाएं हाथ से शीश संभाला और पुनरू युद्ध आरंभ कर दिया। बाबा जी युद्ध करते-करते गुरु की नगरी तक जा पहुंचे। बाबा जी के साथ-साथ अनेक सिख शहीद हो गए, परंतु श्री हरिमंदर साहिब की बेअदबी का बदला ले लिया गया। बाबा दीप सिंह जी का अंतिम संस्कार श्री अमृतसर नगर में चाटीविंड दरवाजे के पास गुरुद्वारा रामसर साहिब के निकट किया गया। आज इस पवित्र स्थान पर गुरुद्वारा श्री शहीदगंज साहिब सुशोभित है।

बाबा जी ने श्री हरिमंदर साहिब की परिक्रमा में जहां शीश भेंट किया था, वहां भी गुरुद्वारा साहिब निर्मित है। बाबा जी का खंडा श्री अकाल तख्त साहिब में सुशोभित है। कार्यक्रम का संचालन सतपाल सिंह मीत ने किया। समाप्ति के उपरान्त लखनऊ गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष स0 राजेन्द्र सिंह बग्गा ने बाबा दीप सिंह जी को अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किए उसके उपरांत गुरू का लंगर श्रद्धालुओं में वितरित किया।

रिपोर्ट-दया शंकर चौधरी

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