त्योहारी सीजन में हर चीज पर सेल चल रही है। इन्हें खरीदकर लोग खुद को त्योहारों का हिस्सा मानने लगते हैं। हम सभी खरीदारी के प्रति इतने जुनूनी हो गए हैं कि इसे समय बिताने या दोस्तों में अपनी साख बनाने का साधन मानने लगे हैं। ये गैर-जरूरी खर्चे आने वाले समय में वित्तीय संकट की वजह बनते हैं। मैंने कई लोगों को दशहरा और दिवाली की खरीदारी के लिए सीजन सेल का इंतजार करते देखा है।
आजकल युवा जश्न मनाने के मूड में इतने डूबे हैं कि वे अपने सामने आने वाली हर चीज की खुशी मनाते हैं। जैसे वैलेंटाइन डे, होली, तीज, रक्षाबंधन, जन्मदिन, ट्री डे आदि। लोगों में खरीदारी का यह जुनून बिक्री के लिहाज से बाजार के लिए बढ़िया प्रोत्साहन है।
देव मेरे अपार्टमेंट में रहने वाले 29 वर्षीय युवा पिता हैं। उनकी एक बेटी है। देव ने कॉलेज में अच्छा प्रदर्शन किया और बेसिक ग्रेजुएशन के बावजूद एक प्रमुख आईटी कंपनी में अच्छे वेतन पर नौकरी पा ली। अपने पिता के सीमित साधनों के बावजूद वह जीवन में अच्छी चीजों का आनंद लेना चाहते थे। उन्होंने पिता की इच्छा के विरुद्ध नौकरी के एक साल के भीतर सेकंड हैंड कार खरीद ली। पिछले 7-8 वर्षों में उन्होंने एक नई कार खरीद ली है। मैं उन्हें सुंदर कपड़े पहने हुए और अपनी चीजों के साथ दिखने में खुश रहने वाले व्यक्ति के रूप में पाता हूं।
वेतन वृद्धि की उम्मीद में न बढ़ाएं खर्च
स्वतंत्रता दिवस समारोह के दौरान मैंने देव को थोड़ा विचलित पाया। पूछने पर उन्होंने बताया कि कंपनी ने उनका प्रमोशन नहीं किया। इसका मतलब है कि उन्हें वह वेतन वृद्धि नहीं मिलेगी, जिसकी उन्हें उम्मीद थी। मैंने मान लिया था कि यह देव के लिए इतना बड़ा मामला नहीं है। लेकिन, मैं गलत था। कुछ दिन पहले हम संयोग से दशहरा में पूजा के पहले दिन मिले। मैंने उनसे पूछा कि क्या वह मुझसे अपने फाइनेंसेस पर बात करने के लिए आ सकते हैं और अगले एक घंटे में जो कुछ हुआ, वह बहुत परेशान करने वाला था।
वित्तीय जिम्मेदारियों का रखें ध्यान
देव अपने माता-पिता के उनके घर में रह रहे हैं। किसी अजीब कारण से वह अपनी आय का अधिकांश हिस्सा सिर्फ अपनी जीवनशैली को बनाए रखने में खर्च कर रहा है और घर के नियमित खर्चों पर बहुत कम। उनके पिता सेवानिवृत्त हो गए हैं। वह देव से घर की कुछ जिम्मेदारियां उठाने की उम्मीद कर रहे हैं। वह चाहते हैं कि देव घर के मेंटेनेंस, बिजली और नियमित किराना खर्चों का भुगतान करे। उनके पिता के दृष्टिकोण से यह एक वैध बिंदु है। लेकिन, देव का कहना है कि कार की ईएमआई, पांच साल की बेटी की स्कूल फीस और कपड़ों व गैजेट्स पर उनके नियमित खरीदारी के खर्चों के भुगतान के बाद ज्यादा पैसे नहीं बचते हैं।