खुद की जीवन शक्ति को नियमित करना,अपने प्राणों को नया आयाम देना ही प्राणायाम Pranayam है। यह कई प्रकार के होते हैं और प्रत्येक प्राणायाम का अपना एक निश्चित कार्यक्षेत्र होता है,लेकिन सभी प्रकार के प्राणायामों का आधार गहरे लम्बे श्वास प्रश्वास से ही के जुड़ा होता है। यह बात ऊर्जा गुरू अरिहंत ऋषि ने एक कार्यशाला के दौरान कही।
सांस केेेवल हृदय से कण्ठ तक
अगर आप सिर्फ दो मिनट के लिए अपनी आँखों को बंद कर,अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करने से ही हम मानसिक तनाव से मुक्ति का अहसास करने लगते है। दरअसल जब हम साधारण श्वास लेते हैै तब हमारी सांस केेेवल हृदय से कण्ठ तक ही आती जाती है,लेकिन जब हम गहरी लंबी सांस लेते हैं तो हमारे पूरे फेफड़े वायु से भर जाते हैैं, छाती फूल जाती है और जब श्वास छोड़ते हैं तो फेफड़ों व छाती का संकोचन होता है।
हमारे फेफड़ों में 75 करोड़ कोशिकाएं
फेफड़ों के यह संकोचन क्या और क्यों होता है इसे समझना भी आवश्यक है। दरअसल हमारे शरीर में छाती के दायीं तथा बायीं ओर दो फेंफड़े हैं और इनके बीच हमारा व्रदय आता है यानी हमारा दिल। हमारे फेफड़ों में 75 करोड़ कोशिकाएं हैं और इनके बीच खाली स्थान होता हैं। जब हम साधारण श्वास लेते व छोड़ते है तो केवल एक तिहाई कोशिकाएं ही प्रभावित होती है, शेष दो तिहाई निष्क्रिय ही पड़ी रहती हैं।
तेज चलते समय 27 लीटर प्रति मिनट हवा
साधारण श्वास लेते समय हम एक मिनट में 18 सांस भरते-छोड़ते हैैं और प्रत्येक सांस में आधा लीटर वायु अन्दर भरते हैैं, यानी एक मिनट में नौ लीटर वायु हमारे भीतर जाती है। जब हम चलते हैैं, तो हमारी वायु भरने की क्षमता 16 लीटर हो जाती है। तेज चलते समय 27 लीटर प्रति मिनट और दौड़ते समय 45 लीटर तक हवा हमारे अंदर जाती है। गहरे लम्बे श्वास भरते हुए भी हम 45 से 50 लीटर वायु ग्रहण करते हैं। इसीलिए प्राणायाम करते समय हमारी फेफड़ो की वायु ग्रहण क्षमता बहुत अधिक होती है और हम अधिक से अधिक आक्सीजन भी ग्रहण करते हैं। साधारण श्वास प्रश्वास की प्रक्रिया में न तो आक्सीजन पूरे फेफड़ो में पहुंचती है और न ही पूरी कार्बन डायऑक्साइड बाहर निकलती है। इसलिए हमें प्राणायाम को अपनी आदत का हिस्सा बना लेना चाहिए क्योंकि प्राणायाम करते वक़्त हम गहरी लम्बी सांसें भरते हैं और ज्यादा ऑक्सीजन ग्रहण कर पाते हैं।