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लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में आए दिन शिक्षकों के अधिकारों का हनन, पक्षपात एवं मानसिक आघात

लखनऊ। डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ के शिक्षक इन दिनों अत्यंत उदास है। किसी को नियमित रूप से होने वाली #प्रोन्नति हेतु स्क्रीनिंग का इंतजार है तो किसी को वरिष्ठता सूची का। लंबित प्रमोशंस, दीक्षांत भी इसी इंतजार का हिस्सा है। विश्वविद्यालय में पीएचडी ऐडमिशंस को भी लेकर कई शिक्षक चिंतित हैं।

राष्ट्रीय विधिविश्वविद्यालय के शिक्षकों की वरिष्ठता सूची से हुआ खिलवाड़, साढ़े 4 साल से शिक्षक कर रहे इंतजार 

बता दें कि विश्वविद्यालय में पीएचडी की प्रवेश परीक्षा विधि के अलावा अन्य ह्यूमैनिटीज विषयों अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, इतिहास ,मनोविज्ञान आदि में कराई जाती है। पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया विश्वविद्यालय के अकादमिक सोच और शोध का विशेष पहलू है यह मानवीय मुल्यों एवं माननीय विकास का आधार भी है। विश्वविद्यालय अत्यंत महत्वपूर्ण ह्यूमैनिटीज विषयों हेतु रिसर्च मेथाडोलॉजी का एक ही पेपर विधि एवं अन्य विषयों हेतु बनाता है।

“शिक्षकों की स्क्रीनिंग,प्रोन्नति इत्यादि की प्रक्रिया चल रही है।”डॉ एपी सिंह (विभागाध्यक्ष)

शिक्षकों का मानना है कि अंग्रेजी, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र समेत अन्य ह्यूमैनिटीज विषयों हेतु रिसर्च मेथाडोलॉजी का पेपर अलग होना चाहिए या यूं कहें कि पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया विधि एवं ह्यूमैनिटीज विषयों हेतु अलग कराई जानी चाहिए जिस पर विश्वविद्यालय प्रशासन कान बंद किए हुए हैं। परिणाम स्वरूप पिछले दो साल से ह्यूमैनिटीज विषयों में ना तो विश्वविद्यालय को अच्छी संख्या में आवेदन प्राप्त होते हैं और ना ही सीटों पर प्रवेश होते हैं।

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इसी प्रकार विश्वविद्यालय में संपादित अन्य कार्यालय संवाद और संचार भी भ्रमित है। शिक्षकों को ना तो ऐकेडमिक काउंसिल की बैठक की जानकारी होती है और ना ही एग्जीक्यूटिव काउंसिल की। बताते चलें कि समय-समय पर विश्वविद्यालय परीक्षाओं में भी इनविजीलेशन ड्यूटी का भी आधार समझ से परे है।

राष्ट्रीय विधिविश्वविद्यालय के शिक्षकों की वरिष्ठता सूची से हुआ खिलवाड़, साढ़े 4 साल से शिक्षक कर रहे इंतजार 

क्लैट समेत अन्य परीक्षाओं में भी ड्यूटी इत्यादि मनमाने ढंग से संपादित की जाती है। कुछ शिक्षकों से चर्चा के उपरांत यह भी बात सामने आती है कि विश्वविद्यालय में परीक्षाओं की कॉपियों का मूल्यांकन और मेहनताना भी समझ से परे है। यदि दो शिक्षक एक विषय को पढ़ाते हैं, तो दोनों ही प्रश्नपत्र बनाएंगे और मूल्यांकन के उपरांत पारिश्रमिक दोनों ही शिक्षकों में बांटा जाएगा इस प्रकार की बंदरबांट कई अन्य प्रकार के अकादमिक एवं प्रशासनिक कार्यों में भी देखी जा सकती है।

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