भारतीय रीति रिवाज व संस्कार अपनाएं – संक्रामक रोगों पर नियंत्रण पाएं
कानपुर। इन्डियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) कालेज ऑफ़ जनरल प्रैक्टिसनर्स कानपुर सब फैकल्टी के तत्वावधान में शनिवार को वेबिनार आयोजित किया गया। वेबिनार में केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्य कान्त ने कहा कि भारतीय रीति रिवाजों व संस्कारों को अपनाकर हम बड़ी आसानी से कोविड ही नहीं बल्कि अन्य संक्रामक रोगों पर भी नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं। कोविड की दूसरी व तीसरी लहर से मिली सीख भी इसको सही साबित करती है । इसलिए हमें कोविड की संभावित तीसरी लहर के साथ ही अन्य संक्रामक बीमरियों पर नियंत्रण पाना है तो भारतीय रीतिरिवाजों व संस्कारों को अपने जीवन में उतारना होगा। ज्ञात हो कि डॉ. सूर्य कान्त को अभी हाल ही में आईएमए-सीजीपी का राष्ट्रीय मानद प्रोफेसर चुना गया है।
डॉ. सूर्य कान्त ने कहा कि भारतीय परम्परा हाथ मिलाने की नहीं रही है, हम आपस में मिलने पर एक दूसरे के सम्मान में उचित दूरी से हाथ जोड़कर नमस्ते या प्रणाम करें, संक्रमण के लिहाज से भी इसी में दोनों की भलाई है। कुछ भी खाने-पीने से पहले साबुन-पानी से हाथों को धुलना या किसी अन्य तरह से सेनेटाइज करने की आदत सभी को अपनानी चाहिए। घर लौटने पर जूते-चप्पल बाहर उतारने की सीख हमें भारतीय संस्कारों में देखने को मिलती है, जो आज भी पूरी तरह प्रासंगिक है क्योंकि इससे संक्रमण घर के अंदर जूते-चप्पल के माध्यम से नहीं पहुँच सकेगा।
उनका कहना है कि खासकर रसोई घर या भोजन ग्रहण करने वाले स्थान (डायनिंग टेबल) के आस-पास तो इसका पालन जरूर करें। योग व प्राणायाम से शरीर को स्फूर्त बनाएं न कि जिम जाकर। भाप घर पर ही लेकर संक्रमण को दूर भगा सकते हैं, उसके लिए स्पा जाने की कोई जरूरत नहीं है।
हमारे रीतिरिवाज और संस्कार हमें घर का बना शुद्ध ताजा संतुलित भोजन करने की सलाह देते हैं, जिसमें हरी साग-सब्जी, मौसमी फल और दूध-दही आदि शामिल हों। फास्ट फ़ूड से केवल स्वाद मिल सकता है और पेट भर सकता है लेकिन उससे रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं विकसित हो सकती है। इसीलये हम कहते हैं कि वेजिटेबल बेबी बनाएं न कि बर्गर बेबी।
डॉ. सूर्य कान्त ने कहा- हमारे संस्कार बीमार व बुजुर्गों की सेवा करने की सलाह देते हैं न कि उपेक्षा करने की। परिवार में जितना मेलभाव रखेंगे, उतना ही बीमारियों व बेवजह के तनाव से बचेंगे। इसलिए परिवार में बगैर किसी विवाद के रहने की आदत शारीरिक रूप से भी फायदेमंद साबित होगी।
कोरोना की पहली व दूसरी लहर ने भारतीय परम्परा की बुनियाद रही समाज के जरूरतमंदों की मदद करने की बात को भी सही साबित किया है, यही कारण है कि कोरोना के दौरान हमारे स्वास्थ्यकर्मी अपनी जान की परवाह किये बगैर दिन-रात एक-दूसरे की मदद को हर पल तत्पर नजर आये। इस तरह भारतीय रीतिरिवाजों व संस्कारों को अपनाकर हम कोविड-19 ही नहीं बल्कि अन्य संक्रामक बीमारियों पर भी बड़े आसानी से नियन्त्रण पा सकते हैं।