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रावण के माता पिता कौन थे, कैसा था उसका बचपन

वाल्मीकि कृत रामायण के अलावा रावण के संबंध में कई अन्य ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। दक्षिण भारत की रामायणों में रावण के चरित्र के हर पहलु को बताया गया है। रावण के बारे में वाल्मीकि रामायण के अलावा पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत, आनंद रामायण, दशावतारचरित आदि हिन्दू ग्रंथों के अलावा जैन ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। आओ जानते हैं कि रावण के माता पिता कौन थे।

1. रावण के माता पिता : ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य ऋषि हुए। उनका पुत्र विश्रवा हुआ। विश्रवा की पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था। विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी जिसकी संतानें रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा थीं। खर, दूषण, कुम्भिनी, अहिरावण और कुबेर रावण के सगे भाई बहन नहीं थे।

2. रावण का जन्म : वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण महाकाव्य,पद्मपुराण तथा श्रीमद्‍भागवत पुराण के अनुसार हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु दूसरे जन्म में रावण और कुंभकर्ण के रूप में पैदा हुए। कैकसी ने अशुभ समय में गर्भ धारण किया। इसी कारण से उसके गर्भ से रावण तथा कुंभकर्ण जैसे क्रूर स्वभाव वाले भयंकर राक्षस उत्पन्न हुए। तुलसीदास जी के रामचरितमानस में रावण का जन्म शाप के कारण हुआ है। वे नारद एवं प्रतापभानु की कथाओं को रावण के जन्म का कारण बताते हैं।

अपनी सेवा के एवज में कैकसी ने अपने पति से वरदान मांगा कि उन्‍हें ऐसे पुत्रों का वरदान चाहिए जो देवताओं से भी ज्‍यादा शक्‍तिशाली हो और उन्‍हें हरा सके। कुछ समय बाद उसने एक अद्भुत बालक को जन्‍म दिया जो दस सिर और बीस हाथों वाला था। कैकसी ने पूछा, इस बालक के इतने हाथ और सिर क्‍यों हैं? तक ऋषि ने कहा कि तुमने अद्भुत बालक मांगा था इसलिए ये अद्भुत है और इस जैसा कोई और नहीं है। ग्‍यारहवें दिन उस बालक का नामकरण संस्‍कार हुआ और उसका नाम रावण रखा गया।

3. रावण का बचपन : रावण का बचपन हर तरह की शिक्षा और विद्याएं सिखने में बिता। बाल्यकाल में ही रावण चारों वेदों का ज्ञात बन गया था। इसके अलावा उसने आयुर्वेद, ज्योतिष और तंत्र विद्या में भी महारत हासिल कर ली थी। युवा होते ही वह कठोर तपस्या करने के लिए जंगलों में चला गया। वह जानता था कि ब्रह्माजी उसके परदादा हैं, इसलिए उसने पहले उनकी घोर तपस्या की और कई वर्षों की तपस्या से प्रसन्न होने के बाद ब्रह्माजी ने उसे वरदान मांगने को कहा, तब रावण ने अजर–अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्माजी ने कहा मैं यह नहीं दे सकता लेकिन तुम्हें कई तरह की शक्तियां प्रदान कर सकता हूं। तुम ज्ञानी हो इसलिए समझने का प्रयास करो। रावण ने स्वीकार कर लिया और वह कई तरह की शक्तियां लेकर चला गया। बाद में उसने भगवान शिव की घोर तपस्या की।

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