1889 में अन्त. समाजवादी सम्मेलन में हे मार्केट में मारे गये निर्दोष मजदूरों के सम्मान में प्रतिवर्ष 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाने के संकल्प पास हुआ। उस समय तो सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा पर कलांतर में 7 मजदूरों की कूर्वानी रंग लाई औऱ अमेरिका सरकार ने उनकी मांग मान ली और मजदूरो के काम के समय सीमा 8 घंटे तय कर दिया गया। जो भारत सहित लगभग 80 देशों में धीरे धीरे इसे मान लिया है।
- Published by- @MrAnshulGaurav
- Saturday, April 30, 2022
जब इस धरती का निर्माण हुआ तो इसमें पहले मजदूर के रुप में त्रिदेवों –ब्रम्हा, विष्णु एवं महेश ने काम किया। फिर अलग अलग रुप से काम को श्रेणियों में बांट दिया गया। निर्माण का काम ब्रम्हा जी,कार्यपालिका का काम विष्णु जी और फिर न्यायपालिका का काम भगवान महादेव को बनाया गया। इन सब पर निगरानी रखने का काम शनी देव को सौपा गया। कलांतर में मजदूरों के देवता भगवान विश्वकर्मा को बनाया गया। धीरे धीरे आबादी बढ़ती गई औऱ अलग –अलग देश बनते गये। तो मजदूरी औऱ मजदूरों की परिभाषा भी बदलती गई और धीरे धीरे मजदूरों का शोषण भी बढ़ता ही गया।
मजदूरों के शोषण के विरुद्ध पहली आवाज 1 मई 1886 को अमेरिका के शिकागों शहर के हे-मार्केट पार्क में मजदूरों ने कार्य को 8 घंटे की समय सीमा को तय करने के मांग को लेकर एकत्रित और संगठित होकर उठाई थी। तभी पास में एक बम विस्फोट हुआ औऱ इस घटना को स्थानीय पुलिस ने मजदूरों का कृत्य समझकर उनको तितर-बितर करने के लिए फायरिंग किया जिसमें 7 मजदूरों की मौत मौके पर ही हो गई और सैकड़ों मजदूर घायल हुए।
1889 में अन्त. समाजवादी सम्मेलन में हे मार्केट में मारे गये निर्दोष मजदूरों के सम्मान में प्रतिवर्ष 1 मई को मजदूर दिवस मनाया जाने के संकल्प पास हुआ। उस समय तो सरकार पर कोई असर नहीं पड़ा पर कलांतर में 7 मजदूरों की कूर्वानी रंग लाई औऱ अमेरिका सरकार ने उनकी मांग मान ली और मजदूरो के काम के समय सीमा 8 घंटे तय कर दिया गया। जो भारत सहित लगभग 80 देशों में धीरे धीरे इसे मान लिया है।
भारत में इस दिवस को काममकाजी लोगो के सम्मान में मनाते है। इसकी भारत में भारतीय लेबर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार द्वारा 1 मई 1923 को मद्रास में शुरुआत की गई। हालाकी इसे मद्रास दिवस के रुप मे मनाया जाता था।जो बाद में मजदूर दिवस के रुप में मनाये जाने लगा। महात्मा गांधी ने कहा था- किसी देश की तरक्की उस देश के कामगारों और किसानों पर निर्भर करती है।
सिखों के गुरु नानकदेव जी ने भी मजदूरों के हितों में आवाज उठाई थी। इस तरह मजदूरों के हितों के लिए भारत में भी कई कानून बनाये गये । अलग से एक मंत्रालय भी बनाया गया पर फिर भी मजदूरो के हीतो की रक्षा समुचित रुप में नहीं हो पाता है। आशा है आने वाले दिनों में इनकी दशा एवं दिशा जरुर सुधरेगी। लाल बिहारी लाल की एक क्षणिका समसामयिक है- कभी दबे थे,अभी दबे हैं। कब तक दबे रहेंगे। आओ आज शपथ उठायें इनकों मुक्त करेंगे। अतः मजदूरों के हितो की रक्षा आज भी जरुरी है।