गणतंत्र दिवस के बाद देश शहीद दिवस मनाता है और इस मौके पर शहीद जवानों को नमन करता है। 30 जनवरी को शहीद दिवस मनाया जाता है। हालांकि कुछ लोग शहीद दिवस को लेकर असमंजस में रहते हैं। भारत में साल में दो बार शहीद दिवस मनाया जाता है। एक जनवरी में और दूसरा मार्च में मनाते हैं।
गांधीजी की पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रूप में क्यों मनाते हैं?
ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है कि दो बार शहीद दिवस क्यों मनाया जाता है और 30 जनवरी वाला शहीद दिवस मार्च के शहीद दिवस से कैसे अलग है? इन दोनों शहीद दिवस का क्या महत्व है और इनका इतिहास कितना पुराना है? आइए जानते हैं साल में दो बार शहीद दिवस क्यों मनाते हैं और 30 जनवरी से मार्च के शहीद दिवस में अंतर क्या है।
30 जनवरी के शहीद दिवस का इतिहास
30 जनवरी का शहीद दिवस महात्मा गांधी को समर्पित है। देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 30 जनवरी को पुण्यतिथि मनाई जाती है। इस दिन 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। देश को आजादी दिलाने के लिए सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले गांधी जी के निधन के बाद उनकी पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
दूसरा शहीद दिवस कब मनाते हैं?
साल का दूसरा शहीद दिवस मार्च माह में मनाते हैं। 23 मार्च को अमर शहीद दिवस मनाया जाता है। यह दिन भी शहीदों की शहादत की याद में मनाते हैं। 23 मार्च के शहीद दिवस का इतिहास और भी पुराना है।
23 मार्च के शहीद दिवस का इतिहास
23 मार्च 1931 को आजादी की लड़ाई में शामिल क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी। अंग्रेजों ने सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने पर उन्हें फांसी की सजा सुनाई और भारतीयों के आक्रोश के डर के कारण तय तारीख से एक दिन पहले गुपचुप तरीके से तीनों को फांसी पर लटका दिया। अमर शहीदों के बलिदान को याद करते हुए शहीद दिवस मनाते हैं। इस दिन आजादी की लड़ाई में अपनी जान कुर्बान करने वाले अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
कैसे मनाया जाता है शहीद दिवस?
30 जनवरी को शहीद दिवस के मौके पर देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और तीनों सेना प्रमुख राजघाट स्थित महात्मा गांधी की समाधि पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। सेना के जवान भी इस मौके पर राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि देते हुए हथियार नीचे झुकाते हैं। वहीं 23 मार्च को शहीद दिवस के अवसर पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान को याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजली दी जाती है।