आज दुनिया भर में विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस मनाया जा रहा है। यह खास दिन हर साल 2 अप्रैल को लोगों को ऑटिज्म के प्रति जागरूक करने के लिए मनाया जाता है। दरअसल, ऑटिज़्म एक मानसिक रोग है, जिसमें बच्चे का दिमाग पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाता है। ऑटिज्म के शुरुआती लक्षण 1-3 साल के बच्चों में नजर आते हैं। आइए जानते हैं आखिर क्या है यह बीमारी, इसके लक्षण और इस रोग से पीड़ित बच्चों की कैसे करें मदद।
ऑटिज्म क्या है-
विशेषज्ञों के अनुसार, ऑटिज्म एक मानसिक रोग है। बच्चे इस रोग के अधिक शिकार होते हैं। एक बार आटिज्म की चपेट में आने के बाद बच्चे का मानसिक संतुलन संकुचित हो जाता है। इस कारण बच्चा परिवार और समाज से दूर रहने लगता है। इसका दुष्प्रभाव बड़े लोगों में अधिक देखने को मिलता है।
ऑटिज्म के लक्षण-
– 12 से 13 माह के बच्चों में ऑटिज्म के लक्षण नजर आने लगते हैं।
– इस विकार में व्यक्ति या बच्चा आंख मिलाने से कतराता है।
– किसी दूसरे व्यक्ति की बात को न सुनने का बहाना करता है।
– आवाज देने पर भी कोई जवाब नहीं देता है। अव्यवहारिक रूप से जवाब देता है।
– माता-पिता की बात पर सहमति नहीं जताता है।
– आपके बच्चे में इस प्रकार के लक्ष्ण हैं, तो आपको डॉक्टर से परामर्श लें।
सावधानियां –
– आप अपने बच्चे के एक्टिविटी में बदलाव लाने की कोशिश करें।
– उसके खानपान, रहन-सहन और जीवनशैली पर अधिक ध्यान दें।
– अपने बच्चे को संकुचित न होने दें। उसे रोजाना नए लोगों से परिचय कराएं।
– इसके बाद लगतार काउंसलिंग से बच्चे की सेहत में अवश्य सुधार देखने को मिल सकता है।
ऑटिज्म होने का कारण-
वास्तव में ये रोग क्यों होता है इस बारे में अभी तक कुछ स्पष्ट नहीं है। यह दिमाग के कुछ हिस्सों में हो रही समस्याओं के कारण होता है। लड़कियों की तुलना में लड़कों में ऑटिज्म का खतरा चार गुना अधिक होता है। कई बार यह जैनेटिक होता है। बुजुर्ग माता-पिता के कारण इसका बच्चों पर ऑटिज्म का प्रभाव अधिक होता है।
इलाज
इसका कोई सटीक इलाज नहीं है। डॉक्टर्स बच्चों की स्थिति और लक्षण के बाद तय करते है कि क्या इलाज करना है। इसके इलाज में बिहेवियर थेरेपी, स्पीच थेरेपी, ऑक्यूपेशनल थेरेपी आदि कराए जाते है, जिससे बच्चों को उन्हीं की भाषा में समझा जा सके। इस थेरेपी से बच्चे काफी हद तक सही हो जाते हैं। जिसके कारण वह अजीब हरकतें को करना कम कर देते हैं। दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने लगते हैं। इस थेरेपी में डॉक्टर के साथ-साथ माता-पिता का विशेष हाथ होता है। उन्हें अपने बच्चे का खास ध्यान रखना पड़ता है।
ऐसे पता लगाएं
आम तौर पर एक बाल-रोग विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक या विशेषज्ञ दल व्यक्ति का अवलोकन करता है और उसके माता-पिता से तथा कभी-कभार अध्यापकों से बातचीत करता है। वे लोग बच्चों को कुछ करने के लिए भी कह सकते हैं ताकि वे देख सकें कि वे सीखते कै से हैं। पेशेवर व्यक्ति कुछ साधनों और निर्धारणों के द्वारा बच्चे की कुछ मानदंडों के अनुरूप होने की जांच करते हैं और वे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की पहचान कर सकते हैं।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए अपनाएं ये कुछ जरूरी टिप्स-
– बच्चे को कुछ भी समझाते समय उसके साथ धीरे-धीरे एक-एक शब्द बोलें और बच्चे के साथ उसे दोहराने की कोशिश करें।
– बच्चों के साथ खेलें, उन्हें समय दें।
-बच्चों को मुश्किल खिलौने खेलने को ना दें।
– बच्चों को तस्वीरों के जरिए चीजें समझाने की कोशिश करें।
– बच्चों को आउटडोर गेम्स खिलाएं। इससे बच्चे का थोड़ा कॉन्फिडेंस बढ़ेगा।