कोरोना महामारी ने हम सबको ऑक्सीजन के महत्व और उसकी कीमत को भली-भांति न केवल परिचित कराया बल्कि उसकी उत्पत्ति के स्रोत मतलब पौधों की आवश्यकता पर भी सोचने को विवश कर दिया। हम सभी जानते हैं कि हमारा जीवन इस प्रकृति की गोद में पौधों के भरोसे ही सम्भव है, इसके बावजूद स्वार्थी मानव ने अपने विकास को बढ़ावा देने के लिए कंक्रीट के जंगल बना दिए हैं।
यह कहना है औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर निवासी शिक्षक रामेन्द्र सिंह कुशवहा की 17 वर्षीय पर्यावरण प्रेमी पुत्री नेहा कुशवाहा का, जो कि शादी-विवाह, जन्मदिन पार्टियों, भागवत समारोह या अन्य किसी भी कार्यक्रम में शामिल होने या बुलाये जाने पर अब तक 3250 पौधे गिफ्ट के रूप में भेंट कर पर्यावरण जागरूकता के क्षेत्र में बड़ा काम किया है। उसने कहा कि कई-कई मंजिला इमारत खड़ी करने वाले लोगों ने अपने घर के चार सदस्यों की ऑक्सीजन की पूर्ति के लिए चार गमलों में अस्थाई और शोपीस वाले छोटे छोटे पौधे लगा कर रख लेते हैं, जबकि जरूरत थी चार स्थाई पौधों की। ऐसे लोगों ने अपने घरों में कमरों की संख्या बढ़ा ली लेकिन पौधों की संख्या पर ध्यान नहीं दिया। लेकिन इस महामारी ने हम सबको ऑक्सीजन का वास्तविक मूल्य बता दिया कि प्रकृति द्वारा फ्री में मिलने वाली ऑक्सीजन के लिए एक सिलेंडर की कीमत कितनी होती है। इस महामारी की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी ने न जाने कितने घरों की जीवन ज्योति को बुझा दिया।
नेहा ने कहा कि प्रकृति का कहर जब आता है तब हमारी विकास की ऊंची अट्टालिका भी जमीन पर धराशाई हो जाती है, यह हम लोगों को उत्तरांचल में आई बाढ़ ने बखूबी बता दिया। यह प्रकृति हमें अपने रौद्र रूप का टेलर समय-समय पर दिखाती रहती है। कुछ लोग अपनी नफरत की ज्वाला को शान्ति प्रदान करने के लिए किसी और के द्वारा रोपित पौधों को काट देते हैं, तोड़ देते हैं या फिर उसको उखाड़ देते हैं। उन लोगों के लिए मेरी सलाह है कि कृपया ऐसा काम ना करें। अब हम सब को जागरूक होना होगा, हमारी सभी सामाजिक संस्थाओं को भरसक प्रयास करना होगा कि अधिक से अधिक स्थाई पौधों को रोपित किया जाय। लोगों को आपस में महंगे गिफ्ट देने के बजाय पौधों को भेंट करने की परंपरा शुरू करनी होगी, जन्म या जन्मदिन पर, शादी या विवाह के अवसर पर पौधों का ही गिफ्ट देना आरंभ करना होगा। हर अवसर पर पौधों को लगाना, उनकी देखरेख करना और उनको एक स्थायित्व प्रदान करना हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है और अपनी इस जिम्मेदारी का पूरी निष्ठा और ईमानदारी से निर्वहन करना होगा।
उन्होंने कहा कि अगर आपके आसपास कहीं पौधा लगा है और आपकी दृष्टि में उसमें पानी की कमी है तो उस पौधे में पानी अवश्य दे दें। नहाने के बाद सुबह-सुबह लोग सूर्य को अर्घ्य देते हैं, मेरा तो मानना है कि सूर्य को अर्घ्य देने के साथ-साथ एक लोटा जल समीप के पौधों को भी देना शुरू कर दें। हमारी एक छोटी पहल बहुत से लोगों की सोच को बदलने में सहायक सिद्ध होगी। अगर हर व्यक्ति अपनी सोच को इसी तरीके से सकारात्मक कर लेगा तो निश्चित ही हमारी प्रकृति हरी-भरी हो जाएगी और फिर अन्य बीमारियां भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी।
दिबियापुर निवासी नेहा कुशवाहा ने शिक्षक मनीष कुमार के मार्गदर्शन में वर्ष 2015 में अपनी मुहिम ‘‘पूर्वजों की याद में पौधरोपण’’ की शुरुआत की थी।
सितंबर 2015 में तत्कालीन मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को पत्र भेजकर पूर्वज दिवस घोषित करने की मांग करने वाली नेहा ने बताया कि हमारी यह मांग तो अब तक पूरी नहीं हुई है लेकिन हमने अपने अभियान के तहत अब तक तीन हजार पांच सौ से अधिक पौधे रोपित कर लोगों में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में अवश्य कामयाब हुए हैं। भारत की लक्ष्मी और वन देवी जैसे उप नामों से पहचान बनाकर अपनी मुहिम को इण्डिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज कराने वाली नेहा ने विश्व पर्यावरण दिवस पर लोगों को पौधे रोपित करने और उनकी देखभाल करके अपनी नई पीढ़ी को प्रकृति संरक्षण से जोड़ने की सलाह दी है। जनपद भर में हर किसी अवसर पर पौधे रोपित और दान करने की पक्षधर नेहा के पौधरोपण अभियान की जितनी तारीफ की जाए कम है। कोरोना महामारी ने भी हम सबको पौधों के महत्व को बता दिया है। हम सबको इस अभियान को आगे बढ़ाने का संकल्प लेना चाहिए।
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