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विश्व टीबी दिवस: इस घातक रोग के इलाज में हम अभी भी पीछे- डॉ. एके सिंह

लखनऊ। विश्व तपेदिक (टीबी) दिवस हर साल 24 मार्च को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य तपेदिक के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले जानलेवा प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाना हैं। तपेदिक केवल एक खतरनाक रोग ही नहीं बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणामों को भी जन्म देता है। वर्ष 1882 में इसी दिन जर्मन चिकित्सक और माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. रॉबर्ट कोच द्वारा क्षय रोग पैदा करने वाले टीबी बैसिलस की खोज के उपलक्ष्य में विश्व तपेदिक दिवस मनाया जाता है। टीबी बैसिलस की खोज को चिकित्सा जगत में सबसे महत्वपूर्ण खोजों में से एक माना जाता है और इस खोज ने घातक संक्रामक तापेदिक रोग के निदान और उपचार के द्वार खोल दिए। इससे पहले तपेदिक को को लेकर कई तरह का अंधविश्वास फैला हुआ था।

चंदन हॉस्पिटल में पल्मोनरी एंड स्लीप मेडिसिन विभाग विभागाध्यक्ष और निदेशक डॉ. एके सिंह बताते हैं, “तपेदिक का इतिहास 9000 साल पहले का है, जो नवपाषाण काल की मानव हड्डियों में पाया गया। धारणा है कि तपेदिक ने मानवों को नवपाषाण क्रांति के काल में संक्रमित किया होगा। कंकालों के अवशेष दर्शाते है कि प्रागैतिहासिक मानवों 4000 ई.पू. को टीबी था और शोधकर्ताओं को 3000-2400 ईसा पूर्व की मिस्र की ममियों में भी तपेदिक के लक्ष्ण पाए हैं। सनातन धर्म के वेदों में भी इसका उल्लेख है आता है। सबसे प्राचीन, ऋग्वेद (1500 ईसा पूर्व) में इसका उल्लेख “यक्ष्मा” के रूप में किया गया है जबकि अथर्ववेद, सुश्रुत संहिता और यजुर्वेद में इस बीमारी के बारे में बताया गया है और साथ ही संक्रमित रोगियों द्वारा बताए जाने वाले लक्षणों और इसके उपचार का भी उल्लेख किया गया है।“

उन्होंने इस बीमारी के घातक होने का जिक्र करते हुए कहा, “टीबी सबसे घातक संक्रामक रोगों में से एक है, वर्ष 2019 में दुनिया भर में लगभग एक करोड़ लोग टीबी से पीड़ित हुए और 14 लाख लोगों की इस रोग से जान गई। एक अध्ययन के मुताबिक़ हर दिन लगभग 4000 लोग इस बीमारी से मरते हैं। इस परिदृश्य का सबसे खतरनाक पहलू यह रहा कि 2019 में दुनिया भर में मल्टीड्रग प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी) के लगभग 4.65 लाख मामले सामने आए। वैश्विक प्रयासों के चलते वर्ष 2000 से अब तक लगभग 6.3 करोड़ लोगों को इस घातक संक्रामक बीमारी से ठीक किया जा चुका है। भारत में 26.4 लाख मामले सामने आए और 2019 में 4.36 लाख लोगों की मृत्यु हुई। नए मामलों में से 78% मामलों में फेफड़ों में संक्रमण था और 57% मामलों में बैक्टीरियोलाजिकल इन्फेक्शन की पुष्टि हुई थी। अकेले उत्तर प्रदेश में 2019 में लगभग 4.9 लाख मामले सामने आए।”

विश्व टीबी दिवस 2021 के विषय में जानकारी देते हुए डॉ एके सिंह ने बताया, “इस वर्ष विश्व टीबी दिवस का विषय और उद्देश्य ‘द क्लॉक इज टिकिंग’ है। यह विषय दुनिया को जागरूक करने के लिए चुना गया है कि हम टीबी के खिलाफ रणनीति के लिए विश्व भर के नेताओं द्वारा दर्शाई गई प्रतिबद्धता को धरातल पर उतारने के मालमे में समय से काफी पीछे चल रहे हैं। यह हमें 80% से नए मामलों को कम करने, 90% से मौतों को कम करने और 2030 तक 100% टीबी प्रभावित परिवारों द्वारा इसका भयावह दुष्परिणाम झेलने को पूरी तरह से खत्म करने की प्रतिबद्धता के बारे में याद दिलाता है। इस विश्व टीबी दिवस पर डब्ल्यूएचओ टीबी के सभी मामलों को खोजने और उनका इलाज करने में व्यक्तिगत और सरकारी स्तर पर अपनी भूमिका निभाने के लिए आह्वान कर रहा है।“

टीबी के सम्पूर्ण उन्मूलन के लिए सुझाव देते हुए डॉ. एके सिंह ने कहा, “समय आ गया है कि हम सक्रिय रूप से उन मामलों को स्क्रीन करें जो ज्यादा इस संक्रमण से प्रभावित होते हैं, जैसे कि 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और एचआईवी पॉजिटिव व्यक्तियों में जल्द से जल्द संक्रमण का पता कर उनका इलाज करें और सक्रिय टीबी रोगियों के परिवारजनों तक उपचार सम्बंधी सुविधाएं पहुंचाएं। इसके द्वारा ही हम इसके संक्रमण चक्र को जल्दी तोड़ सकते हैं। यदि 2030 तक हम मानव जाति के लिए सबसे घातक खतरे को समाप्त करना चाहते हैं, तो टीबी के क्षेत्र में उपचार और अनुसंधान दोनों के लिए पर्याप्त और निरंतर वित्तपोषण का अभी से संकल्प लेना होगा।”

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