24 दिसंबर को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया कि देश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर (National Population Register- NPR) को आगे बढ़ाया जाएगा। यह फैसला ऐसे समय लिया गया है, जब देशभर में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी (NRC) का विरोध किया जा रहा है। हालांकि सरकार ने अब तक एनआरसी को असम से बाहर किसी अन्य राज्य में लागू नहीं किया है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर के लिए जानकारियां जुटाने के तरीके में केंद्र सरकार में कुछ बदलाव किए हैं। अब एनपीआर में बायोमैट्रिक जानकारियां नहीं मांगी जाएंगी और न ही किसी प्रकार का कोई दस्तावेज लिया जाएगा। इसे पूरी तरह से स्वघोषित रखा जाएगा। इसके लिए सरकार ने 3,941.35 करोड़ रुपये का बजट भी जारी किया है।
पहले नागरिकता कानून, फिर एनआरसी और अब एनपीआर। अमर उजाला आपको नागरिकता कानून और एनआरसी में फर्क बता चुका है। आइए आज आपको राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर और एनआरसी के बीच फर्क बताते हैं-
एनपीआर और एनआरसी में फर्क क्या है-
- एनआरसी (NRC) असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों की सूची है जिसे असम समझौते को लागू करने के लिये तैयार किया गया है।
- इसमें केवल उन भारतीयों के नाम को शामिल किया गया है जो 25 मार्च, 1971 के पहले से असम में रह रहे हैं।
- उसके बाद असम आने वालों को बांग्लादेश वापस भेजा जा सकता है।
- एनआरसी के विपरीत, एनपीआर (NPR) नागरिकता गणना अभियान नहीं है।
- इसमें छह महीने से अधिक समय तक भारत में रहने वाले किसी विदेशी को भी इस रजिस्टर में दर्ज किया जाएगा।
- एनपीआर के तहत असम को छोड़कर देश के अन्य सभी क्षेत्रों के लोगों से संबंधित सूचनाओं का संग्रह किया जाएगा।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर-
एनपीआर ‘देश के सामान्य निवासियों’ की एक सूची है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, ‘देश का सामान्य निवासी’ वह है जो कम-से-कम पिछले छह महीनों से स्थानीय क्षेत्र में रहता हो या अगले छह महीनों के लिये किसी विशेष स्थान पर रहने का इरादा रखता है। देश में लोगों की संख्या का रजिस्टर, जो गांव, कस्बे, तहसील, जिला, राज्य, राष्ट्रीय स्तर पर तैयार हाेता है। 2010 में यूपीए शासन ने इसे लागू किया था। इसे अपडेट करना कानूनी बाध्यता है।
एनपीआर की आवश्यकता क्या है-
सरकारी योजनाओं के सही क्रियान्वयन और भविष्य के हिसाब से याेजनाओं का आकार और अन्य फैसलाें के लिए यह जानकारी आधार बनेगी।
एनपीआर कब और कहां लागू हाेगा-
असम काे छाेड़कर सभी राज्याें में 2020 में अप्रैल से सितंबर तक तैयार हाेगा। जनगणना के पहले चरण में घराें की लिस्टिंग के दाैरान यह काम हाेगा।
क्या पूछा जाएगा? क्या-क्या दस्तावेज लगेंगे-
नाम
घर के मुखिया से संबंध
माता-पिता का नाम
वैवाहिक स्थिति
जीवनसाथी का नाम
लिंग
जन्मतिथि
जन्म स्थान
राष्ट्रीयता
पता
पेशा
शैक्षणिक याेग्यता
जैसा ब्याेरा पूछा जाएगा। काेई दस्तावेज जरूरी नहीं है। सेल्फ डिक्लेरेशन होगा।
एनपीआर का विचार कहां से आया-
एनपीआर का विचार यूपीए शासनकाल के समय वर्ष 2009 में तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा लाया गया था। लेकिन उस समय नागरिकों को सरकारी लाभों के हस्तांतरण के लिए सबसे उपयुक्त आधार प्रोजेक्ट का इससे टकराव हो रहा था। एनपीआर के लिए डाटा को पहली बार वर्ष 2010 में जनगणना-2011 के पहले चरण, जिसे हाउस लिस्टिंग चरण कहा जाता है के साथ एकत्र किया गया था। वर्ष 2015 में इस डाटा को एक हर घर का सर्वेक्षण आयोजित करके अपडेट किया गया था।
सरकार को नागरिकों की इतनी जानकारी क्यों चाहिए-
प्रत्येक देश में प्रासंगिक जनसांख्यिकीय विवरण के साथ अपने निवासियों का व्यापक पहचान डाटाबेस होना चाहिए। यह सरकार को बेहतर नीतियां बनाने और राष्ट्रीय सुरक्षा में भी मदद करता है। लगभग सभी विकसित देशों में ऐसा किया जाता है। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में अंतिम निवास स्थान, पासपोर्ट नंबर, पैन, ड्राइविंग लाइसेंस नंबर, वोटर आईडी कार्ड और मोबाइल नंबर को भी अद्यतन आंकड़ों के रूप में शामिल किया जा सकता है। इन आंकड़ों को वर्ष 2010 के राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में शामिल नहीं किया गया था।