बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक करीबी सहयोगी ने बुधवार को भारत से आग्रह किया कि वह जुलाई और अगस्त के बीच हुए विद्रोह को आधिकारिक रूप से मान्यता दे। इस विद्रोह के कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार का तख्तापलट हुआ था। उन्होंने कहा कि अगर भारत इस विद्रोह को मान्यता देगा तो दोनों देशों के बीच संबंधों की शुरुआत एक नए तरीके से हो सकती है।
’75 साल बाद की वास्तविकताओं को समझे भारत’
महफूज आलम अंतरिम सरकार के एक अहम नेता और बांग्लादेश के भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के प्रमुख सदस्य हैं। उन्होंने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा कि भारत ने इस विद्रोह को आतंकवाद, हिंदू विरोधी और इस्लामी विद्रोह के रूप में पेश करने की कोशिश की। आलम ने भारत से आग्रह किया कि वह 75 साल बाद की बांग्लादेश की वास्तविकताओं को समझे। उन्होंने कहा, यह (विद्रोह को मान्यता देना) पहला कदम होना चाहिए। इस विद्रोह को नजरअंदाज करना बांग्लादेश की नींव के लिए नुकसानदेह होगा और दोनों देशों के संबंधों पर नकारात्मक असर डालेगा।
नौकरी में आरक्षण के खिलाफ शुरू हुआ था आंदोलन
आलम के संगठन ने जुलाई के मध्य में हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किए थे। यह विरोध प्रदर्शन सरकारी नौकरी में एक खास वर्ग को आरक्षण के मुद्दे पर हुए थे। जिसके कारण हसीना को प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा। आंदोलन के हिंसक होने के बाद हसीना पांच अगस्त को भारत आ गईं। इसके तीन दिन बाद नोबेल पुरस्कार से सम्मानित मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया।