हर्पीस जोस्टर यानी शिंगल्स एक ऐसी बीमारी है, जिसमें हमारी स्कीन पर पानी भरे हुए छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं. इस बीमारी में रोगी के शरीर के एक ही हिस्से में एक ही तरफ कई दाने एक साथ ही निकल आते हैं. कई रिसर्च में सामने आया है कि 40 के बाद इसकी संभावना ज्यादा होती है. इसमें भयंकर दर्द होता है. क्या है हर्पीस
कई बार हमारे शरीर के विभिन्न हिस्सों में छोटी-छोटी फुंसियां निकल आती हैं. हालांकि हम इन्हें एलर्जी या फिर फंगल इंफेक्शन की निशानी मान लेते हैं व संपूर्ण जाँच कराने के बजाय नजरअंदाज कर देते हैं. लेकिन ऐसा करना खतरनाक होने कि सम्भावना है. शरीर पर निकलने वाली ये छोटी-छोटी फुंसियां आगे चलकर हर्पीस का लक्षण बन सकती हैं. यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें शरीर पर छोटे-छोटे पानी से भरे दाने निकल आते हैं जो बाद में शरीर के अन्य हिस्सों में फैल जाते हैं व दिनोंदिन साइज में बढ़ते रहते हैं.
- ग्वार फली (क्लस्टर बीन) सब्जी से ज्यादा एक औषधि है. इसमें आमतौर पर प्रोटीन व घुलनशील फाइबर पाया जाता है. इसके अतिरिक्त इसमें विटमिनन के, विटमिन सी, विटमिन ए, फॉलीऐट्स व कार्बोहाइड्रेट्स के साथ प्रचुर मात्रा में खनिज, फॉस्फोरस, कैल्शियम, आयरन, वसा व पोटेशियम भी पाया जाता है. इसलिए यह स्वास्थ्य के लिए बेहर लाभकारी होती है. इसके व क्या फायदे हैं आइए जानते हैं:
- ग्वार फली में ग्लाइको न्यूट्रिएंट होते हैं जो शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करते हैं. (फोटो साभार: getty)
- ग्वार फली गर्भवती स्त्रियों में आयरन व कैल्शियम की कमी को पूरा करती है. इसमें उपस्थित फॉलिक ऐसिड भ्रूण की कई समस्याओं से रक्षा करता है. इसमें उपस्थितविटमिन के भ्रूण के विकास में मदद करता है.
- ग्वार फली में कैल्शियम, विटामिन के और फास्फोरस होता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं.
- हर्पीस के प्रकार व लक्षण
हर्पीस दो तरह का होता है- HSV-1 यानी हर्पीस टाइप 1 या ओरल हर्पीस व दूसरा HSV-2 यानी जिनाइटल हर्पीस या हर्पीस टाइप 2. बात करें इस बीमारी के लक्षणों की, तो कई लोगों में महीनों तक तो इसके लक्षण नजर ही नहीं आते हैं. इसीलिए यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है. वहीं कुछ लोगों में 10 दिनों के अंदर ही हर्पीस अपना रूप दिखाना प्रारम्भ कर देता है.- हर्पीस की स्थिति में प्राइवेट भाग व शरीर के अन्य हिस्सों में पानी भरे दाने निकल आते हैं. जैसे ही ये थोड़े बड़े होते हैं, फूट जाते हैं व जब यही पानी शरीर के अन्य हिस्से में लगता है तो वहां भी संक्रमण फैल जाता है.
- पूरे शरीर में दर्द व खुजली होती है. मुंह के अतिरिक्त शरीर के अन्य हिस्सों में घाव हो जाते हैं.
- हमेशा बुखार रहता है व लिंफ नोड्स बहुत ज्यादा बड़ी हो जाती हैं.
- शरीर पर जगह-जगह लाल रंग के चकते उभर आते हैं.
- इन दानों के निकलने के पहले रोगी को दर्द होना प्रारम्भ हो जाता है.
हर्पीस का इलाज
इसके उपचार के लिए कुछ घरेलू ढंग भी अपनाए जा सकते हैं, जैसे कि हल्के गरम पानी में थोड़ा सा नमक डालकर नहाने से लाभ मिलता है. प्रभावित हिस्से पर पेट्रोलियम जैली लगाने से भी राहत मिलती है. इसके अतिरिक्त जब तक हर्पीस के लक्षण पूरी तरह से समाप्त न हो जाएं तब तक यौन संबंध या किसी भी प्रकार की यौन क्रिया में शामिल न हों.हालांकि घरेलू उपचार के साथ-साथ डॉक्टरी उपचार जरूर कराएं, नहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है. हर्पीस के उपचार के लिए ऐंटी-वायरस मेडिसिन एसाइक्लोविर दवाई रोगी को दी जाती है ताकि उसके शरीर में मौजूद वायरस नष्ट हो जाए. इसके अतिरिक्त फैमसाइक्लोविर व वैलासाइक्लोविर दवाइयां भी रोगी को दी जा सकती हैं. इन दवाइयों के साथ रोगी को सपोर्टिव ट्रीटमेंट भी दिया जाता है.
हर्पीस से बचाव
- हर्पीस का वायरस किसी आदमी को अपनी चपेट में न ले इसके लिए कुछ सावधानियां व बचाव करने की आवश्यकता है. जैसे कि:
- सुरक्षित यौन संबंध बनाएं. संभोग के दौरान कॉन्डम का प्रयोग करें.
- संक्रमित आदमी के साथ यौन संबंध बचाने से बचें व अगर मुंह में घाव हो तो किस या ओरल संभोग न करें.
- इसके अतिरिक्त एक से अधिक सेक्शुअल पार्टनर होने से भी हर्पीस का वायरस अटैक कर सकता है.