आज हम आपको पीएम मोदी के क्लीन इंडिया मिशन के सच्चे हीरो से मिलाते हैं। लेकिन आए दिन इनकी मृत्यु की समाचार आती रहती है। कभी सीवेज की सफाई करते हुए तो कभी जहरीली गैस की चपेट में आकर। ऐसे में सवाल है कि देश में सफाई के नाम पर मृत्यु के कुओं में कब तक स्वच्छता के सिपाहियों की जान जाएगी। ज़ी मीडिया स्वच्छता पर सबसे बड़ा जागरूकता अभियान लेकर आया है। इस अभियान के तहत ठीक जानकारी से सफाई के साथ स्वच्छता के इन सिपाहियों की बचेगी जान। 21वीं सदी में अंतरिक्ष की ऊंचाइयों को छूने वाले हिंदुस्तान के पैर आज भी सेप्टिक टैंक वाली गंदगी में फंसे हुए हैं। राजधानी दिल्ली में ही सचिन जैसे देश में लाखों स्वच्छता कर्मी है जो हर रोज़ मृत्यु के गैस चैबर में उतरते है। दो वर्ष पहले अनिल इसी तरह नाले से गंदगी निकालते वक्त बेहोश हो गये थे व जब होश आया तब उनके शरीर का बायां भाग बेकार हो चुका था।
सचिन दिल्ली के वार्ड नंबर 234 में सफाई का कार्य करते हैं। ज़ी मीडिया से बात करते हुए सचिन ने कहा, ‘इस स्थान पर ड्यूटी है मेरी, कभी-कभी हमें जब कार्य नहीं हो पाता तो हमें ये पोजिशन लेनी पड़ती है। ‘
एक दूसरे सफाईकर्मी अनिल कहते हैं, ‘रिस्क भी होता है व हमको कार्य भी करना होता है। कई बार मेरे सिर पर चोट लगी है 4-4 टांके आए हैं, कई बार अस्पताल चला गया हूं। ‘ आपकी जानकारी के लिए बताते चलें कि सीवर में उतरने वाला हर सफाईकर्मी अनिल या सचिन की तरह खुशनसीब नहीं होता। पिछले वर्ष ही मृत्यु के गैस चैंबर ने देश की राजधानी दिल्ली में 4 लोगों की जान ले ली थी।
अमूमन चाहे घर हो, बेसमेंट हो या सड़क पर बने मेनहॉल। इनमें उतरने से पहले सफाई कर्मचारी कुछ देर तक मेनहॉल के सब ढक्कन हटाकर इस अंदाज़े के साथ उसमें उतर जाते कि गैस बाहर निकल गई होगी लेकिन कई बार ये अंदाजा गलत साबित होता है।
ऐसे में इस हैंडब्लोअर को पहले रिवर्स चलाकर सीवर में उपस्थित ज़हरीली गैस को बाहर निकाला जा सकता है व उसके बाद ब्लोअर को ठीक दिशा में चलाकर मेनहॉल में उपस्थितसफाईकर्मी को ऑक्सीजन भी उपलब्ध कराई जा सकती है। पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो एके मित्तल बताते हैं, ‘जो गैस हैं उस गैस को जाने से पहले इवैक्यूएट करते हैं। उस गैस को खींच लें, या मेनहॉल से निकाल दें। अगर हम उस गैस को सक (Suck) कर सकते हैं व दूसरी तरफ हम ताज़ा हवा को ब्लो करें। ताज़ा हवा का मतलब है कि हवा ही नहीं उसके साथ ऑक्सीज़न भी जाएगी।
एक अनुमान के मुताबिक, अभी भी हर साल तक़रीबन एक हज़ार लोग सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान ज़हरीली गैसों की चपेट में आकर मारे जा रहे हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में कुल 1.8 लाख घर मैला ढोने के कार्य में लगे हुए हैं। इसमें सबसे ज्यादा 63 हजार घर महाराष्ट्र की है, इसके बाद मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा व कर्नाटक का नंबर आता है। हाथ से मैला साफ करना अवैध है व इसे कड़ाई से लागू किए जाने की आवश्यकता हैं तो वहीं जब तक ये संभव न हो तब तक महज 1500 से 2000 रू मूल्य के बाज़ार में मिलने वाले इस साधारण उपकरण से लोगों की जान तो बचाई जा सकती है।