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18 वर्ष की उम्र से पहले ज़रूर पढ़ ले ये 5 किताबे…

बधाई! की तुम 18 वर्ष की हो गई, या आने वाले कुछ वर्षों में हो जाओगी तुममे से ज्यादातर लड़कियां अभी इंटर पास कर के गांव से शहर या शहर से महानगर आने के सपने संजो रही होंगी वहीं कुछ की विवाह तय हो गई होगी, तो कुछ प्रेमी के साथ भागने के लिए ही 18 वर्ष के होने का इंतजार कर रही होंगी आयु की इस दहलीज पर तुम में कई शारीरिक से लेकर मानसिक परिवर्तन होंगे तुम प्यार में पड़ोगी, धोखे खाओगी, प्रेमी के साथ पिता के हाथों पकड़ी जाओगी, किसी दूसरी जाति के लड़के से विवाह करने की जिद्द पर घर से निकाल दी जाओगी या हो सके तो सबकुछ अच्छा-अच्छा ही हो इन दोनों ही परिस्थितियों में ये किताबें तुम्हारी बखूबी मदद करेंगी ये किताबें तुम्हें हौसला देंगी, बतलाएंगी की समाज की जिस परिकल्पना को लेकर तुम चल रही हो वह कितनी विपरित है, कितनी क्रूर है इन किताबों के सहारे तुम अपने अधिकारों  अस्तित्व की पहचान कर सकोगी, इसलिए इन किताबों को जल्द से जल्द अपने अगले जन्मदिन के पहले तक निपटा डालो-
औरत के हक में
तस्लीमा नसरीन को कौन नहीं जानता? स्त्री के स्वाभिमान  हक की लड़ाई लड़ते हुए तस्लीमा का घर तो दूर उनका देश भी छूट गया बांग्लादेश में जारी फतवे के बाद से वह कोलकाता में निर्वासित की जिंदगी जी रही हैं
उनके द्वारा लिखी गई किताब पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के अधिकारों के हनन  उनकी दुर्दशा का हू-ब-हू चित्रण करती है लेखिका लिखती हैं कि इस देश में ‘लड़की जात’ होना सभी समस्याओं की मूल जड़ है इस देश में ‘लड़की जात’ अपने अंदर तमाम खूबियां रखने के बावजूद ‘मानव जाति’ में शामिल नहीं हो सकती

किताब का एक अंश

‘मान लीजिए, मेरा मन चाह रहा हो कि मैं समुद्र स्नान का आनन्द लेना चाहूँ, सीताकुण्ड पहाड़ पर जाऊँ, बिहार के सालवन में जाऊँ, काप्तुई झील में स्पीड बोट लेकर सारा दिन घूमती रहूँ, पद्मा नदी में तैरती रहूँ, तो मुझे क्या करना होगा ? एक मर्द का जुगाड़ करना होगा !

बग़ैर पुरुष के लड़कियाँ दूर कहीं जा नहीं सकतीं, चाहे वे किसी आयु की क्यों न हों ? बस में चढ़ने पर कण्डक्टर पूछता है, आपके साथ कोई आदमी नहीं है ? वे इस बात से निश्चित रहते हैं कि साथ में एक आदमी यानी मर्द ज़रूर ही होगा ‘

नष्ट लड़की नष्ट गद्य

‘औरत के हक में’ की ही पूरक पुस्तक है ‘नष्ट लड़की नष्ट गद्य’ नष्ट इसलिए क्योंकि यह शब्द पुरुषों के लिए नहीं, महिलाओं के लिए इस्तेमाल होता है

लेखिका ने पुस्तक में  बोला है, अंडा नष्ट होता है, दूध नष्ट होता है, नारियल नष्ट होता है  लड़की भी नष्ट होती है किसी भी चीज़ की तरह हमारा समाज किसी लड़की को ‘नष्ट’ कहकर चिह्नित कर सकता है

इस समाज में खुद को मैं ‘नष्ट’ बोलना पसंद करती हूँ; क्योंकि यह हकीकत है कि यदि कोई स्त्री अपने दुख, दैन्य, दुर्दशा को दूर करना चाहती है; धर्म, समाज  देश के अभद्र नियमों के विरूद्धडटकर खड़ी होना चाहती है; हेय ठहराने वाली सभी प्रथाओं-व्यवस्थाओं का विरोध करके अपने अधिकारों के प्रति सजग होने लगती है तो समाज के ‘भद्र पुरुष’ उसे ‘नष्ट लड़की’ करार देते हैंअच्छा भी है, स्त्री के ‘मुक्त’ होने की पहली शर्त ही है-नष्ट होना है ‘नष्ट’ हुए बिना इस समाज के नागपाश से किसी भी स्त्री को मुक्ति नहीं मिल सकती वही स्त्री सचमुच सुखी  प्रबुद्ध इंसान है, जिसे लोग ‘नष्ट अथवा बदनाम’ कहते है

इज़ाडोरा डंकन की आत्मकथा- माय लाइफ

इज़ाडोरा अमेरिकी नर्तक थीं उन्हें कई लोग आधुनिक नृत्य की जननी मानते हैं उनकी लिखी यह आत्मकथा वैसी महिलाओं की छाया दर्शाती है जिन्होंने अपनी जिंदगी कला को समर्पित कर दी किताब कई सवाल खड़े करती है, जैसे- क्या कलाकार स्त्री एक सहज जिंदगी नहीं जी सकती ? इज़ाडोरा ने अपनी किताब के माध्यम से कला से जुड़ी महिलाओं की जिंदगी में आने वाली समस्याओं की कई पर्ते खोल दीं, जिसकी तत्कालीन समय के आलोचकों  कट्टरपंतियों ने जमकर आलोचना की

अगर आपकी रुचि डांस, आर्ट जैसी चीजों में है तो यह किताब जरूर पढ़ें

ए रूम ऑफ वन्स ओन

यह बोलना गलत नहीं होगा की आज के दौर में स्त्री विमर्श की बात वर्जिनिया वुल्फ के बिना पूरी नहीं हो सकती इस

किताब की पूरी पृष्ठभूमि इसके ईर्द-गिर्द सिमटी है कि यदि एक महिला को उपन्यास लिखना है तो उसके पास पैसा  खुद का एक कमरा होना चाहिए एक महिला के लिए उसका खुद का कमरा होना कितना ज़रूरी है उसके विचारों को गति  लिखने की क्षमता को समृद्ध करने के लिए एक खुद का कमरा कितना जरूरी होने कि सम्भावना है

लिहाफ

हिंदुस्तान से उर्दू की लेखिका को अपनी इस किताब के लिए मुकदमा झेलना पड़ा था बाद में माफी भी मांगने को बोला गया किताब में ऐसा क्या लिखा है यह तो आपको उसे पढ़ने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन हम इतना कह सकता हैं कि उन्होंने इस किताब में स्त्रियों के साथ होते जेंडर भेद की कहानी सुनाई है साथ ही किताब में इस्‍मत ने होमोसैक्‍शुएलिटी (दो लेस्बियन की प्रेम कहानी) पर भी बात की है इस्मत चुगताई ने वर्षों पहले स्त्रियों  होमोसेक्शुअल्स के सशक्तिकरण को लेकर इतनी बड़ी लकीर खींच दी,जो आज भी अपनी स्थान कायम है

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