लखनऊ. यूपी बेसिक एजुकेशन प्रिंटर्स एसोसिएशन (यूबीएपीए) ने बेसिक शिक्षा विभाग पर छात्रों को किताबे देने के नाम पर 300 करोड़ का टेंडर घोटाला करने का आरोप लगाया है।
संगठन का आरोप है कि विभाग ने इस साल टेंडर का अधिकतर काम उसी कंपनी (मैसर्स बुरदा ड्रक इंडिया कंपनी प्रा.लि.) को दिया, जिसे पिछले वर्ष इलाहाबाद के डीएम ने ब्लैक लिस्ट कर दिया था। इसके बाद भी कुछ अधिकारियों ने इस कंपनी को टेंडर दिलवा दिया। पिछले साल इसी कंपनी ने दिसंबर तक किताबों की सप्लाई कर घटिया कागज़ भी इस्तेमाल किया था। यह बात भी डीएम इलाहाबाद के रिपोर्ट में थी।
एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेन्द्र जैन ने बृहस्पतिवार को एक प्रेस वार्ता में आरोप लगाते हुए कहा कि बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेंद्र विक्रम सिंह ने नौ मई को इस कंपनी को टेंडर न देने की अपील शासन से की थी। शैलेन्द्र के मुताबिक इस कंपनी का रेट काफी अधिक है, जिससे विभाग को लगभग 55 करोड़ रुपये का नुक्सान होगा। निदेशक ने यह भी कहा कि इस साल मात्र 13 कम्पनियां हैं। इतने कम समय में वह किताबें नहीं दे पाएंगीं। निदेशक ने शासन से अपील की कि फिर से ई-टेंडर कराया जाए। कुछ दिन बाद निदेशक ने अपने ही प्रस्ताव को बदल दिया और इसी कंपनी की तरफदारी करना भी शुरू कर दिया।जैन ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा सत्र में 15 जुलाई तक किताबें देने को कहा है। बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल भी यही कह रही हैं, लेकिन बेसिक शिक्षा विभाग ने किताबें छापने के लिए इस कंपनी को 90 दिन का समय दिया है। ऐसे में सितंबर-अक्टूबर से पहले बच्चों को किताबें नहीं मिल पाएंगीं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल 97 लाख बच्चों को किताबें नहीं मिल सकीं। उस समय टेंडर का काम इसी कंपनी के पास था। उन्होंने कहा कि पिछले साल की तरह इस बार भी नौनिहालों के भविष्य से खिलवाड़ होना तय है।