जिस प्रदूषण को लेकर दिल्ली से लेकर लखनऊ समेत समूचे उत्तर हिंदुस्तान में अफरा-तफरी का माहौल है, उसके सटीक आकलन पर ही गंभीर सवाल उठने लगे हैं. इसलिए क्योंकि देश के 105 शहरों में वायु प्रदूषण की नापजोख के बंदोवस्त हैं लेकिन, 91 शहर सिर्फ एक मशीन के ही हवाले हैं. यानी एक स्थान से ही सारे शहरों की स्थिति बयां की जा रही है. यही कारण है, स्वास्थ्य के लिए सतर्क करने वाली इस रिपोर्ट की सटीकता पर वैज्ञानिक भी सहमत नहीं हैं. हर रोज केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की ओर से जारी एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) बुलेटिन पर उनकी राय जुदा है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि एक ही स्थान स्थापित मशीन से सारे शहर के प्रदूषण का आकलन बिल्कुल वैज्ञानिक उपाय नहीं है. इससे आमजन में तो भ्रम की स्थिति पैदा होती ही है. इन आंकड़ों के आधार पर प्रदूषण नियंत्रण की नीति भी बेहतर तरीका से नहीं बन पाती है.
ऐसे नापा जाता प्रदूषण
एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) विभिन्न शहरों पर बोर्ड की ओर से स्थापित ऑटोमेटिक एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग मशीन से मापा जाता है. इसके जरिए एम्बियंट एयर (हवा जिसमें हम सांस लेते हैं) की 24 घंटे पर्टिकुलेट मैटर (पीएम) 10 व 2.5, ओजोन, सल्फर डाइ आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड आदि की रियल टाइम नापजोख होती है. 24 घंटे के औसत के अनुसार, पीएम 10, 2.5 के साथ किसी एक प्रदूषक के आधार पर एक्यूआइ का आकलन होता है. एक्यूआइ के लिए भिन्न-भिन्न श्रेणी तय कर कलर कोड हैं. हर रोज सीपीसीबी से जारी किए जाने वाले बुलेटिन में इसी आधार पर यह बताया जाता है कि किसी शहर का एक्यूआइ स्तर क्या रहा.
विशेषज्ञों की राय
पर्यावरण विशेषज्ञ डाक्टर कुलदीप कुमार कहते हैं कि जब मौजूदा सिस्टम से प्रदूषण की श्रेणी तय की जाती है तो भ्रम उत्पन्न होता है. शहर को महज एक जगह की मॉनीटरिंग के आधार पर देश का सर्वाधिक प्रदूषित कर दिया जाता है. सीएसआइआर-आइआइटीआर के निदेशक प्रो। आलोक कहते हैं कि बड़े-बड़े शहरों में एक जगह पर की गई मॉनीटरिंग के आधार पर आकलन गलत है. लखनऊ शहर को ग्रिड में बांटकर आकलन हो.