82 वर्ष की अर्नेस्टाइन शेफर्ड का हौसला युवाओं को भी मात दे सकता है. जब वे 11 वर्ष की थीं, तब हादसे में घुटना टूट गया. हड्डियां अच्छा से जुड़ नहीं सकीं व शेफर्ड का एक पैर दूसरे से छोटा रह गया. डॉक्टरों ने उन्हें सलाह दी थी कि वे कभी अभ्यास करने की प्रयास भी न करें, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी.71 की आयु में उन्होंने कड़ा एक्सरसाइज करके शरीर को सुडौल बनाया व चैम्पियन बॉडी बिल्डर बन गईं.शेफर्ड का बोलना है कि 50 वर्ष की आयु तक वे केवल घर के कामकाज तक ही सीमित थीं. एक दिन उनके पति ने पिकनिक प्लान की. इसमें उनकी छोटी बहन वेलवेट भी शामिल हुई.पति के कहने पर दोनों बहनों ने स्विम सूट पहन तो लिया, लेकिन दोनों एक दूसरे को देखकर ठहाके लगाने लगीं। क्योंकि दोनों का शरीर बेडौल हो चुका था. तब दोनों ने चर्च में जाकर कसम खाई कि अब अभ्यास कभी नहीं छोड़ेंगी. शेफर्ड का बोलना है कि अभ्यास प्रारम्भ करने से पहले उन्हें लग रहा था कि उनके लिए यह संभव नहीं है.
बहन की मृत्यु ने तोड़ दिया
शेफर्ड बताती हैं कि 1992 में वेलवेट की मृत्यु के बाद वे निराश हो गईं. लेकिन एक रात बहन उनके सपने में आई व वह कसम याद दिलाई जो उन्होंने चर्च में खाई थी. शेफर्ड का बोलनाहै कि उन्होंने अपनी बहन से सपने में बात की व उसे भरोसा दिलाया कि कसम हर हाल में पूरी होगी.
हौसला हो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं
71 वर्ष की आयु में वे ट्रेनर के पास गईं व कड़ा एक्सरसाइज प्रारम्भ कर दिया. 7 महीने की मेहनत के बाद वे अपने पहले बॉडी बिल्डिंग कॉम्पिटीशन में उतरने के लिए तैयार थीं. शेफर्ड का बोलना है- आयु केवल नंबरों का खेल है, लेकिन जज्बा हमेशा जिंदा रहता है. प्रतियोगिता जीतकरउन्होंने इस मिथक को झुठला दिया कि आयु बढ़ने के साथ शरीर निर्बल होने लगता है. आज वे उम्रदराज स्त्रियों को प्रशिक्षण देती हैं. शेफर्ड कहती हैं कि हौसला होतो कुछ भी नामुमकिन नहीं.