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मोहन भागवत के व्याख्यान पर राष्ट्रीय बेबीनार

रिपोर्ट-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भगवत ने छब्बीस अप्रैल को ऑनलाइन व्याख्यान दिया था। जिसमें समाज सेवा, समरसता, अर्थव्यवस्था जैसे अनेक सामयिक विषय शामिल थे। इसमें भविष्य में भारत की भूमिका को भी रेखांकित किया गया था। कोरोना व लॉक डाउन ने विश्वव्यापी संकट पैदा किया है।

मोहन भागवत ने वर्तमान चुनौती के मुकाबले व भावी योजना पर विचार व्यक्त किया था। उनका व्याख्यान मुख्य रूप से कोरोना के समय सेवा में लगे स्वयंसेवकों और जमीन पर काम में लगे हुए लोगों के लिए था। इसमें उन्होंने बताया था कि किस अपनी राष्ट्रीय व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करना है। उन्होंने स्वदेशी अर्थ तंत्र की ओर विशेष जोर दिया था। संकटकाल से बाहर निकलेंगे के बाद कठिन आर्थिक संकट से उबरने के लिए स्वदेशी का मार्ग अपनाना होगा।

उनके इस व्याख्यान पर परिचर्चा हेतु देश के वरिष्ठ लेखक स्तंभकारों की नेशनल बेबीनार का आयोजन किया गया। इसमें स्वदेशी जागरण मंच के आर. सुन्दरम, स्वदेशी जागरण मंच के संयोजन कश्मीरी लाल का मुख्य व्याख्यान हुआ।

प्रश्नोत्तर के बाद बेबीनार का समापन हुआ। बेबीनार में स्वदेशी को अपनाने पर बल दिया गया। पूंजीवादी व साम्यवादी दोनों व्यवस्थाएं विफल साबित हुई है। भारत के चिन्तन से ही विश्व का कल्याण संभव है। वर्तमान परिदृश्य भारत को ही मुख्य भूमिका निभानी होगी। स्वदेशी का आचरण आज हमारा सम्बल बना है। समाज और देश को स्वदेशी को अपनाना होगा। संकट को अवसर के रूप में समझने की आवश्यकता है। इसी से बेतरह भारत की राह निर्मित होगी। स्वदेशी उत्पाद में क्वालिटी पर ध्यान देने की आवश्यकता है। विदेशों पर निर्भरता को कम करना होगा।स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। वर्तमान परिस्थिति में आत्मसंयम और नियमों के पालन का भी महत्व है। वर्तमान के मुकाबले के साथ भविष्य की चुनौतियों के लिए भी तैयारी करनी होगी। आज जो अस्त व्यस्त हुआ है,उसे ठीक करने में समय लगेगा। बाज़ार,फैक्ट्री, उद्योग,शुरू करने में भी सावधानी दिखानी होगी।


कोरोना को परास्त करने के लिए आत्मसंयम का परिचय देना होगा।अर्थव्यवस्था का भारतीयकरण करना अपरिहार्य है। आर्थिक क्षेत्र में स्वावलंबन को महत्व देना होगा। केवल नौकरी से सबका भला नही हो सकता। स्वरोजगार की व्यवस्था करनी होगी। अर्थनीति, विकासनीति की रचना अपने सिस्टम के आधार से करना होगी। भारतीय चिंतन के अनुरूप नीति बनाने पर बल दिया।

आज भी अधिसंख्य आबादी गांव में रहती है। इसलिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना होगा। सर्वाधिक रोजगार का सृजन यहीं से होगा। इसी के साथ पर्यावरण का संरक्षण करना होगा। यह कार्य भी भारतीय चिन्तन से संभव है। पृथ्वी सूक्त का सन्देश भारत ने ही दिया। इस पर अमल करना आवश्यक है।

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