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सुदृढ रणनीति का भारतीय मंसूबा

रिपोर्ट डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

भारतीय विदेशमंत्री चेतावनी भरे लहजे से चीन का रुख नरम हुआ है। भारतीय विदेशमंत्री जयशंकर से चीनी समक्ष ने फोन से वार्ता की थी। जयशंकर ने साफ कहा कि ऐसी हिंसक हरकतों का द्विपक्षीय रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने सख्त लहजे में कहा कि भारत जबाब देना जनता है। पूरी दुनिया कोरोना आपदा से परेशान है। प्रत्येक देश इससे बचाव के प्रयास में लगा है। इसके लिए अनेक देश अपने टकराव भूल कर आपसी सहयोग के लिए तैयार हुए है। लेकिन इसी दुनिया चीन,पाकिस्तान जैसे देश और आतंकवादी संगठन भी है। जिनके लिए यह हिंसा व तनाव फैलाने का अवसर है। उनकी बचाव में नहीं विनाश में दिलचस्पी है।

इसके अलावा इस समय नेपाल का नेतृत्व भी चीन की शरण में है। उसकी आपदा में सबसे पहले राहत के लिए दौड़ने वाला भारत ही रहा है। लेकिन वहां की सरकार भी अपना कम्युनिस्ट चेहरा दिखा रही है। भारत को इस बात का गर्व है कि उसके सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगाकर सीमाओं को सुरक्षित रखा है। चीन इस समय कई कारणों से बौखलाया हुआ है। पहला यह कि कोरोना संक्रमण को प्राकृतिक नहीं बल्कि निर्मित बताया जा रहा है। यह निर्माण चीन ने किया। वह अपने लैब में इसे सुरक्षित नहीं रख सका। चीन से यह पूरी दुनिया में फैल गया। चीन ने इसे छिपाया। इससे यह संक्रमण पूरी दुनिया में फैल गया। इससे चीन के प्रति नाराजगी है। दूसरा कारण यह कि भारत ने उसकी वन बेल्ट वन रूट योजना का विरोध किया। इससे कई अन्य देशों ने भी इससे अपना हाँथ खींच लिया। तीसरा कारण यह कि डोकलाम में भारतीय सेना ने उसका मुकाबला किया,इससे वह यथास्थिति के लिए विवश हुआ था। चौथा कारण यह कि चीन को भारत की अमेरिका,जापान इस्राइल से दोस्ती पसंद नहीं आ रही है। इन बातों से बौखला कर उसने यह हरकत की है। वैसे यह चीन भी जनता है कि यह उन्नीस सौ बाँसठ का भारत नहीं है। डोकलाम में उसे इस बात का अनुभव भी हुआ है।

भारतीय विदेश मंत्रालय का बयान भी यही रेखांकित करने वाला है। विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा है कि लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर यथास्थ‍िति बदलने की चीन की एकतरफा कोशिश की वजह से हिंसक झड़प हुई है । विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि नुकसान को टाला जा सकता था । तनाव घटाने के लिए बातचीत हो रही है। झड़प से दोनों पक्षों को पर्याप्त नुकसान पहुंचा है।उन्होंने कहा कि चीन ने आपसी सहमति का सम्मान नहीं किया। हम शांति को प्रतिबद्ध हैं, लेकिन,संप्रभुता को सदैव बनाए रखेंगे। चीन को समझाना चाहिये कि अब भारत 1962 वाला भारत नहीं रहा। अब ईंट का जवाब पत्थर से मिलेगा। उस भारत की लाखों वर्ग किलोमीटर जमीन पर चीन ने कब्जा जमा लिया था। भारत की सीमा के निकट लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल पर फिर अतिक्रमण करने की चेष्टा की है। भारत के सैनिकों ने उसकी हरकतों का मुंहतोड़ जवाब भी दिया है। बताया गया कि चीन की हरकतों के बाद भारतीय सेना और वायुसेना पूरी तरह से तैयार स्थिति में हैं। चीन से लगती सीमा पर भारतीय सेना मुस्तैदी से तैनात और तैयार है। दोनों देशों के बीच चार हजार किलोमीटर से अधिक लम्बी सीमा हैं। इसमें वेस्टर्न सेक्टर लद्दाख, मिडिल सेक्टर उत्तराखंड, हिमाचल और ईस्टर्न सेक्टर सिक्किम व अरुणाचल शामिल हैं। अब भारत चीन से रणभूमि और कूटनीति दोनों मोर्चो पर सक्रिय है।


चीन की इस हरकत को कम्युनिस्ट और आतंकी मुल्क के अलावा किसी का समर्थन मिलना मुश्किल है। ब्रिक्स में भारत भी है। दुनिया की फीसद से अधिक आबादी ब्रिक्स देशों में रहती है। ब्रिक्स देश वित्त, व्यापार, स्वास्थ्य,विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी,शिक्षा, कृषि, संचार,श्रम आदि मसलों पर परस्पर सहयोग के लिए वचनबद्ध है। लेकिन चीन ने इस वादे,सहमति और विश्वास का उल्लंघन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा। देश की संप्रभुता सर्वोच्च है। देश की सुरक्षा करने से हमें कोई भी रोक नहीं सकता। इस बारे में किसी को भी जरा भी भ्रम या संदेह नहीं होना चाहिए। भारत शांति चाहता है,लेकिन भारत उकसाने पर हर हाल में यथोचित जवाब देने में सक्षम में है। हमारे दिवंगत शहीद वीर जवानों के विषय में देश को इस बात का गर्व होगा कि वे मारते मारते मरे हैं।गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि चीन भारत सीमा पर शहीद हुए जवानों के परिवारों के साथ मोदी सरकार और पूरा देश खड़ा है।अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए जान गंवाने वाले वीरों के बलिदान को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। पूरा राष्ट्र हमारे अमर वीरों को नमन करता है, जिन्होंने भारत की मिट्टी की रक्षा करते हुए खुद को बलिदान कर दिया।

प्रधानमंत्री ने उन्नीस जून को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार कोकहा कि गलवान में सैनिकों को खोना बेहद परेशान करने वाला और दर्दनाक है। हमारे सैनिकों ने साहस और वीरता का प्रदर्शन किया और भारतीय सेना की सर्वोच्च परंपरा को निभाते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया। राष्ट्र उनकी बहादुरी और बलिदान को कभी नहीं भूलेगा। भारत के विदेश मंत्री ने भी चीन को माकूल जबाब दिया है। विदेशमंत्री जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष से कहा कि उनकी कार्रवाई से यह स्पष्ट होता है कि वह यथास्थिति को बदलना चाहते हैं। सभी समझौतों का उल्लंघन कर जमीनी तथ्य बदलना चाहते है। सैनिकों को एलएसी का सम्मान करना चाहिए। इससे छेड़छाड़ वाली कोई एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए। साफ कहा कि ऐसी हरकतों का भारत चीन द्विपक्षीय संबंधों पर असर पड़ेगा। दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर इस घटनाक्रम का गंभीर प्रभाव पड़ेगा।


दोनों पक्षों को उस सहमति का गंभीरता और ईमानदारी से पालन करना चाहिए, जिसपर दोनों पक्षों के सैन्य कमांडर छह जून को सहमत हुए थे। दोनों पक्षों की सेनाओं को द्विपक्षीय सहमति और प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए। उन्हें एलएसी का सम्मान करना चाहिए और ऐसी कोई भी एकतरफा कार्रवाई नहीं करनी चाहिए जिससे इसपर प्रभाव पड़े। विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच हुई फोनवार्ता में यह निर्णय लिया गया कि इस स्थिति को जिम्मेदार तरीके से संभाला जाएगा। और दोनों पक्ष ईमानदारी से छह जून की सहमति को लागू करेंगे। दोनों पक्ष द्विपक्षीय समझौते और प्रोटोकॉल के अनुसार मामलों को आगे बढ़ाने और शांति सुनिश्चित करने के लिए ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। जयशंकर ने वांग से स्पष्ट कहा कि गलवां घाटी में जो भी हुआ वह चीन की पूर्व नियोजित और सोची समझी कार्रवाई थी। इस घटनाक्रम के लिए चीन जिम्मेदार है। बताया जा रहा है कि दोनों ने इस दौरान सीमा पर स्थिति को लेकर चर्चा की। सीमा पर दोनों देशों के बीच झड़प के बाद दोनों के बीच यह पहली वार्ता है। वांग ने जोर देते हुए कहा कि दोनों पक्षों को मतभेदों को सुलझाने के लिए मौजूदा तंत्र के माध्यम से संचार और समन्वय मजबूत करना चाहिए।

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