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नेपाल में ओली के खिलाफ देश व्यापी हड़ताल सफल, प्रदर्शनकारियों-पुलिस के बीच झड़प

नेपाल में संसद भंग करने और राष्ट्रपति के आम चुनाव की घोषणा के बाद से निरंतर राजनीतिक माहौल गर्म है। प्रधानमत्री केपी शर्मा ओली के संसद भंग के खिलाफ अब  देश में सियासी गलियारों में विरोध तेज हो गया है  जिस कारण ओली की मुसीबतें और बढ़ सकती हैं।  कम्युनिस्ट पार्टी के  पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ धड़े के आह्वान पर आज पूरे देश में बंद और हड़ताल पूरी तरह सफल रही । इस दौरान नेपाल की राजधानी काठमांडू  में  प्रदर्शनकारियों व पुलिस के बीच झड़प भी हुई और कुछ वाहनों में तोड़फोड़ और आग लगा दी गई। हड़ताल के सफल होने के बाद ओली का सियासी भविष्य संकट में नजर आने लगा है।

बता दें कि प्रधानमत्री केपी शर्मा ओली  द्वारा 20 दिसंबर को सरकार भंग करने के  निर्णय के विरोध में सत्तारूढ़ पार्टी ही दो फाड़ हो गई है। सरकार भंग होने के बाद  ओली द्वारा संवैधानिक संस्थाओं में इस सप्ताह ही नियुक्तियां किए जाने के मामले ने तूल पकड़ लिया। विपक्ष का आरोप है कि प्रधानंमत्री एक तरफा निर्णय ले रहे हैं। इसके बाद  ओली से अलग हुए पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड धड़े ने देशव्यापी हड़ताल का निर्णय लिया ।

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हड़ताल की घोषणा के बाद गुरुवार को पूरे नेपाल में इसका जबर्दस्त असर देखने को मिला है। व्यापार-दुकानें, शिक्षण संस्थाएं बंद रहने के साथ ही सड़कों पर वाहन भी बहुत कम थे। अधिकांश सड़कों पर सन्नाटा पसरा  रहा। पार्टी के प्रवक्ता नारायण काजी श्रेष्ठ ने बुधवार को कहा कि सरकार द्वारा विभिन्न संवैधानिक संस्थानों में नियुक्त नए सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाने के सरकार के कदम का विरोध करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी के गुट ने हड़ताल की।

उन्होंने कहा कि हड़ताल के दौरान यातायात सेवा, बाजार, शिक्षण संस्थाएं बंद रहेंगी।उल्लेखनीय है कि बुधवार की सुबह मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा ने राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी की उपस्थिति में करीब चार दर्जन लोगों को विभिन्न संवैधानिक निकायों के लिए पद की शपथ दिलाई। संसद के भंग होने के बाद संवैधानिक निकायों के लिए निवनियुक्त सदस्यों ने सामान्य प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए संसदीय सुनवाई के बिना पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। श्रेष्ठ ने विभिन्न संवैधानिक निकायों में पदाधिकारियों एवं सदस्यों की ओली सरकार द्वारा नियुक्ति को अंसवैधानिक करार दिया। उन्होंने कहा कि यह सरकार की अधिनायकवादी प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है।

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