क्या आप जानते हैं कि समय देखने की जो पद्धति आज प्रचलित है वह हमारी सभ्यता की नहीं है अपितु मिश्र की सभ्यता से प्रयोग में लाई गई है। 14वीं -15वीं शताब्दी में फ्रांस ने इस समय सिद्धांत को लेकर समय निर्धारण की एक घड़ी का अविष्कार किया जिसमें सूर्य को आधार न मान कर दिन और रात को चैबीस भागों में विभाजित कर दिया गया। यह निर्धारण अंग्रेजों को बहुत पसंद आया, क्योंकि उस समय पूरी दुनिया के अधिकांश भाग पर अंग्रेजों की हुकूमत थी और व्यापार के लिए मुख्य रूप से पानी के जहाज पर अंग्रेजों का ही आधिपत्य था। इस कार्य में समय निर्धारण की यह पद्धति अंग्रेजों के लिए उपयोगी साबित हुई।
पर यह पद्धति प्रामाणिक नहीं थी। जहां भी अंग्रेजों ने शासन किया इस घड़ी के प्रयोग को प्रचारित और प्रसारित करते रहे। कालान्तर में यही घड़ी सभी की आदत का एक हिस्सा बना गया। कभी किसी ने इस विषय में जानने की कोशिश नहीं की कि जब यह पृथ्वी गोल है तो प्राइम मेरिडियन इंग्लैंड में ही क्यों है? यह कम या ज्यादा भी हो सकते थे। क्या मिश्र के अलावा और कोई सभ्यता समय की इकाई को माप नहीं सकती थी?
रात 12 बजे तारीख बदलने से कभी दिन नहीं हो सकता, पूरे विश्व में सूर्योदय के समय शून्य बजे से दिन की शुरुआत
इन्हीं सब प्रश्नों को लेकर अध्ययन, मनन और शोध कर रहे “वैदिक घंटीयंत्रम” के आविष्कारक लखनऊ निवासी 29 वर्षीय आरोह श्रीवास्तव, लखनऊ से कन्याकुमारी तक की साइकिल यात्रा कर लोगों को जागरूक कर रहें है। आरोह श्रीवास्तव के मुताबिक आज समय देखने के लिए हम जिस घड़ी का प्रयोग करते हैं वह केवल मैकेनिजम का कमाल है और ब्रिटिश लोगों ने इसे प्रचलित किया। जिसके अनुसार रात 12 बजे समय बदलने से दिन भी बदल गया और दिन बदला तो सुबह हो गई, पर व्यवहारिक रूप से तो रात ही होती है। दिन तो तब होगा जब सूर्य पृथ्वी पर अपनी किरणें फैलाएगा।
उन्होंने बताया कि ऋग्वेद में पहले से ही कालगणना है और उसके मुताबिक दिन 24 घंटे में नहीं बल्कि 30 मुहूर्त में विभाजित है। इस मुहूर्त गणना से ही यह पता चल सकता है कि सूर्योदय शून्य समय पर होता है और जिस वक्त सूर्योदय होता है उस वक्त धरती की स्थिति क्या रहती है। इसी बात को ‘आरोह श्रीवास्तव ने वैदिक घड़ी का शक्ल देने का निर्णय किया और उसके बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए साइकिल से भारत की यात्रा करने के लिए निकल पड़े।
सूर्य की एक परिक्रमा के बाद होता है दिन और रात
आइए जानते हैं कि भारतीय कालगणना का मुख्य आधार सूर्य पर आधारित है। पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा जब पूर्ण कर लेती है, तब एक वर्ष होता है। जब पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर पूर्ण करती है, तब एक दिन और एक रात होती है। इसी आधार पर हमारे वैदिक ऋषियों ने वेदों में पांच हजार वर्ष पूर्व इस बात का स्पष्ट, वैज्ञानिक और प्रामणिक कालगणना के सूत्र को प्रतिपादित किया है।
जब ऋग्वेद का अध्ययन हम करते हैं, तब यह जानकारी मिलती है कि मनुष्यों और सम्पूर्ण पृथ्वी पर जीव जन्तुओं को सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे किस प्रकार प्रभावित करते हैं। सूर्य के इस प्रभाव की सटीक गणना होना अति आवश्यक है। इस प्रकार पृथ्वी की इन्ही आवश्यकताओं को जानकर वेदाचार्यों ने सूर्य को ही आधार बनाकर सटीक कालगणना को प्रतिपादित किया है। आरोह का कहना है कि आज आधुनिकता और विदेशी संस्कृति के प्रभाव ने हमें जहां एक ओर अपनी संस्कृति से दूर किया है वहीं प्रामाणिक ज्ञान को भी हम लगभग भूलते जा रहे हैं।
आरोह कहते हैं कि साक्षात महाकाल शिव ने मेरा मार्ग प्रशस्त किया और मैंने कोई एक वर्ष तक वेद-पुराण आदि ग्रंथों का अध्ययन किया जिसमें मुझे भारतीय कालगणना के विषय में जानकारी प्राप्त हुई। यह भी ज्ञात हुआ कि भारतीय कालगणना वैज्ञानिक रूप से अधिक सटीक है। ऋग्वेद इस बात की प्रामाणिकता का समर्थन करते हैं। आज जो घड़ी हम प्रयोग कर रहे हैं। वह तो मैकेनिकल है। जिसका आधार एक प्रकार से माना हुआ है। रात बारह बजे समय बदल जाता है अर्थात समय बदलने से दिन भी बदल गया और दिन बदला तो सुबह हो गई, पर व्यवहारिक रूप् से तो रात ही होती है। दिन तो तब होगा जब सूर्य पृथ्वी पर अपनी किरणों को फैलायेगा।
डिजिटल रूप में बनाया गया है वैदिक घटीयंत्रम
आरोह के अनुसार इस बात का अध्ययन करते हुए उन्हें यह ख्याल आया कि समय गणना का एक ऐसा यंत्र बनाया जाना चाहिए जिसमें समय कि निर्धारण “सूर्य उदय” से होगा। वहीं से समय प्रारम्भ होगा। इस यंत्र का नाम दिया गया है ‘‘वैदिक घंटीयंत्रम‘‘।
दो वर्ष तक लगातार कई प्रयास किये पर सफलता नहीं मिली क्योंकि मै भी मैकेनिकल रूप् से ही बनाने का प्रयास कर रहा था। जबकि यह यंत्र तो डिजिटल (सूक्ष्म) ढंग से कार्य करेगा। आज जिस समय में हम हैं वह युग डिजिटल युग है। तब इस वैदिक घंटीयंत्रम को जीपीएस, इंटरनेट और सैटेलाइट आदि के साथ ही आधुनिक विज्ञान की मदद से डिजिटल रूप में बनाया गया है।
वैदिक घटीयंत्रम के अनुसार प्रत्येक दिन में क्रमश: 30 मुहूर्त, 30 काल और 30 कास्था की गणना
वेदांग के अनुसार इस वैदिक घंटीयंत्रम में सूर्योंदय से अगले दिन सूर्योदय तक समय को तीस भागों में विभाजित किया गया है। जिस प्रकार आज समय जानने के लिए यांत्रिक घड़ी में “घंटे-मिनिट-सेकेंड” का प्रयोग होता है। उसी प्रकार वैदिक घंटीयंत्रम में “मुहूर्त-काल-कास्था” होते हैं। यांत्रिक घड़ी के अनुसार प्रत्येक दिन में चैबीस घंटे, एक घंटे में साठ मिनिट और एक मिनिट में साठ सेकेंड होते हैं। इसी प्रकार ‘वैदिक घटीयंत्रम के अनुसार प्रत्येक दिन में 30 मुहूर्त, एक मुहूर्त में 30 काल और एक काल में 30 कास्था होते हैं।
यांत्रिक घड़ी और वैदिक घटीयंत्रम की यदि तुलना की जाए तो पता चलता है कि एक दिन अर्थात 24 घण्टे = 30 मुहूर्त। एक काल = 96 सेकेंड। एक कास्था = 1.6 सेकेंड है। आज की घड़ी के अनुसार सूर्य उदय का समय प्रति दिन बदल जाता है, जबकि सूर्य स्थिर है, हमारी पृथ्वी ही उसकी परिक्रमा करती है तो हमे सूर्य की स्थिरता के अनुसार अपनी कालगणना करनी चाहिए जो की ऋग्वेद में वर्णित है। जंतर-मंतर भी काल की इसी गणना पर आधारित है। प्रचलित कालगणना अर्थात समयनुसार बहुत से देश और शहरों को सूर्य की रोशनी का पूरा फायदा नहीं मिल पाता है। हमारे वैदिक कालगणना के अनुसार इस समस्या के स्थाई समाधान की सम्भावना बढ़ जाती है।
जीवन जीनें के दो पहलू हैं, धर्म और विज्ञान…। हमारे ऋषि-मुनियों, संतों, विचारक और वैज्ञानिकों आदि ने जिन पर कई ग्रंन्थों की रचना कर जीवन जीने के मार्ग को प्रशस्त किया है। आज समय आ गया है कि हम अपनी संस्कृति को जानें और अपनी सभ्यता, धर्म संस्कार और वैदिक आचरण को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाये। इस बदलाव का प्रारम्भ अंग्रेजों द्वारा हम पर थोपे गए समय मापक यंत्र ‘घड़ी’ के बदले ‘घटीयंत्रम’ के प्रयोग से किया जा सकता है।
आरोह श्रीवास्तव का लखनऊ में भव्य स्वागत
वैदिक घटीयंत्रम के आविष्कारक आरोह श्रीवास्तव साइकिल से संपूर्ण भारत का भ्रमण करते हुए लगभग 6000 किलोमीटर की यात्रा के बाद रविवार को वापस लखनऊ पहुंचे हैं। इस अवसर पर नगर की विभिन्न संस्थाओं ने उनका अभूतपूर्व स्वागत किया। जिया मऊ स्थित विश्व संवाद केन्द्र में आयोजित स्वागत समारोह में स्वदेशी जागरण मंच, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, समर्थ नारी समर्थ भारत, भाजपा सांस्कृतिक प्रकोष्ठ अवध प्रांत, दुर्गा पूजा समिति गोमतीनगर, हिंदू जागरण मंच, दीनदयाल उपाध्याय सेवा समिति, संस्कार भारती, विश्व संवाद केंद्र, नारायण सेवा संस्थान, खुशी फाउंडेशन, माधवबाग आयुर्वेदिक संस्थान, धर्म जागरण मंच, सामाजिक समरसता मंच, गायत्री परिवार शांतिकुंज हरिद्वार आदि संस्थाओं ने भाग लिया।