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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस विशेष संघर्ष से जन्मी सारिका दुबे

चन्दौली। रख याद कि क्या तेरी हस्ती है, तुझमें दुर्गा और काली भी बसती है। उक्त कथन जनपद चंदौली के धूस खास निवासी सारिका दुबे पर चरितार्थ होती है। भारत एक पुरुष प्रधान देश है, पुरुष प्रधान देश में किसी नारी का आगे बढ़ना किसी युद्ध को लड़ने से कम नहीं है, लेकिन इस कदम को अपवाद साबित सारिका दुबे ने किया है।अपने सकारात्मक जनसेवा एवं उत्कृष्ट सोच से दिव्यांगों, बच्चे महिलाओं के लिए लगातार कार्य करने से जनपद ही नहीं वरन प्रदेश एवं देश में कई बार सम्मानित हो चुकी हैं। गौरतलब हो वर्ष 2018 में यूरेशिया वर्ल्ड रिकॉर्ड का खिताब अपने नाम किया। इतिहास में भरत ने सिंह (शेर)का दाँत गिनकर बचपन मे अपनी मौजूदगी का एहसास करा दिया था उसी प्रकार सारिका जी संघर्षों का आगाज बचपन मे ही हो गया। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण समाज के भय के कारण अपने ही दादा ने पढ़ाई बंद करवा दी, परंतु पिताजी के सहयोग से छुप कर मीलों पैदल चलकर कर अपनी शिक्षा प्राप्त की।

वर्ष 2015 में छात्राधारी सिंह पीजी कॉलेज से स्नातक कर सरकारी नौकरी न कर फैसला किया महिलाओं एवं बच्चों के विकास के लिए कार्य करने लगी ।अपनी बेहतर कार्यकुशलता से वर्ष 2019 में राष्ट्रीय अवार्ड चेंज मेकर से नवाजा गया, वर्ष 2020 में युवा समाज सेविका वर्ष 2021 में काशी की बेटी, वीरांगना एवं राष्ट्रीय सम्मान बेस्ट सोशल वर्कर संविधान क्लब दिल्ली में साथ ही ऐसे अन्य कई सम्मान प्राप्त किया।

सारिका बताती हैं कि आने वाले दिनों में अपने निजी एनजीओ “खुशी की उड़ान” के माध्यम से गरीबों, निराश्रितों बच्चे महिलाओं, वृद्धों एवं दिव्यांगों के के उत्थान के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम कर उनकी सेवा का काम किया जाएगा।

रिपोर्ट-अमित कुशवाहा

 

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