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शिवलिंग पर क्यों चढ़ाया जाता है दूध, जानिए कब से शुरू हुई ये परंपरा

हर साल फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को महाशिवरात्रि (Mahashivratri) का त्योहार मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना की जाती है. इस बार महाशिवरात्रि आज 11 मार्च को मनाई जा रही है. हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. इस दिन श्रद्धालु सुबह- सुबह उठकर स्नान कर भगवान शिव की पूजा करते हैं. शिवलिंग पर दूध, धतूरा, भांग और बेलपत्र चढ़ाते हैं.

शास्त्रों के अनुसार दूध को मन के दृष्टिकोण से सात्विक समझा जाता है. मान्यता है कि शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. सोमवार के दिन दूध का दान करने से चंद्रमा मजबूत होता है. शिवजी के रुद्राभिषेक में भी दूध का विशेष प्रयोग किया जाता है. कई लोग व्रत भी रखते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव पर दूध क्यों चढ़ाया जाता है.

क्यों किया जाता है शिवलिंग पर दूध का अभिषेक

दूध चढ़ाने की परंपरा सागर मंथन से जुड़ी हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन से सबसे पहले जो हलाहल विष निकला था. उस विष की ज्वाला से सभी देवता और दैत्य जलने लगे. इस पर सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की. देवाताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने उस विष को हथेली पर रखकर विषपान किया. लेकिन उन्होंने विष को कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया. इसलिए उनका कंठ नीला पड़ गया और उन्हें नीलकण्ठ भी कहा जाता है.

इस विष का प्रभाव भगवान शिव और उनकी जटा में बैठी देवी गंगा पर पड़ने लगा. विष के ताप को कम करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव से दूध ग्रहण करने का आग्रह किया. भगवान शिव ने जैसे ही दूध ग्रहण किया उनके शरीर से विष का असर कम होने लगा. इसके बाद से ही शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई.

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