भारत में ऋषि मुनियों की परंपरा वैदिककाल से ही चली आ रही है। उस काल में हजारों ऋषि, मुनि, तपस्वी हुआ करते थे, जो ज्ञान और विज्ञान को प्रकट करते रहते थे। उन्हीं में से एक है कण्व ऋषि। आओ जानते हैं इनके बारे मं संक्षिप्त जानकारी।
1. प्राचीन काल में कण्व नाम से कई ऋषि हुए हैं जिनमें शकुन्तला का पालन करने वाले ज्यादा प्रसिद्ध रहे हैं।
2. शकुंतला अप्सरा मेनका और विश्वामित्र की पुत्री थीं और राजा दुष्यंत की पत्नी।
3. महाकवि कालिदास ने अपने अभिज्ञान शाकुन्तलम् में दुष्यंत और शकुंतला की कहानी को अच्छे से चित्रित किया है।
4. 103 सूक्त वाले ऋग्वेद के आठवें मण्डल के अधिकांश मन्त्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा उच्चारित हैं।
5. ऋग्वेद के अलावा शुक्ल यजुर्वेद की ‘माध्यन्दिन’ तथा ‘काण्व’, इन दो शाखाओं में से द्वितीय ‘काण्वसंहिता’ के वक्ता ऋषि कण्व ही रहे हैं।
6. ऋग्वेद में इन्हें अतिथि-प्रिय कहा गया है। माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया।
7. महर्षि कण्व ने एक स्मृति की भी रचना की है, जो ‘कण्वस्मृति’ के नाम से विख्यात है।