संचालक निर्धारक कोई तो होगा
अखिल ब्रह्माण्ड विवेचक, रक्षक कोई तो होगा,
संचालक, निर्धारक, निर्णायक कोई तो होगा!
दिन-प्रति दिन, प्रति पल पालनकर्ता कोई तो होगा,
लाख चौरासी योनि, अण्डज-पिण्डज का निर्माता कोई तो होगा!
वह निराकार, आकार, सम्यक, सकल, ध्वनि, प्रकाश, कुछ तो होगा,
आकाश अनंत, पाताल लोक, वेग वायु या जल प्रवाह; कुछ तो होगा!
साधू, सूफी, संत, फकीर के पद चाप के उस पार कुछ तो होगा,
पंचभूत, प्रकृति-रूप, तिमिर-ज्योति, चिन्तन-मनन कुछ, वह सब कुछ है,
वह विन्दू, विराट, शशि ललाट, अदभूत आभास सब कुछ है!
वह परम सत्य, चरम सुंदर और शिव अनुभूति है,
वह चरम सांत, भीषण निनाद और मर्मानुभुति है!
वह निर्विशेष है, निर्विवाद, निष्कलंक, निष्पाप है,
अदृश्य होकर भी वही हर श्वास में साक्षात है!
वह मन से विलग, बुद्धि से परे, एक अटल विश्वास है,
वह ‘साधना’ का साध्य है, अनिर्वचनीय अराध्य है!
मधुसूदन त्रिपाठी
(पूर्व डी.जी.सी. क्रिमीनल)
आजमगढ़