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विश्वास

विश्वास

वादों पर विश्वास किया
रस्ता भी था क्या।
आशाओं की गठरी लेकर
चलना भी तो था।

बाधाएं तो आती रहती
तरह तरह की
आँख मिचौली
इनसे बच बच
राह सँवारी
मोह पाश के ऐसे बंधन
रुकना भी था।

         डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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