भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) पर सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी ने इस पर एक नई बहस शुरू कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर गहरी चिंता जताई.
सीजेआई एनवी रमना ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से कहा कि आपकी सरकार ने कई पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया है, मुझे नहीं पता कि आपकी सरकार आईपीसी की धारा 124 ए को निरस्त करने पर विचार क्यों नहीं कर रही है. इस पर केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने राजद्रोह कानून को निरस्त करने का विरोध किया .
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल किया कि स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के वास्ते महात्मा गांधी जैसे लोगों को ”चुप” कराने के लिए ब्रितानी शासनकाल में इस्तेमाल किए गए प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं किया जा रहा?
सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि इस कानून के तहत दी गई अपार शक्तियों और इसके दुरुपयोग के इतिहास को देखते हुए इसकी तुलना किसी बढ़ई को दी गई आरी से की जा सकती हैं.
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से सबसे अधिक 54 मामले असम में दर्ज किए गए.
जिसे एक पेड़ काट कर फर्नीचर बनाने को कहा गया हो तो उसने पूरा वन काट डाला.सीजेआई एनवी रमना ने कहा कि जब कोई सरकार और प्रशासन की बात मानने से इनकार करकरे तो उस पर राजद्रोह का इल्जाम चस्पा कर दो, क्योंकि अभियोजन की कोई जवाबदेही भी तो नहीं है