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सुभाष चन्द्र बोस: एक अमर हस्ताक्षर

स्वतंत्रता संग्राम के सर्वप्रमुख देशभक्त नेता सुभाष चंद्र बोस जिनका जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा राज्य में कटक में हुआ था, के योगदान को शब्दों में व्यक्त कर पाना लगभग असंभव ही है।  24 वर्ष की अल्पायु में ही उन्होंने देश की आजादी का स्वप्न अपनी आंखों में सजाया और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होकर आजाद हिंद फौज की स्थापना की।

उड़ीसा के कटक में खिला था सन सत्तानवे में फूल पलाश, आजाद हिंद की गठित कर सेना जिसने जीता सबका विश्वास

उनके काम करने का तरीका कुछ अलग था, कुछ खास था। जय हिंद के नारे का उद्घोष कर देश के युवाओं को राष्ट्रभक्ति की भावना से सराबोर होने के लिए प्रेरित करने में जितना हाथ सुभाष चंद्र बोस का रहा उतना शायद अन्य किसी राष्ट्रभक्त का नहीं।
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसे जोशीले नारों को देकर उन्होंने देश के युवा वर्ग में देशभक्ति का जज़्बा पैदा किया, उन्हें वर्षों की गुलामी भरी नींद से जगाया और अपने प्राणों की परवाह न करते हुए देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का जोश भी भरा। उन्होंने देशवासियों से वादा किया कि यदि उन्हें सबका साथ और समर्थन मिलता है तो वह दिन दूर नहीं जब देश आजादी की एक नई भोर देखेगा और एक खुले वातावरण में सांस लेगा।

परतंत्र भारत में बनकर उभरे आजादी की नई एक आस, भारतीय इतिहास के अमर हस्ताक्षर योद्धा थे वीर सुभाष

बोस की क्रांतिकारी बातों से और उनकी बेबाक विचारधारा से प्रभावित होकर अनेक युवा उनका साथ देने को तैयार हुए और आजाद हिंद फौज में शामिल भी हुए।उन सभी के सहयोग से सुभाष चंद्र बोस ने आजादी का स्वर्णिम सवेरा देश को दिखाया।

युवाओं को प्रेरित करते थे देशभक्ति की अजब थी उनको प्यास, लहू का कण कण राष्ट्र को दे डाला शेष रहा ना कोई काश

बोस की काम करने की तकनीक कुछ अलग थी। जहां महात्मा गांधी एक तरफ शांत स्वभाव से शांतिपूर्ण तरीके से आजादी हासिल करने में विश्वास रखते थे, वहीं दूसरी ओर सुभाष चंद्र बोस क्रांतिकारी विचारों के माध्यम से आजादी हासिल करना चाहते थे। किसी की जी हजूरी करना उनको कतई पसंद नहीं था।वे स्वयं ही कहते थे कि दूसरे को अच्छी लगने वाली बातें उन्हें करना नहीं आता। उनके अनुसार अन्याय करना और सहना दोनों ही महापाप होते हैं,इसलिए समर्पण की भावना से जो सही है उसी का साथ देना चाहिए और गलत का सदैव विरोध करना चाहिए।

चौबीस वर्ष की अल्पायु में आईएनसी का किया विन्यास, ना करो गलत ना चाहो गलत कह कर दी राष्ट्र को समर्पित हर सांस

देश के प्रति उनका स्नेह और प्यार कितना था उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिविल सर्विसेज का एग्जाम पास करने के बावजूद भी उन्होंने अपनी लगी लगाई जॉब छोड़ दी और देश भक्ति में लीन हो गए।

देश प्रेम की खातिर छोड़ा सब थे सिविल परीक्षा में भी वो पास, हिंदवासियों के प्रति सदा ही रखते थे वो दिल में मिठास

उस वक्त उनका सिर्फ और सिर्फ एक ही मकसद रहा कि किस प्रकार ब्रिटिश सरकार को भारत से बाहर खदेडा जाए और अपनी स्वतंत्रता हासिल की जाए। गांधी जी से विचारधारा अलग होने के बाद उन्होंने अलग से एक दल बनाया। वे हमेशा कहा करते थे कि “यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिले, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।”
उनके प्रभावशाली नेतृत्व का भारत वासियों पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि आज भी हर एक भारतवासी उन्हें नेताजी के नाम से ही संबोधित करता है। उनके परिवार की बात करें तो नेताजी कटक के एक संपन्न बंगाली परिवार से संबंध रखते थे उनके 7 भाई और 6 बहनें थीं। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माता का नाम प्रभावती देवी था। उन्होंने अपनी सेक्रेटरी एमिली से शादी की जिससे अनीता नाम की उनकी एक बेटी भी हुई जो फिलहाल जर्मनी में परिवार सहित रहती है। ब्रिटिश सरकार को देश से बाहर निकालने की मुहिम में नेताजी ने जापान और जर्मनी से भी सहायता लेने की हर संभव कोशिश की थी जिससे क्रोधित होकर अंग्रेजों ने अपने गुप्तचरों को नेताजी को मारने का आदेश तक दे दिया था। परंतु नेताजी कहां डरने वाले थे।
सोच स्वतंत्र हिंद की तस्वीर था मन में भरा हुलास, बांध कफ़न सिर पर किया ब्रिटिश सरकार का देश निकास
उन्होंने आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थाई सरकार बनाई,जिसे इटली आयरलैंड जर्मनी जापान आदि देशों की सरकारों ने मान्यता भी दी। नेताजी की मृत्यु को लेकर काफ़ी वर्षो तक रहस्य ही बना रहा,क्योंकि उनके परिवार वालों का कहना था कि उनकी मौत 1945 में नहीं हुई थी। उनके परिवार जनों ने उनकी मृत्यु से संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक करने की सरकार से गुहार भी लगाई ।आजाद हिंद सरकार के 72 वर्ष पूरा होने पर इतिहास में पहली बार नरेंद्र मोदी जी ने 2018 में लाल किले पर तिरंगा फहराया,साथ ही,नेता जी की जयंती को भारत सरकार ने पराक्रम दिवस के रूप में मनाने की भी घोषणा की।

पराक्रम दिवस समर्पित उनको तारीख 23 जनवरी है बिंदास, आदर्शों पर चलकर सुभाष के आओ मनाए दिवस है खास

आज उनकी पावन जयंती के अवसर पर चलिए हम सभी मिलकर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके बताए हुए मार्ग पर चलने के लिए प्रण लेते हैं कि देश की रक्षा की खातिर भविष्य में यदि हमें अपने प्राण तक गंवाने पड़े तो हम पीछे नहीं हटेंगे और इसके विकास के लिए हम सदैव प्रतिबंध रहेंगे।
       पिंकी सिंघल

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