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स्वर साम्राज्ञी की संगीत साधना

एक बार किसी कार्यक्रम में लता मंगेशकर और अटल बिहारी वाजपेयी उपस्थित थे। लता मंगेशकर अपने गायन और अटल बिहारी वाजपेयी अपने भाषण के लिए प्रसिद्ध थे। लता मंगेशकर ने अपने संबोधन में अटल के भाषण शैली को विलक्षण बताया था। इसके बाद अटल जी को बोलना था। उन्होंने अपने अंदाज में लता जी का सम्मान किया। कहा कि लता जी स्वर साम्राज्ञी है। जबकि मैं सस्वर और श्वसुर नहीं बन सका। उनका कहना था कि लता जैसा स्वर तो किसी का हो नहीं सकता। मैं तो भाषण दे सकता हूँ। अच्छा स्वर उनके पास नहीं है। इसलिए सस्वर नहीं है। इसकी तुकबंदी में अटल जी ने श्वसुर शब्द का प्रयोग किया था। वह अविवाहित थे। इसलिए कहा कि श्वसुर बन नहीं सकते,सस्वर अर्थात अच्छा स्वर है भगवान ने दिया नहीं। जबकि लता मंगेशकर को तो माता सरस्वती का वरद हस्त प्राप्त है। अटल बिहारी वाजपेयी विनोद पूर्ण ढंग से अपनी बात कही थी। किंतु इसमें पूरी वैचारिक गंभीरता थी। सच्चाई थी।

लता मंगेशकर कोकिल कंठ ईश्वर प्रदत्त था। लेकिन उन्होंने अपनी साधना से इसको निखारा था। फिर ऐसी बुलंदी हासिल की,जिसकी कल्पना अन्य किसी के लिए संभव ही नहीं है। लता का जन्म मध्यमवर्गीय परिवार हुआ था। पहले उनका नाम हेमा था। नाटक का एक किरदार लतिका ऐसा पसंद आया कि इनका नाम लता हो गया। वह चार बहन व एक भाई सबसे बड़ी थीं। जब वह तेरह साल की थी,तब उनके पिता का निधन हो गया। जिसके बाद परिवार की ज़िम्मेदारी लता के ऊपर आ गई।

लता ने संगीत और अभिनय की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से ली थी।उनके साथ उनकी बहनें आशा भोंशले,उषा और मीना भी संगीत सीखा करती थीं। पिता के आकस्मिक निधन के बाद लता ने परिवार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली और छोटी उम्र में ही अपने करियर की शुरुआत की। साल 1942 में लता को एक मराठी फिल्म के लिए गाना का मौका मिला था। लेकिन फिल्म के रिलीज होने से पहले ही किसी कारण वश फिल्म से गाना हटा दिया गया था। उन्होंने इस असफलता को अवसर में बदला। इसके बाद उन्हें कुछ हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में अभिनय करने का मौका मिला। अभिनेत्री के रूप में उनकी पहली फ़िल्म पाहिली मंगलागौर थी। बाद में उन्होंने कई फ़िल्मों में अभिनय किया जिनमें। मांझे बाल,चिमुकला संसार गजभाऊ,बड़ी माँ,जीवन यात्रा,माँद, छत्रपति शिवाजी शामिल थी।

बड़ी माँ में लता के साथ उस समय की प्रसिद्ध गायक व अभेनेत्री नूरजहाँ थी। 1945 में लता जी सपरिवार मुंबई आ गयी। यहां उन्होंने उस्ताद अमानत अली खान से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ग्रहण की। इस दौरान हिंदी फिल्म आपकी सेवा में व पा लागूं कर जोरी में गीत गाया। इस गाने से प्रभावित होकर म्यूज़िक कंपोज़र गुलाम हैदर ने उन्हें एक बड़ा ब्रेक दिया। फिल्म मजबूर में उन्होंने दिल मेरा तोड़ा मुझे कहीं का न छोड़ा गाना गाया। 1949 उनकी संगीत यात्रा में मील का पत्थर साबित हुआ। फ़िल्म महल के गाने आएगा आने वाला से उन्हें जबरदस्त प्रसिद्धि मिली। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक हजार से भी ज्यादा हिंदी फिल्मों और व करीब पैतीस भाषाओं में तीस हजार से अधिक गाने गाए हैं। लता मंगेशकर ने फिल्मों में गाना गाने के अलावा कुछ फिल्मों का निर्माण भी किया है, जिसमें साल 1953 में आई मराठी फिल्म ‘वादाई’, साल 1953 में ही आई हिंदी फिल्म झिंझर, साल 1955 में आई फिल्म कंचन और साल 1990 में आई फिल्म लेकिन आदि शामिल हैं। लता मंगेशकर को फिल्मों में उनके द्वारा दिए गए अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया। लता मंगेशकर को साल 1969 में पद्म भूषण पुरस्कार ,साल 1989 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार , साल 1999 में पद्म विभूषण 1999 और साल 2001 में ‘भारत रत्न’ से भी सम्मानित किया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने मुम्बई पहुंचे। इसके पहले उनके साथ अपनी पुरानी तस्वीरें साझा करते हुएट्वीट कर कहा।मैं शब्दों से परे पीड़ा में हूं। दयालु और देखभाल करने वाली लता दीदी हमें छोड़कर चली गई हैं। वह हमारे देश में एक खालीपन छोड़ गई हैं जिसे भरा नहीं जा सकता। आने वाली पीढ़ियां उन्हें भारतीय संस्कृति के एक दिग्गज के रूप में याद रखेंगी, जिनकी सुरीली आवाज में लोगों को मंत्रमुग्ध करने की अद्वितीय क्षमता थी। लता दीदी के गानों ने कई तरह के इमोशन्स को उभारा। उन्होंने दशकों तक भारतीय फिल्म जगत के बदलावों को करीब से देखा। फिल्मों से परे, वह हमेशा भारत के विकास के बारे में भावुक थीं। वह हमेशा एक मजबूत और विकसित भारत देखना चाहती थी। भारत ही नहीं अनेक देशों में लोगों ने उनको याद किया। असम उत्तराखंड सहित कई प्रदेशों ने उन्हें विशेष सन्दर्भ में याद किया।

भारत रत्न डॉ.भूपेन हजारिका और लता मंगेशकर ने अनेक लोकप्रिय असमिया गीतों को स्वर दिया था। लता मंगेशकर ने 1956 में डॉ. भूपेन हजारिका द्वारा निर्देशित फिल्म ‘एरा बाटर सूर’ में पहला असमिया गीत गाया था। गाना ‘जोनाकरे राति, असमिरे माटी’ गोदावरी नेरे पाररे परा, रद पूवाबर कारने आदि कई ऐतिहासिक गीतों को अपनी आवाज दी।

लता मंगेशकर के गाये यह गीत हर असमिया के दिलों में जगह बना चुके हैं। लता मंगेशकर ने डॉ. भूपेन हजारिका की संगीतबद्ध फिल्म ‘एराबटर सूर’ और फिल्म ‘सिराज द्वितिय के साथ-साथ दो अन्य असमिया फिल्मों ‘अपराजॉय’ और ‘पानी’ में सुधाकांत डॉ भूपेन हजारिका के संगीत निर्देशन में गीतों को अपनी आवाज दी। इसके अलावा असमिया गीतों के एलबम चयनिका में भी डॉ. हजारिका के साथ गीतों को गाया। प्रसिद्ध गढ़वाली गीत मन भरमैगे को लता ने 1988 में स्वर दिया था। लता जी इसमें भी अपना चिर परिचित करिश्मा दिखाया था। इसे सुनकर कोई यह कहेगा कि लता जी गढ़वाली भाषा में पारंगत है।

गाना रिकार्ड करने से पहले लता ने चार घंटे तक रियाज किया था। इस गीत के पारिश्रमिक को उन्होंने एक एनजीओ को बुलाकर उसे दान कर दिया था। लता जी ने रिहर्सल के दौरान साफ कह दिया था कि वह जहां भी गलत गाएं,उन्हें जरूर टोक दिया जाए। गढ़वाली के एक एक शब्द का अर्थ उन्होंने तसल्ली से समझा। फिर गाना गाया। उनकी मातृभाषा मराठी थी। लेकिन वह जिस भाषा में गाना गाती थी,उसकी स्वभाविक अभिव्यक्ति में वह सिद्धहस्त थी। इसके लिए वह विशेष रूप से सजग रहती थी। साथ ही पूरा प्रयास भी करती थी। वह गाने से पहले यह भी पता करती थीं कि वह गाना किस अभिनेत्री पर फिल्माया जाएगा। अभिनेत्री की आवाज के अनुरूप वह लय में परिवर्तन भी कर लेती थी।

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