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सिद्धांत

गांव के सबसे अमीर व्यक्ति बाबू हरदयाल जी के मुख से तीखे कठोर शब्दों को सुनने के पहले ही फूलन रामआज पहले ही अपने को किनारा कर लिया था। याद आ गया था उसे वह दिन जो अपने तीखे शब्दों के वार से उसके आत्मा को लहूलुहान कर दिया था-‘मांस मदिरा खाने वालों से मैं वैसे ही दूर रहता हूं। तुमलोग काम भी तो उसी तरह का करते हो। राह चलते वक्त आजू-बाजू देख कर चला करो फूलन।’ जी ध्यान रखूंगा! फूलन ने इतना कहा तो जरूर लेकिन भीतर से उसका मन खिन्न हो गया था- ‘आगे से शिकायत का हरगिज मौका नहीं दूंगा मालिक।’

यह बात आए गए महीनों हो गए।फूलन बाबू हरदयाल के बातों को सिरे से गांठ बांध लिया था। मुझमें और उनमें अंतर ही क्या है ? छोटा-बड़ा भगवान ने नहीं बल्कि समाज के तेज-तर्रार व दकियानूसी लोगों का देन है।ऐसी कोई चीज नहीं, जिससे छोटे-बड़े का जातिबोध ज्ञात हो।
और आज अहले सुबह बाबू हरदयाल को अपने मुहल्ले की तरफ रुख देखकर फूलन का माथा ठनका।वह मन-ही-मन स्वयं से कहा-‘बाबू हरदयाल सुबह-सुबह अछूतों के मुहल्लों में।’

फूलन रास्ते से हटना चाह रहा था कि बाबू हरदयाल की बातें सुन रुक गया। ‘तुम से ही काम है फूलन।’ ‘क्या है मालिक? ‘फूलन भौचक्क हो कहा। बाबू हरदयाल के स्वरों में हकलाहट अकुलाहट भरा हुआ था। उन्होंने हकलाते हुए कहा-‘मेरा बड़ा बेटा जीवन सड़क दुर्घटना में घायल हो गया है। काफी खून निकला है। शीघ खून की व्यवस्था न की जाए तो मामला गंभीर हो सकता है। जैसा कि डाक्टर ने बताया। ब्लड बैंक में इस ग्रुप का खून नहीं है। वहीं से पता चला कि पिछले माह ब्लड कैंप में बहुत लोगों ने ब्लड दान किया। जिस ग्रुप का खून चाहिए उस ग्रुप का खून आपके गांव का कोई फूलन राम के खून से मैच करता है।

इतना सुनते ही फूलन की भृकुटी तन गई। वह भी उसी लहजे में कहा-‘मालिक हम लोग मांस-मदिरा खाने वाले निम्न जाति के लोग हैं। राह चलते लोगों को दीख जाने से यात्रा में अपशकुन हो जाता है। दिन खराब हो जाता है। मालिक आप भी जानकर गिरगिट की तरह रंग बदल रहे हैं। क्या हुआ आपके उन उसूलों सिद्धांतों का। जमाना बदल गया लेकिन इस दकियानूसी विचार मानसिकता से आप भी जकड़े हुए हैं। इंसान बड़ा नहीं इंसानियत बड़ी होती है फूलन की बातें सुन बाबू हरयाल का मुंह लटक गया था। वह जाने लगे थे तभी फूलन ने रोका- ‘मैं खून देने के लिए तैयार हूं मालिक। लेकिन मेरा खूनआपके बेटे के शरीर में प्रवेश करेगा तो आपके बेटे का बॉडी का पुरा सिस्टम ही बदल जाएगा।’ ‘भाड़ में जाए सिस्टम।’ बाबू हरदयाल ने दहाड़ा। फूलन मंद-मंद मुस्करा रहा था- ‘आ गए लाइन पर। जब अपने पर पड़ता है,तब पता चलता है।’

     राजेंद्र कुमार सिंह

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