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हिमाचल की वादियों में महकेगी मसालों की खुश्बू, भारत सरकार की नई पहल

मसाला फसलों की कार्यशाला में मौजूद किसान व औदयानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी सोलन के अधिकारीगण.
हिमाचल प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां की जलवायु कृषि के लिए बहुत उपयोगी है, लेकिन भौगोलिक समस्याओं के कारण यहां पर सीढ़ीनुमा खेतों में फसल उगाना बेहद ही कठिन है.

ऐसे में यहां के किसानों की आय को दोगुना करने के लिए एक नई पहल को अंजाम दिया जा रहा है. केंद्र सरकार द्वारा हिमाचल के किसानों को मसाला फसलों और सुगंधित पौधों की व्यवसायिक खेती करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी कड़ी में डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में एक राज्य स्तरीय कार्यशाला शुरू की गई है. यह कार्यशाला मिशन फॉर इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ हॉर्टिकल्चर परियोजना की ‘हिमाचल प्रदेश में मसाला फसलों का लोकप्रियकरण’ के तहत विश्वविद्यालय के बीज विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित कर रहा है.

इस दो दिवसीय कार्यशाला में राज्य के सभी 12 जिलों के 150 से अधिक किसान भाग ले रहे हैं. इस कार्यशाला में अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान, बागवानी महाविद्यालय के डीन डॉ. मनीष शर्मा, सभी विभागाध्यक्ष, बीज विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक और कृषि विभाग के अधिकारीयों ने किसानों को मसाला फसल उगाने को लेकर जानकारी प्रदान की .

आपकी जानकारी के लिए बता दें इस परियोजना को भारत सरकार के कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के सुपारी और मसाला विकास निदेशालय द्वारा वित्त पोषित किया गया है. कार्यशाला में 150 से अधिक किसानों को मसाला फसलों व सुगन्धित पौधों की खेती को लेकर गहनता से जानकारी प्रदान की गई.

कार्यशाला के दौरान प्रदर्शनी का निरिक्षण करते हुए कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल.
3000 से अधिक किसान हुए लाभान्वित

जानकारी देते हुए बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. नरेंद्र भारत ने बताया कि यह परियोजना राज्य में 2015-16 से चल रही है. अब तक 30 से अधिक पंचायत स्तरीय, चार जिला स्तरीय और 1 राज्य स्तरीय किसान सेमिनार आयोजित किए जा चुके हैं, जिसमें 3000 से अधिक किसान लाभान्वित हुए हैं. उन्होंने बताया कि इस परियोजना के तहत विश्वविद्यालय द्वारा प्रतिवर्ष अदरक, लहसुन, हल्दी, धनिया, मेथी, जंगली गेंदा, तुलसी आदि की 7 क्विंटल से अधिक रोपण सामग्री की आपूर्ति की जा रही है.

सिरमौर जिले में लहसुन का उत्पादन बढ़ा

इस बारें में कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने बताया कि पिछले कुछ वर्षो से मसाला फसलों की खेती के तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है. केवल सिरमौर जिले में ही लहसुन फसल उत्पादन का क्षेत्र 1600 हेक्टेयर (2015-16) से बढ़कर 4000 हेक्टेयर (2022-23) हो गया है. इस अवधि के दौरान उत्पादन 26500 से बढ़कर 60650 मीट्रिक टन तक पहुंच गया है और 5360 से अधिक सीमांत और छोटे किसान अपनी आय के लिए पूरी तरह से लहसुन पर निर्भर हैं. विश्वविद्यालय एवं लाइन विभाग द्वारा नवीनतम तकनीक एवं ज्ञान के प्रसार से यह संभव हुआ है.

कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल किसानों व अधिकारीयों का संबोधन करते हुए.
प्रोफेसर चंदेल ने कहा कि दुनिया अब भारतीय भोजन और भारतीय मसालों की ओर आकर्षित हो रही है और उनके स्वास्थ्य लाभ इसका एक बहुत बड़ा कारण हैं. उन्होंने कहा कि यह देखकर बहुत खुशी होती है कि हिमाचल प्रदेश में मसालों की खेती बढ़ रही है और यहाँ पर उगाये जा रही मसाला फसलों की मांग देश भर में हैं, विशेषकर दक्षिणी भारत में खरीदार अपने आप यहाँ आ रहें हैं. विभिन्न मसालों के तहत क्षेत्र बढ़ाने पर बोलते हुए उन्होंने किसानों से अपनी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार 2-3 मसाला फसलों की खेती करने का आग्रह किया.

सुगन्धित फसलों की एफपीसी होंगी स्थापित

मसाला एवं सुघन्धित फसलों के लिए हिमाचल में किसानों के समूहों तैयार किया जायेंगे. किसानों को मसाला एवं सुघन्धित फसलों पर आधारित किसान उत्पादक कंपनियों (एफपीसी) की स्थापना करने के लिए प्रोत्साहित किया जायेगा. जो बाजार में उनकी उत्पाद की अच्छी कीमत दिलाने में मदद करेगा. इसके लिए इन एफपीसी को मूल्य संवर्धन और ब्रांडिंग में नौणी विश्वविद्यालय मदद करेगा, जो न केवल बाज़ार में मांग से अधिक मात्रा में उत्पाद पहुँचने के दौरान मदद करेगा बल्कि किसानों की आय को भी बढ़ाएगा.

प्रोफेसर चंदेल ने युवाओं को समूह बनाने और सामूहिक रूप से जंगली गेंदा जैसे सुगंधित पौधों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया. इन फसलों से कटाई के बाद अत्यधिक लाभकारी तेल निकाला जा सकता है. उन्होंने ऐसे किसान समूहों को विश्वविद्यालय की ओर से तकनीकी सहयोग का आश्वासन दिया. उन्होंने किसानों से यह भी कहा कि वे विश्वविद्यालय के साथ मसालों और सुगंधित पौधों की नई किस्मों के बीजों के बड़े पैमाने पर प्रसार में विश्वविद्यालय का समर्थन करें ताकि इन्हें अन्य किसानों को भी उपलब्ध करवाया जा सके.

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