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देश को 2027 तक कुष्ठ रोग मुक्त बनाने का लक्ष्य, पर कई राज्यों में अब भी रोग में वृद्धि जारी

कुष्ठ रोग वैश्विक स्तर पर दशकों से स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बड़ी चिंता का कारण रहा है। लोगों में जागरूकता और रोग के बारे में सही जानकारी के अभाव के चलते कुष्ठ रोग को लेकर बने सामाजिक कलंक के भाव ने इसे और चुनौतीपूर्ण बना दिया था। हालांकि एक-दो दशक में इस रोग में कमी दर्ज की गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा समय में कुष्ठ रोग के सबसे ज्यादा मामले अफ्रीकी और एशियाई देशों में देखे जा रहे हैं। कुष्ठ रोग के बारे में लोगों को जागरूक और शिक्षित करने के उद्देश्य से हर साल जनवरी महीने के आखिरी रविवार को विश्व कुष्ठ रोग दिवस मनाया जाता है।

हालिया रिपोर्ट्स में भारत में कुष्ठ रोग के मामले बढ़ने को लेकर अलर्ट किया गया है। महाराष्ट्र में 18 साल से कम उम्र के बच्चों में कुष्ठ रोग के मामलों की बढ़ती संख्या ने स्वास्थ्य विभाग के लिए चिंता बढ़ा दी है। पिछले साल अप्रैल से दिसंबर के बीच रिपोर्ट किए गए कुष्ठ रोग के 17,048 नए मामलों में से 1,160 मामले (यानी सात प्रतिशत) बच्चों में देखे गए हैं। अधिकारियों ने कहा, बच्चों में कुष्ठ रोग का बढ़ना एक संवेदनशील संकेतक है।

अमेरिका के कई राज्यों में भी बढ़े मामले

अंतराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि अमेरिका में भी पिछले कुछ वर्षों में कुष्ठ रोग के नए मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। वर्ष 2000 के बाद से अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों में कुष्ठ रोग के नए मामलों की दर बढ़ी है। अमेरिका के कुष्ठ रोग का लगभग हर पांचवा केस सेंट्रल फ्लोरिडा से है।

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, कुष्ठ रोग अपने साथ कई और चुनौतियां भी लेकर आता है, जिसमें सामाजिक कलंक का भाव सबसे ज्यादा देखा जाता रहा है। इससे रोगी की मानसिक सेहत भी प्रभावित होती है, जिसके कारण रोग की जटिलताओं के बढ़ने का भी खतरा रहता है।

2027 तक भारत को कुष्ठ रोग मुक्त बनाने का लक्ष्य

गौरतलब है कि साल 2010-11 में बच्चों में कुष्ठ रोग के मामलों की संख्या 12 प्रतिशत से घटकर वर्तमान में कुल मामलों के 5-6 प्रतिशत होने के बावजूद, विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि कुष्ठ रोग कई भारतीय राज्यों में एंडेमिक बना हुआ है। भारत साल 2027 तक देश को कुष्ठ रोग मुक्त बनाने के लक्ष्य पर काम कर रहा है।

अति संक्रामक नहीं है कुष्ठ रोग

स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, यहां जानना जरूरी है कि कुष्ठ रोग भी अन्य संक्रामक रोगों की ही तरह है। कई स्थानों पर इसे हैनसेन रोग के नाम से भी जाना जाता है। ये माइकोबैक्टीरियम लेप्री के कारण होने वाला संक्रामक रोग है जिसमें त्वचा पर घाव के साथ तंत्रिकाओं से संबंधित समस्या, ऊपरी श्वसन पथ और आंखों की दिक्कतें हो सकती हैं। हालांकि इसके उपचार के लिए प्रभावी दवाएं मौजूद हैं जो न सिर्फ संक्रमण को कम करती हैं, साथ ही कुष्ठ रोग के कारण होने वाली जटिलताओं से बचाने में भी सहायक हो सकती हैं।

सामाजिक कलंक को दूर करने की जरूरत

स्वास्थ्य विशेषज्ञ बताते हैं, कुष्ठ रोग की संक्रमण दर अधिक नहीं है। कुष्ठ रोग के शिकार व्यक्ति के साथ आकस्मिक संपर्क होने, हाथ मिलाने या गले मिलने से ये रोग नहीं फैलता है। कई महीनों तक अनुपचारित कुष्ठ रोगी के साथ निकट संपर्क की स्थिति में ही इसके संचरण का खतरा हो सकता है। इसलिए रोगियों से भेदभाव न करें। कुष्ठ रोग को लेकर फैले सामाजिक कलंक को दूर करके ही इस रोग का उपचार आसान किया जा सकता है।

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