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‘रैली-सभाएं बंगाली संस्कृति का अटूट हिस्सा’; चीफ जस्टिस ने मिस्टी दोई-लूची-अलु पोस्तो का नाम भी लिया

नई दिल्ली: अदालतों में मुकदमों की सुनवाई के दौरान कई बार न्यायाधीश दिलचस्प और अहम मौखिक टिप्पणियां करते हैं। ताजा घटनाक्रम कलकत्ता हाईकोर्ट से सामने आया है। उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश टीएस शिवगणनम की अध्यक्षता वाली पीठ ने बंगाल की संस्कृति पर जोर देते हुए एक मार्च की अनुमति दी। हावड़ा के भीड़भाड़ वाले इलाके में यातायात संबंधी चिंताओं के बावजूद सरकारी कर्मचारियों ने राज्य समन्वय समिति की रैली को शांतिपूर्ण ढंग से आयोजित किया। यह घटनाक्रम इसलिए चर्चा में है क्योंकि चीफ जस्टिस ने रैलियों और जनसभाओं को बंगाल की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बताते हुए इनकी तुलना मिष्टी दोई, लूची और अलु पोस्तो जैसे व्यंजनों से की।

चीफ जस्टिस ने बंगाल के लजीज व्यंजनों का जिक्र क्यों किया
बता दें कि लूची मैदे से बनी डीप फ्राइड पूरी जैसा पकवान है। अलु पोस्तो खसखस के पेस्ट में पकाए गए आलू के लजीज व्यंजन हैं। बता दें कि बंगाल के व्यंजनों का जिक्र उस मुकदमे में हुआ जिसमें एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। हालांकि, चीफ जस्टिस ने आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया और कहा कि यातायात को प्रभावित किए बिना रैली आयोजित की जाएगी। पश्चिम बंगाल के सरकारी कर्मचारियों के एक वर्ग का समर्थन करने वाले समूह- राज्य समन्वय समिति ने गुरुवार को राज्य सचिवालय नबन्ना तक रैली आयोजित की।

हर बंगाली जन्मजात वक्ता, पश्चिम बंगाल संस्कृति और विरासत से भरा राज्य
चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम ने कहा कि लूची, अलु पोस्तो और मिस्टी दोई की तरह लगता है कि सार्वजनिक रूप से जनसभा और रैली बंगाली संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि हर बंगाली जन्मजात वक्ता होता है। पश्चिम बंगाल संस्कृति और विरासत से भरा राज्य है।

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