महराजगंज, (समर सलिल)। भगवान बुद्ध की अस्थि के आठवे कलश का पता लगाने के उद्देश्य से महाराजगंज के रामग्राम में केन्द्रीय वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी की मौजूदगी में पुरातत्व विभाग ने खुदाई का ट्रायल शुरू कर दिया है। 15 सदस्यी पुरातत्व विभाग की टीम का नेतृत्व डॉ आफताब हुसेन कर रहे हैं।
- केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने वैदिक मंत्रोच्चार और धम्म पाठ के बीच उत्खनन का कराया शुभारंभ
- पुरातत्व विभाग की 15 सदस्यी टीम ने डॉ आफताब हुसेन के नेतृत्व शुरू किया उत्खनन कार्य
सोमवार 18 नवम्बर को केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने वैदिक मंत्रोच्चार और धम्म पाठ के बीच उत्खनन का शुभारंभ किया। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री ने कहा कि तमाम झंझावतों को पार करके यह शुभ दिन आया है। उत्खनन में प्रमाणित होने के बाद इस क्षेत्र का चहुमुखी विकास होगा।
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टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा.सोहगीबरवा वन्यजीव प्रभाग के जंगल में स्थित कन्हैया बाबा स्थान को बुद्ध के आठवें अस्थि स्तूप की मान्यता के परिप्रेक्ष्य में सोमवार को उत्खनन कार्य का शुभारंभ हुआ। इस दौरान 15 सदस्यीय भारतीय पुरातत्व विभाग की टीम डॉक्टर आफताब हुसैन के नेतृत्व मे मौजूद रही।
टीम में लखनऊ मंडल के सहायक पुरातत्वविद प्रदीप पांडे, सौरव त्रिपाठी, रवि यादव, पुरातात्विक अभियंता अशोक मीणा, पंकज कुमार तिवारी, संरक्षण सहायक अखिलेश कुमार तिवारी तथा रामबृक्ष यादव शामिल थे।
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कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री ने कहा कि भगवान बुद्ध के नाना महाराज अंजन की धरती पर आप सबका स्वागत है। उन्होंने कहा कि हजारों वर्ष पूर्व इसी क्षेत्र से भगवान बुद्ध ने अहिंसा का जो मार्ग दिखाया वो पुरी दुनिया में फैला। यह गौरव का विषय है कि भगवान बुद्ध का ननिहाल और ससुराल महराजगंज जनपद में है।
उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में यहां से लेकर मगध तक आठ महागणराज्य हुआ करते थे। जिसमें से दो गणराज्य महराजगंज मे पड़ते थे। भगवान बुद्ध शाक्य गणराज्य से थे। उनकी पत्नी कोलिय गणराज्य की थीं।
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आठों गणराज्य भगवान बुद्ध के अनुयायी थे। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री ने कहा कि भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के समय हुई घटनाएं भारतीय इतिहास में प्रमाणिक रुप से दर्ज की गई हैं। उन्होंने कहा कि आठवें अस्थि स्तूप के मत मतांतर को लेकर न केवल भारत में बल्कि अन्य देशों में मिथकीय कथाएं प्रचलित हैं। इतिहास की प्रमाणिकता को स्थापित करने के लिए शोध आवश्यक है। उन्होंने कहा कि आज की ये प्रायोगिक खुदाई हजारों वर्ष पुराने इतिहास को प्रमाणिक रुप से देखने का प्रयास मात्र है।