नई दिल्ली। सूखे के समय सिंचाई की जानी वाली खेती में बढ़ोतरी के साथ-साथ खेतों और शहरों को भूजल पर अधिक निर्भर रहने के कारण भूमिगत जल आपूर्ति में गिरावट का चक्र शुरू हो जाता है। अब नासा और जर्मन उपग्रहों से प्राप्त अवलोकनों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम को इस बात के सबूत मिले है कि मई 2014 से धरती पर ताजा और मीठे पानी की कुल मात्रा में अचानक गिरावट आई है और तब से यह कमी लगातार बनी हुई है।
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शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से जब अत्यधिक बारिश होती है तो पानी बह जाता है यानी बर्बाद हो जाता है, बजाय इसके कि वह भूजल भंडार में समा जाए और उसे फिर से भर दे। दुनियाभर में 2014 से 2016 के अल नीनो के बाद से मीठे पानी का स्तर लगातार कम हो रहा है और अधिक पानी जल वाष्प के रूप में वायुमंडल में जमा है।
तापमान बढ़ने से सतह से वायुमंडल में पानी का वाष्पीकरण और वायुमंडल की जल धारण करने क्षमता दोनों बढ़ जाती है, जिससे सूखे की स्थिति की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ जाती है। अनेक दृष्टिमान कारणों से यह साबित होता है कि मीठे पानी में अचानक गिरावट मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के कारण है।
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2014 से 2016 तक का अल नीनो मुख्य रूप से जिम्मेदार
अध्ययन के अनुसार, 2014 से 2016 तक का अल नीनो जलवायु रिकॉर्ड पर सबसे मजबूत अल नीनो घटनाओं में एक थी, जिसमें दक्षिण अमेरिका के तट और अंतरराष्ट्रीय तिथि रेखा के बीच असामान्य रूप से गर्म पानी विकसित हुआ था। इस गर्म पानी ने दुनिया के मौसम को कई तरह से प्रभावित किया जिसके कारण मौसम चक्र भी प्रभावित हुआ। वेनेजुएला, ऑस्ट्रेलिया और कई प्रशांत द्वीपों में सूखे की स्थिति रही। कई जगहों पर भारी बाढ़ भी आई।