Breaking News

भैंसागाड़ी पर निकलेंगे ‘लाट साहब’, कोतवाल देंगे सलामी; 300 साल पुरानी है ये परंपरा

शाहजहांपुर:  उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में होली पर निकलने वाला ‘लाट साहब’ का जुलूस अपने अनोखा और अजीबोगरीब परंपरा है। होली पर एक व्यक्ति को लाट साहब बनाकर भैंसागाड़ी से शहर में घुमाया जाता है। उस पर जूता-चप्पलों के साथ रंगों की बौछार होती है। यह अनूठी परंपरा करीब 300 वर्षों से चली आ रही है। इस बार भी लाट साहब के जुलूस के सकुशल संपन्न कराने के लिए पुलिस प्रशासन ने तैयारियों में जुटा है। रात में भी कर्मचारी काम में जुटे हुए हैं। छोटे-बड़े लाट साहब के जुलूस के रूट पर पड़ने वाले ट्रांसफार्मर को बल्ली लगाकर पन्नी से कवर किया जा रहा है। खंभों पर पन्नी लगाई जा रही है। धार्मिक स्थलों को पहले ही तिरपालों से ढक दिया गया है। लाट साहब के जुलूस के लिए कड़े प्रबंध किए गए हैं। जुलूस मार्ग पर सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। जुलूस के दौरान सीसीटीवी एवं ड्रोन के माध्यम से कड़ी निगरानी की जाएगी।

रंगों और उल्लास के पर्व होली पर लाट साहब का जुलूस निकालने और नवाबों के साथ होली खेलने की परंपरा की कोई निश्चित तिथि तो इतिहास में दर्ज नहीं है, लेकिन यह परंपरा करीब 300 साल पुरानी बताई जाती है। इतिहासकार नानक चंद्र मेहरोत्रा ने अपनी पुस्तक ‘शाहजहांपुर ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक धरोहर’ में लिखा है कि अंतिम नवाब अब्दुल्ला खां हिंदू और मुस्लिम समुदाय में समान रूप से प्रिय थे। उन्होंने अपनी बेटी की शादी हाफिज उल मुल्क से करने के लिए किले के निकट रंगमहल बनवाया था। वर्तमान में इसे रंगमहला कहा जाता है।

किले के बाहर होली खेलते थे नवाब
होली के अवसर पर नवाब अब्दुल्ला किले के बाहर आकर होली खेलते थे। उनके किले से निकलते ही लोग- ‘नवाब साहब निकल आए’ कहते हुए चिल्लाने लगते थे। नवाब साहब के न रहने पर भी जुलूस निकलना बंद नहीं हुआ। उस वक्त जुलूस के दौरान हाथी, घोड़े और ऊंट निकलते थे। बड़े जानवरों के कारण दूसरे समुदाय के लोगों ने अपने घर की दीवारों के नीची होने के चलते बेपर्दगी होने की बात कहते हुए विरोध किया था। यह बात सरकार तक पहुंची तो जुलूस में हाथी, घोड़े और ऊंट शामिल करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद भैंसागाड़ी से जुलूस निकलने लगा।

टकराव के चलते बदला नाम
वर्ष 1947 में दो समुदायों के मध्य टकराव की आशंका के चलते होली पर नवाब का जुलूस निकालने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई। नगर के बद्धिजीवियों ने भी इसके लिए प्रयास किए, लेकिन असफल रहे। हालांकि बाद में इसका नाम नवाब साहब के जुलूस की जगह लाट साहब का जुलूस कर दिया गया।

About News Desk (P)

Check Also

जैसी करनी, वैसी भरनी

कर्मों का हिसाब यहीं होता है। अब पाकिस्तान (Pakistan) में भी यह सब हो रहा ...