कठुआ बलात्कार केस में सोमवार को तीन दोषियों को उम्रकैद की सजा और तीन को पांच वर्ष की सजा सुनाई गई है. न्यायालय का निर्णय आने के बाद से ही सोशल मीडिया पर दोषियों को कम सजा दिए जाने पर बहस छिड़ी हुई है. इस मुद्दे में लेखक जावेद अख्तर ने भी अपने विचार रखे हैं. जावेद अख्तर ने बोला है कि सज़ा-ए-मौत को लेकर उनके स्पष्ट विचार नहीं हैं कि ये ठीक है या गलत है. सज़ा-ए-मौत देना कोई हल भी नहीं है, क्योंकि कई राष्ट्रों में मृत्युदंड पर रोक है लेकिन वहां क्राइम की दर नहीं बढ़ी है. कुछ देश ऐसे भी हैं जहां सज़ा-ए-मौत के बाद भी क्राइम की दर कम नहीं हुई है.
उन्होंने बोला कि देखा जाता है कि यह सजा पाने वाले दोषी दो से तीन वर्ष में ही कारागार से बाहर आ जाते हैं. हालांकि उम्रकैद कड़ी सजा है लेकिन दोषी को कुछ ही वर्षों में कारागार से रिहा हो जाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए.
जम्मू-कश्मीर के कठुआ में पिछले वर्ष जनवरी महीने में आठ वर्ष की एक बच्ची के साथ गैंग रेप, प्रताड़ना व मर्डर मुद्दे में छह दोषियों में से तीन को न्यायालय ने आजीवन कारावास की सजा दी है. इस सनसनीखेज गैंग बलात्कार के बाद देश भर में गुस्सा देखा गया था. न्यायालय के निर्णय के बाद पीड़िता की मां ने मुख्य अभियुक्त सांझी राम को फांसी देने की मांग की थी.
इस मुद्दे की गूंज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सुनने को मिली थी. अप्रैल 2018 में संयुक्त देश महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने आठ वर्षीय बच्ची से बलात्कार व मर्डर की घटना को ‘डरावना’ बताया था. उन्होंने उम्मीद जताई थी कि इस विषय में प्रशासन न्याय जरूर सुनिश्चित करवाएगा.