संयुक्त देश की विशिष्ट संस्था अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आइएलओ) द्वारा जारी वर्किंग ऑन वॉर्मर प्लानेट रिपोर्ट के मुताबकि जलवायु बदलाव के कारण बढ़ती गर्मी से 2030 तक वैश्विक स्तर पर कार्य के घंटों में 2.2 फीसद की गिरावट होगी, जो कि आठ करोड़ नौकरियों के बराबर है. तापमान में वृद्धि से उत्पन्न स्वास्थ्य में खराबी के कारण लोग कार्य करने में असमर्थ होंगे. विकासशील राष्ट्रों पर इसका प्रभाव ज्यादा होगा. इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा.भारत को होगा ज्यादा नुकसान
रिपोर्ट के अनुसार, अपनी बड़ी आबादी के कारण हिंदुस्तान को इसका खामियाजा ज्यादा भुगतना पड़ेगा. यहां कार्य के घंटों में 5.8 फीसद की कमी आएगी, जो कि3.4 करोड़ नौकरियों के बराबर है.
लगेगी आर्थिक चोट
1995 में बढ़ती गर्मी के कारण वैश्विक स्तर पर 280 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था. लेकिन 2030 में यह आंकड़ा 2.4 ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा. इसमें निम्न मध्यम व निम्न आय वाले देश सबसे अधिक प्रभावित होंगे.
अन्य राष्ट्रों की स्थिति
बढ़ती गर्मी से चाइना अपने कुल काम घंटों का 0.78 फीसद खो देगा, जो कि 50 लाख नौकरियों के बराबर है. जबकि अमेरिका कुल काम घंटों का 0.21 फीसद खो देगा, जो कि 30 लाख नौकरियों के बराबर है. कई एशियाई व अफ्रीकी राष्ट्रों को कार्य के घंटों में अधिक गिरावट आने का अनुमान है. चाड में कार्य के घंटों में 7.11 फीसद की गिरावट आ सकती है. वहीं सूडान में 5.9, कंबोडिया में 7.83 व थाईलैंड में 6.39 फीसद की गिरावट आ सकती है.
बन सकता बड़ा खतरा
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बोला है कि बढ़ती गर्मी के कारण 2030 व 2050 के बीच संसार भर में प्रतिवर्ष 38,000 अलावा मौतें होने की आसार है.
यह क्षेत्र होंगे प्रभावित
कृषि व निर्माण क्षेत्र बढ़ती गर्मी के कारण बुरी तरह प्रभावित होंगे. दोनों कार्य के घंटों का 60 फीसद व 19 फीसद खो देंगे. परिवहन, पर्यटन, खेल व औद्योगिक जैसे क्षेत्र भी प्रभावित होंगे.
क्या है जलवायु परिवर्तन
औद्योगिक क्रांति के बाद भूमि का औसत तापमान वर्ष दर वर्ष बढ़ रहा है. आइपीसीसी की रिपोर्ट ने इससे पहली बार आगाह किया था. अब इसके दुष्परिणामभी सामने आने लगे हैं.गर्मियां लंबी होती जा रही हैं व सर्दियां छोटी. पूरी संसार में ऐसा हो रहा है. प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति व प्रवृत्ति बढ़ चुकी है. ऐसा ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की वजह से हो रहा है.
तेजी से बढ़ेगा पलायन
काम के घंटे कम होने के कारण बेहतर कार्य की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों से लोग शहरों व अन्य राष्ट्रों की ओर तेजी से पलायन करेंगे. रिपोर्ट में बोला गया है कि 2005 से 2015 की अवधि के दौरान गर्मी का स्तर बढ़ने से आउट-माइग्रेशन में तेजी से वृद्धि देखी गई थी.