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देश में बेहद निर्बल होती जा रही हैं शिक्षा व्यवस्था…

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से राज्यों की स्कूली एजुकेशन की गुणवत्ता में सुधार के लिए जारी पहली परफॉरमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स 2017-18 रेखांकित करती है कि एजुकेशन की पहुंच के मुद्दे में देश लक्ष्य से कोसों दूर है. रिपोर्ट में देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी की परफॉरमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स देश के अन्य राज्यों मसलन, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड  दिल्ली से नीचे है. इंडेक्स में गुजरात, चंडीगढ़  केरल के स्कूलों का प्रदर्शन सबसे अच्छा है. मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने सत्तर बिंदुओं के पैमाने पर आधारित परफारमेंस ग्रेडिंग इंडेक्स यानी पीजीआइ रिपोर्ट को 2018 से तैयार करने की आरंभ की है. मंत्रालय ने इन बिंदुओं के आधार पर सभी राज्यों से आॅनलाइन जानकारी मांगी थी  उनकी सूचना पर रिपोर्ट तैयार की गई. बताते चलें कि राज्यों की एजुकेशन व्यवस्था के प्रदर्शन को छह अंकों में विभाजित किया गया था, जो कि 1000 से 551 मूल्यांकन पर आधारित था. इसमें कोई प्रदेश शामिल नहीं हो सका है, क्योंकि उनकी परफारमेंस 1000-851 वेटेज के मानकों को पूरा नहीं करती. चंडीगढ़, गुजरात  केरल को 801-851 का वेटेज या ग्रेड एक की श्रेणी मिली है. हरियाणा  पंजाब को 751-800 वेटेज के साथ ग्रेड दो, हिमाचल  उत्तराखंड को गे्रड तीन संग 701-750 वेटेज  जम्मू और कश्मीर तथा यूपी को ग्रेड पांच के साथ 601-650 का वेटेज मिला है. ऐसे में इन आंकड़ों से समझना मुश्किल नहीं है कि देश में एजुकेशन की हालत कितनी बदतर है.इसके पहले भी अन्य कई रिपोर्टों में बदतर एजुकेशन व्यवस्था का उल्लेख हो चुका है. एजुकेशन की हालत कितनी जर्जर है, यह इसी से समझा जा सकता है कि देश के प्राथमिक विद्यालयों के तिरपन फीसद से अधिक बच्चे दो अंकों वाले घटाने के सवाल हल नहीं कर पाते. आधे से अधिक बच्चे गणित में बेहद निर्बल हैं. पांचवीं के अस्सी फीसद विद्यार्थी दूसरी कक्षा के पाठ ठीक ढंग से पढ़ नहीं पाते. आठवीं के बच्चे जोड़-घटाना  भाग तक नहीं जानते. सत्तर फीसद बच्चों को अंकों की पहचान नहीं है. संयुक्त देश की एजुकेशनल फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग 2013-14 की एक रिपार्ट में बोला गया था कि हिंदुस्तान में निरक्षर युवाओं की तादाद तकरीबन अठाईस करोड़ सत्तर लाख है. यह आंकड़ा संसार भर के निरक्षर युवाओं की कुल तादाद का तकरीबन सैंतीस फीसद है. हालांकि रिपोर्ट में एजुकेशन की बदहाली के कई कारण गिनाए गए, लेकिन एजुकेशन पर होने वाले खर्च में भारी असमानता को सर्वाधिक जिम्मेदार माना गया. मसलन, केरल में प्रति आदमी एजुकेशन पर खर्च लगभग बयालीस हजार रुपए है, वहीं बिहार समेत देश के अन्य राज्यों में छह हजार या इससे भी कम है. रिपोर्ट में बोला गया कि देश के सबसे बड़े प्रदेश यूपी में गरीबी के कारण सत्तर फीसद  मध्यप्रदेश में पचासी फीसद गरीब बच्चे पांचवी तक ही एजुकेशन ग्रहण कर पाते हैं.चिंताजनक तथ्य यह भी है कि देश में एजुकेशन का अधिकार कानून तथा सर्व एजुकेशन अभियान जैसी योजनाओं के बावजूद लाखों बच्चे स्कूली एजुकेशन की परिधि से बाहर हैं.2014 में कराए गए एक स्वतंत्र सर्वेक्षण के अनुसार छह से चौदह वर्ष के आयु वर्ग में स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या 60.64 लाख थी. गत साल संयुक्त देश की एक रिपोर्ट से भी उद्घाटित हुआ कि हिंदुस्तान 2030 तक सबको एजुकेशन देने के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएगा.

आज देश में छह करोड़ ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें एजुकेशन सुविधाएं हासिल नहीं हैं. प्राथमिक स्तर पर एजुकेशन से वंचित बच्चों की संख्या 1.11 करोड़ है, जो संसार में सर्वाधिक है. इसी तरह उच्चतर माध्यमिक एजुकेशन से वंचित विद्यार्थियों की तादाद 4.68 करोड़ है. यह स्थिति तब है, जब देश में एजुकेशन का अधिकार कानून लागू है  सर्व एजुकेशन अभियान पर अरबों रुपया खर्च किया जा रहा है. गत साल पहले प्रकाशित मानव संसाधन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक सोलह फीसद बच्चे बीच में ही प्राथमिक एजुकेशन  बत्तीस फीसद बच्चे जूनियर हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं. संयुक्त देश की संस्था यूनिसेफ की रिपोर्ट में बोला गया है कि साठ फीसद विद्यार्थी तीसरी कक्षा उत्तीर्ण करने से पहले ही स्कूल छोड़ देते हैं. रिपोर्ट में बोला गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों में इस आयु वर्ग के बौद्ध  नवबौद्ध समुदायों के 18.2 फीसद, जैन 12.4 फीसद, सिख 23.3 फीसद, ईसाई 25.6 फीसद, हिंदू 25.9 फीसद तथा मुसलिम समुदाय के चौंतीस फीसद बच्चे प्री-स्कूल एजुकेशन से वंचित हैं. रिपोर्ट में यह भी बोला गया है कि अनुसूचित जनजाति के बावन फीसद बच्चे आंगनवाड़ी जाते हैं, जबकि 26.9 फीसद बच्चे पूर्व एजुकेशन से वंचित रह जाते हैं. इसी तरह निर्धनतम परिवारों के 51.9 फीसद बच्चे आंगनवाड़ी जाते हैं तथा 34.9 फीसद बच्चे एजुकेशन से वंचित रह जाते हैं.
तकनीकी शिक्षण संस्थानों का हाल भी बेहद चिंताजनक है. हर साल साठ हजार भारतीय विद्यार्थी इंजीनियरिंग पढ़ने के लिए विदेशी शिक्षण संस्थानों का रुख कर रहे हैं. एक वक्त था, जब इंजीनियर बनने का सपना देखने वाला हर विद्यार्थी यही चाहता था कि उसे भारतीय इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी यानी आइआइटी में दाखिला मिले. लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में युवाओं की सोच में परिवर्तन आया है  उनकी नजर में अब आइआइटी को लेकर पहले जैसा आकर्षण नहीं है. इसके लिए संस्थानों में शिक्षकों का अभाव  संसाधनों की भारी कमी मुख्य रूप से जिम्मेदार है. पिछले दिनों उद्योग संगठन एसोचैम के एक अध्ययन में बोला गया कि एजुकेशन में सुधार की गति अगर ऐसी ही रही, तो हिंदुस्तान को विकसित राष्ट्रों की तरह अपनी एजुकेशन के स्तर को शीर्ष पर ले जाने में एक सौ छब्बीस वर्ष का समय लगेगा. उसने अपने सुझाव में यह भी बोला है कि एजुकेशन प्रणाली में बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है  एजुकेशन बजट जीडीपी का छह फीसद किया जाना आवश्यक है. अगर बजट बढ़ता है, तो हिंदुस्तान संसार का सबसे बड़ी प्रतिभा का स्रोत वाला देश बनेगा.

पिछले वर्ष प्रथम शिक्षा फाउंडेशन की सालाना रिपोर्ट से खुलासा हुआ कि यूपी में विगत सालों के दरम्यान स्कूल न जाने वाले बच्चों का फीसदी 4.9 से बढ़ कर 5.3 फीसदी हो गया है.प्रदेश के केवल सैंतीस फीसद बच्चे सरकारी स्कूलों में जाते हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय के मुताबिक यूपी में सोलह लाख 12 हजार 285 लाख बच्चे ऐसे हैं, जो स्कूल नहीं जाते.यही हाल देश के अन्य राज्यों का भी है. दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह भी है कि देश में तकरीबन बीस फीसद शिक्षक योग्यता मानकों के अनुरूप नहीं हैं. एक आंकड़े के मुताबिक सर्व एजुकेशनअभियान के तहत नियुक्त शिक्षकों में छह लाख शिक्षक अप्रशिक्षित हैं. बिहार में 1.90 लाख  यूपी में 1.24 लाख शिक्षक महत्वपूर्ण योग्यता नहीं रखते. छत्तीसगढ़ में पैंतालीस हजार  मध्यप्रदेश में पैंतीस हजार अप्रशिक्षित शिक्षकों के भरोसे कार्य चलाया जा रहा है. ऐसी ही समस्या से झारखंड, पश्चिम बंगाल  असम समेत अन्य प्रदेश भी जूझ रहे हैं. जबकि एजुकेशन अधिकार कानून में गुणवत्तापूर्ण एजुकेशन का प्रावधान है. अक्सर शिक्षकों के शिक्षण संस्थानों से गायब रहने की खबरें सुर्खियां बनती हैं. आंकड़ों पर गौर करें तो 2006-07 में केन्द्र सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वे में प्राइमरी स्कूलों में सिर्फ 81.07 फीसद  2012-13 में 84.3 फीसद ही शिक्षक मौजूद मिले. यानी पंद्रह से बीस फीसद शिक्षक एजुकेशनपरिसर से गायब रहे. उसी का कुपरिणाम है कि बच्चों को समुचित शिक्षण फायदा नहीं मिल पा रहा है  वे पढ़ाई में बेहद निर्बल हैं.

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